हैदराबाद, 22 सितम्बर: ABVP Wins All Posts in University of Hyderabad: सात साल के लंबे इंतज़ार के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad – UoH) के छात्र संघ चुनावों में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। इस बार ABVP ने सभी छह प्रमुख पदों पर कब्ज़ा जमाते हुए क्लीन स्वीप कर लिया।
यह नतीजे शुक्रवार को घोषित हुए और यह जीत ABVP के लिए 2018 के बाद की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। 2018 में भी परिषद ने सभी पद जीते थे, लेकिन उससे पहले उसे 2009-10 के बाद आठ साल का इंतजार करना पड़ा था।
अध्यक्ष पद
ABVP Wins All Posts in University of Hyderabad: अध्यक्ष पद के चुनाव में पीएचडी स्कॉलर शिवा पालेपू ने जीत हासिल की। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी अनन्या दाश को हराया। शिवा की जीत ABVP के लिए विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह न केवल कड़ी चुनावी टक्कर थी बल्कि विश्वविद्यालय में विविध विचारधाराओं के बीच उनका पलड़ा भारी पड़ा।
उपाध्यक्ष पद
ABVP Wins All Posts in University of Hyderabad: उपाध्यक्ष पद पर देवेन्द्र ने जीत दर्ज की। वे ABVP-SLVD गठबंधन से चुनाव लड़े थे और उन्होंने BSF-DSU-SFI-TSF गठबंधन के उम्मीदवार दिवाकर को हराया। यह नतीजा ABVP की मजबूत चुनावी रणनीति और गठबंधन क्षमता को दर्शाता है।
वेब स्टोरी:
महासचिव पद
महासचिव का पद श्रुति प्रिया ने जीता, जो ABVP गठबंधन से चुनाव लड़ रही थीं। उनकी जीत ने संगठन की पकड़ और भी मजबूत कर दी।
अन्य प्रमुख पद
बाकी सभी पदों पर भी ABVP पैनल ने जीत हासिल की:
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संयुक्त सचिव – सौरभ शुक्ला
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सांस्कृतिक सचिव – वीनस
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खेल सचिव – ज्वाला
ABVP Wins All Posts in University of Hyderabad: इन जीतों के साथ हैदराबाद विश्वविद्यालय परिसर में ABVP की सक्रियता और प्रभावशाली वापसी साफ नज़र आ रही है। यह परिसर देश के सबसे राजनीतिक रूप से जागरूक विश्वविद्यालयों में गिना जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ABVP ने पिछली बार 2018 में सभी पद जीते थे, जब आरती नागपाल अध्यक्ष बनी थीं। उससे पहले, 2009-10 के बाद संगठन को पूरे छात्र संघ पर नियंत्रण पाने के लिए आठ साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था। इस बार की जीत, इसलिए संगठन के लिए प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टि से बेहद अहम है।
प्रतिक्रियाएँ और असर
ABVP Wins All Posts in University of Hyderabad: ABVP की इस बड़ी जीत ने विश्वविद्यालय में बदलते राजनीतिक समीकरणों पर नई बहस छेड़ दी है। परिषद समर्थकों ने इस नतीजे को छात्रों के विश्वास का प्रमाण बताया, जबकि विपक्षी संगठनों ने परिसर में विचारधारात्मक विविधता के सिमटते दायरे पर चिंता जताई।
SFI और DSU जैसे वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े नेताओं का कहना है कि इन नतीजों से यह स्पष्ट हो गया है कि ABVP के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए प्रगतिशील ताकतों को और मज़बूत एकजुटता की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, ABVP प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया है कि उनका मुख्य फोकस छात्रों की समस्याओं पर होगा — जैसे कि बेहतर शोध सुविधाएँ, छात्रवृत्तियाँ, हॉस्टल व्यवस्थाएँ और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना।
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क्यों महत्वपूर्ण है यह जीत
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों को हमेशा से देश की व्यापक राजनीतिक जंग का आईना माना जाता है। यहाँ की राजनीति अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं की भिड़ंत को दर्शाती रही है।
2025 में ABVP की यह क्लीन स्वीप न केवल विश्वविद्यालय में उनकी पकड़ को मज़बूत करती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर युवाओं के बीच उनकी संगठनात्मक क्षमता का भी संकेत देती है।
कई राजनीतिक पर्यवेक्षक इस नतीजे को आने वाले वर्षों में देशभर के परिसरों में छात्र राजनीति के स्वरूप में होने वाले बड़े बदलाव का संकेत मान रहे हैं।