बॉलीवुड की नई फिल्म धुरंधर में अक्षय खन्ना का किरदार दर्शकों का ध्यान खींच रहा है। काले पठान सूट, ब्लेजर और काले चश्मे में उनकी स्टाइलिश एंट्री और डांस सीन सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस फिल्म में अक्षय खन्ना ने पाकिस्तान के कराची शहर के कुख्यात बलूच गैंगस्टर रहमान डकैत का किरदार निभाया है। यह किरदार इतना दमदार है कि कई दर्शक फिल्म के मुख्य अभिनेता रणवीर सिंह को भी भूल जाते हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि रहमान डकैत कौन था और उसकी कहानी इतनी खास क्यों है।
रहमान डकैत का असली नाम और पहचान
रहमान डकैत का असली नाम सरदार अब्दुल रहमान बलूच था। उसका जन्म 1980 में कराची के ल्यारी इलाके में हुआ था। उसके पिता दाद मुहम्मद एक ड्रग तस्कर थे और मां का नाम खदीजा बीबी था। बचपन से ही रहमान ने अपराध की दुनिया को करीब से देखा था। किशोरावस्था में ही वह नशीले पदार्थों की बिक्री में शामिल हो गया था। कहा जाता है कि सिर्फ 13 साल की उम्र में उसने एक आदमी को चाकू मार दिया था। दो साल बाद, खबरों के मुताबिक उसने अपनी मां की हत्या कर दी थी क्योंकि उसकी मां के संबंध एक दुश्मन गिरोह से थे।
हालांकि इस बात की पुष्टि कभी नहीं हो पाई लेकिन इस घटना के बाद रहमान का नाम अपराध की दुनिया में तेजी से फैलने लगा। उसके खूंखार तरीकों की वजह से लोग उसे रहमान डकैत कहने लगे।
ल्यारी शहर की सच्चाई
ल्यारी कराची का सबसे पुराना और घनी आबादी वाला इलाका है। 1700 के दशक में यह सिंधी मछुआरों और बलूच खानाबदोशों की बस्ती था। आज यहां करीब 9 लाख लोग रहते हैं। यह शहर हमेशा से ही सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा है। यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। सड़कें, पानी, बिजली और दूसरी बुनियादी सुविधाओं की कमी ने इसे गरीबी का अड्डा बना दिया।
गरीबी और बेरोजगारी ने इस इलाके को अपराध का गढ़ बना दिया। यहां के युवाओं के पास रोजगार के साधन नहीं थे इसलिए वे गैंग्स का हिस्सा बन गए। समय के साथ ल्यारी अपने गिरोहों और गैंगस्टरों के लिए मशहूर हो गया। दिलचस्प बात यह है कि ल्यारी नाम एक पेड़ से लिया गया है जो कब्रिस्तानों में उगता है। और यहां गैंग वॉर के दिनों में सैकड़ों कब्रें बनीं।
किशोरावस्था से गैंग लीडर तक का सफर
21 साल की उम्र तक रहमान अपने गिरोह का मुखिया बन चुका था। वह जबरन वसूली, अपहरण, नशीले पदार्थों की तस्करी और हथियारों की अवैध बिक्री में शामिल था। पाकिस्तानी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक करीब एक दशक तक ल्यारी में गैंग वॉर चलता रहा। रहमान और उसके गिरोह की लड़ाई उसके दुश्मन अरशद पप्पू और उसके साथियों से चल रही थी। इस लड़ाई में सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जान गई।
रहमान की हत्याएं बेहद क्रूर होती थीं। जैसा कि फिल्म धुरंधर में अक्षय खन्ना कहते हैं कि रहमान डकैत की दी हुई मौत बहुत खूंखार होती थी। उसके नाम से ही लोगों में दहशत फैल जाती थी।
राजनीति में रहमान की घुसपैठ
रहमान सिर्फ अपराध की दुनिया का बादशाह बनकर नहीं रहना चाहता था। उसे राजनीतिक ताकत भी चाहिए थी। ल्यारी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का गढ़ था। यह पार्टी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो की थी। रहमान की तस्वीरें पीपीपी के नेताओं के साथ अखबारों में छपने लगीं। वह पूर्व गृह मंत्री जुल्फिकार मिर्जा के साथ भी नजर आया और बेनजीर भुट्टो के आसपास भी दिखा।
ऐसी खबरें थीं कि राजनीतिक दबाव की वजह से पुलिस रहमान के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रही थी। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया। एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक एक पीपीपी नेता ने कहा था कि राजनीतिक लोगों ने ल्यारी को नजरअंदाज किया इसलिए रहमान जैसे लोगों ने वह खाली जगह भर दी। वह गरीब लड़कों को रोजाना मजदूरी देता था और उन्हें हथियार देकर इलाके में गश्त करवाता था।
पीपल्स अमन कमेटी का गठन
रहमान ने 2008 में अपना नाम बदल दिया और खुद को सरदार अब्दुल रहमान बलूच कहने लगा। उसने अपने दुश्मन गिरोह से समझौता किया और पीपल्स अमन कमेटी बनाई। यह संगठन शुरुआत में पीपीपी का सहयोगी लगता था।
अफवाहें थीं कि वह चुनाव लड़ सकता है। आसिफ अली जरदारी की सुरक्षा में तैनात कुछ गार्ड रहमान के गिरोह से जुड़े माने जाते थे। पीपल्स अमन कमेटी के चेयरमैन मौलाना अब्दुल मजीद सरबाजी ने बताया था कि रहमान का मकसद ल्यारी में शांति और विकास लाना था। उन्होंने कहा था कि रहमान ने बहुत बड़ी कुर्बानी दी और अपने दुश्मन से समझौता किया ताकि खूनखराबा बंद हो।
मुठभेड़ में मौत या साजिश
अगस्त 2009 में पुलिस के साथ मुठभेड़ में रहमान को गोली मार दी गई। उस समय वह सिर्फ 29 साल का था। लेकिन उसकी मौत को लेकर कई सवाल उठे। सरबाजी ने कहा था कि ऑटोप्सी रिपोर्ट के मुताबिक रहमान को तीन फीट की दूरी से गोली मारी गई थी जो मुठभेड़ में संभव नहीं लगता।
कई लोगों का मानना है कि पीपीपी की शीर्ष नेतृत्व रहमान को रास्ते से हटाना चाहती थी क्योंकि वह बहुत ताकतवर हो रहा था। कुछ का कहना है कि वह राजनीतिक सत्ता चाहता था जो पार्टी को मंजूर नहीं थी। हालांकि पार्टी नेताओं ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि वह जरदारी जैसे बड़े नेताओं के लिए बहुत छोटा था।
एक और थ्योरी यह है कि रहमान बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को हथियार बेचने में शामिल था और एक खराब सौदे की वजह से उसकी हत्या हुई। रहमान की मौत के बाद पीपीपी नेताओं ने पीपल्स अमन कमेटी से दूरी बना ली और कहा कि पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं।
बॉलीवुड तक पहुंची कहानी
रहमान डकैत भले ही 29 साल तक जिंदा रहा लेकिन उसकी कहानियां आज भी ल्यारी में जिंदा हैं। अब आदित्य धर की फिल्म धुरंधर ने इस किरदार को भारतीय सिनेमा में पेश किया है। अक्षय खन्ना ने इस किरदार को इतने दमदार तरीके से निभाया है कि दर्शक उनकी स्क्रीन प्रेजेंस को सराह रहे हैं।
फिल्म में दिखाए गए हिंसक दृश्य भी असली रहमान के कामों के मुकाबले कुछ नहीं माने जाते। उसकी जिंदगी में जितनी हिंसा, अपराध और राजनीतिक उठापटक थी वह सिनेमा में पूरी तरह दिखाना मुश्किल है।
रहमान डकैत की कहानी एक ऐसे युवा की कहानी है जो गरीबी और उपेक्षा के माहौल में पला और अपराध को अपनी पहचान बना लिया। उसकी जिंदगी यह भी दिखाती है कि जब सरकार अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं नहीं देती तो ऐसे खतरनाक लोग पैदा होते हैं जो समाज के लिए खतरा बन जाते हैं।