रियाद में आयोजित जॉय फोरम 2025 में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान का एक बयान अप्रत्याशित रूप से राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया। मंच पर उन्होंने सऊदी अरब में भारतीय सिनेमा के दर्शकों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहाँ “बलोचिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान” के लोग भारतीय फिल्में पसंद करते हैं।
I don’t know if it was slip of tongue, but this is amazing! Salman Khan separates “people of Balochistan” from “people of Pakistan” .
pic.twitter.com/dFNKOBKoEz— Smita Prakash (@smitaprakash) October 19, 2025
यह वाक्य — जो शायद महज़ दर्शकों की विविधता बताने के लिए कहा गया था — सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। बलोच कार्यकर्ताओं ने इसे पहचान की स्वीकृति के तौर पर सराहा, जबकि पाकिस्तान के अधिकारियों ने इसे “ग़ैरज़िम्मेदाराना” और “राजनीतिक रूप से संवेदनशील” बताया।
दरअसल, बलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधन-संपन्न प्रांत है, जहाँ दशकों से अलगाववादी आंदोलनों की गूँज रही है। ऐसे में जब एक वैश्विक मंच पर किसी भारतीय सुपरस्टार द्वारा उसे पाकिस्तान से अलग संदर्भ में लिया जाता है, तो स्वाभाविक रूप से कूटनीतिक तरंगें पैदा होती हैं।
फिल्म जगत की हस्तियाँ अक्सर सॉफ्ट डिप्लोमेसी के अनजाने वाहक बन जाती हैं। पर कला और राजनीति के बीच की रेखा हमेशा धुंधली रहती है। सलमान खान का बयान शायद निर्दोष भावनात्मक संदर्भ में दिया गया हो, लेकिन उसका असर भू-राजनीतिक संदर्भों में गूंजता है।
यह घटना याद दिलाती है कि सार्वजनिक मंच पर हर शब्द का वजन केवल वक्ता के इरादे से नहीं, बल्कि उसके संदर्भ और समय से भी तय होता है।
निष्कर्षतः, एक अभिनेता का संवाद कभी-कभी राजनयिक संदेश बन जाता है — और यही आज की सूचना-युग की विडंबना है।