फॉर्च्यून तेल व्यवसाय से अदाणी समूह का अंतिम प्रस्थान
अदाणी समूह ने अपने उपभोक्ता उत्पाद कारोबार से एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाते हुए अदाणी विल्मर लिमिटेड (AWL) में बची हुई अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच दी है। इस कदम का सीधा असर शेयर बाज़ार में देखने को मिला, जहां ब्लॉक डील के बाद कंपनी के शेयरों में करीब छह प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई। यह कदम अदाणी समूह की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें समूह अब अपने मूल अवसंरचना और बड़े पैमाने के प्रोजेक्ट्स पर केंद्रित हो रहा है।
ब्लॉक डील से हिली बाजार की धारणा
अदाणी विल्मर के शेयर मंगलवार सुबह 280.70 रुपये पर खुले, लेकिन थोड़े समय के भीतर ही बिकवाली के दबाव में आकर 266.45 रुपये के इंट्रा-डे निचले स्तर पर पहुंच गए। बाजार सूत्रों के अनुसार, अदाणी समूह द्वारा की गई इस बड़ी ब्लॉक डील का मूल्य लगभग 2500 करोड़ रुपये के आसपास अनुमानित है। यह बिक्री न केवल लेनदेन का वित्तीय महत्व दर्शाती है, बल्कि यह समूह के व्यापारिक पुनर्गठन की दिशा को भी स्पष्ट करती है।
घरेलू और वैश्विक निवेशकों की बढ़ी दिलचस्पी
इस ब्लॉक डील में भाग लेने वाले निवेशकों की सूची भी खास रही। वैनगार्ड, चार्ल्स श्वाब, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड, एसबीआई म्यूचुअल फंड, टाटा म्यूचुअल फंड, क्वांट एमएफ और बंधन एमएफ जैसे प्रमुख घरेलू फंड हाउसों ने कंपनी में हिस्सेदारी खरीदी। इसके अतिरिक्त, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और एशियाई बाज़ारों के कई अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने भी इस ‘क्लीन-आउट ब्लॉक’ में दिलचस्पी दिखाई।
यह निवेश प्रवाह इस बात का संकेत है कि विदेशी निवेशक भारतीय खाद्य प्रसंस्करण और उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र में दीर्घकालिक भविष्य देखते हैं।
दो चरणों में हिस्सेदारी बिक्री
अदाणी समूह ने अपनी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया दो चरणों में पूरी की। सप्ताह की शुरुआत में ही समूह ने कंपनी में अपनी 13 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर अपनी हिस्सेदारी घटाकर 7 प्रतिशत कर दी थी। इसके बाद मंगलवार को शेष 7 प्रतिशत हिस्सेदारी भी बेचकर समूह पूरी तरह अदाणी विल्मर से बाहर हो गया।
समूह के लिए यह कदम अचानक नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि अदाणी समूह की यह रणनीति पिछले कई वर्षों से धीरे-धीरे आकार ले रही थी, जहां समूह अपनी ऊर्जा, बंदरगाह, लॉजिस्टिक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी परियोजनाओं पर अधिक फोकस करना चाहता है। उपभोक्ता वस्तु कारोबार से बाहर निकलना इसी व्यापक पुनर्गठन का हिस्सा है।
विल्मर इंटरनेशनल बना प्रमुख प्रवर्तक
अदाणी समूह के पूरी तरह बाहर निकलने के बाद अब सिंगापुर स्थित विल्मर इंटरनेशनल कंपनी का 57 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ प्रमुख प्रवर्तक बन गया है। इससे कंपनी के संचालन, दिशा और विस्तार योजनाओं में परिवर्तन की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं।
1999 में स्थापित यह संयुक्त उद्यम भारतीय खाद्य तेल बाज़ार में ‘फॉर्च्यून’ ब्रांड को स्थापित करने में सफल रहा। आज फॉर्च्यून केवल खाद्य तेल ही नहीं, बल्कि गेहूं का आटा, चावल, दालें और तैयार-खाने वाले उत्पादों सहित कई श्रेणियों में अपनी पहचान बना चुका है।
एफएमसीजी क्षेत्र से बाहर निकलने के पीछे रणनीतिक सोच
अदाणी समूह की एफएमसीजी कारोबार से बाहर निकलने की वजहें कई हैं। समूह की मौजूदा परियोजनाएं भारी पूंजीगत निवेश मांगती हैं, जैसे—हवाईअड्डे, बंदरगाह, अक्षय ऊर्जा और विनिर्माण। इन क्षेत्रों में उच्च प्रतिफल और दीर्घकालिक विकास की संभावना अधिक है। दूसरी ओर, उपभोक्ता वस्तु कारोबार में प्रतिस्पर्धा तीव्र है और मार्जिन अपेक्षाकृत कम हैं।
समूह के समीपस्थ सूत्रों के अनुसार, संसाधनों का अधिक उपयोग उन क्षेत्रों में करना जिनमें समूह की विशेषज्ञता और नियंत्रण दोनों मजबूत हैं, इस निर्णायक परिवर्तन की मुख्य वजह रही।
खाद्य तेल उद्योग पर संभावित प्रभाव
अदाणी विल्मर की पहचान भारत की सबसे बड़ी खाद्य तेल फ्रैंचाइज़ी के रूप में रही है। फॉर्च्यून ब्रांड देश के करोड़ों घरों में अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। विशेषज्ञों का मानना है कि अदाणी समूह के बाहर निकलने से कंपनी के संचालन पर कोई तत्काल नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि विल्मर इंटरनेशनल पहले से ही खाद्य क्षेत्र में मजबूत अनुभव रखता है।
हालांकि बाजार में प्रतिस्पर्धा कड़ी है और अगले कुछ तिमाहियों में निवेशकों की नज़र कंपनी की बिक्री, मुनाफ़े और विस्तार योजनाओं पर रहेगी।
शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव और निवेशकों की प्रतीक्षा
ब्लॉक डील के बाद शेयरों में उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है, क्योंकि इतनी बड़ी हिस्सेदारी बाजार में आने से निवेशकों की धारणा प्रभावित होती है। लेकिन अनेक विश्लेषकों का मानना है कि यदि विल्मर इंटरनेशनल कंपनी के संचालन, आपूर्ति शृंखला और उत्पादों के विस्तार को प्रभावी रूप से जारी रखता है, तो कंपनी की दीर्घकालिक संभावनाएं मजबूत बनी रहेंगी।