आंतरिक कारकों से प्रेरित विकास की प्रबल संभावना
भारत की अर्थव्यवस्था अगले वित्त वर्ष में नई ऊंचाइयों को स्पर्श करने के लिए तैयार है। Development Bank of Singapore की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय आय वृद्धि दर वित्त वर्ष 2026 में 7.2 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। यह आंकड़ा न केवल आशाजनक है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक शक्ति और सरकार द्वारा किए गए सुधारों का प्रत्यक्ष परिणाम है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न सकारात्मक कारक मिलकर इस वृद्धि को संभव बनाएंगे, जिनमें रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती, सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि, मजबूत मानसून और बाजार में पर्याप्त तरलता शामिल हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह अवधि महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्व बाजार में अनिश्चितता का माहौल है। ऐसे समय में जब वैश्विक व्यापार को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, भारत अपनी आंतरिक शक्तियों पर निर्भर रहते हुए स्थिर वृद्धि बनाए रखने में सक्षम साबित हो रहा है। इस दृष्टिकोण से, DBS की रिपोर्ट भारतीय अर्थनीति के लिए एक सकारात्मक संदेश देती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2027 में, जब GDP डिफ्लेटर से संबंधित प्रभाव कम होने लगेंगे, तब वास्तविक GDP वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत तक आने की संभावना है, जबकि मौद्रिक वृद्धि की गति 10 प्रतिशत के पास रहेगी। यह दीर्घकालीन आर्थिक स्थिरता का संकेत देता है।
ब्याज दरों में कटौती और RBI की रणनीति
भारतीय रिजर्व बैंक की ब्याज दरों में कटौती की नीति आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण चालक साबित हो रही है। DBS की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां तक ब्याज दरों में कटौती का सवाल है, अभी भी सीमित गुंजाइश बाकी है। यह इसलिए है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि देखी जा रही है और महंगाई की दर उम्मीद से कम है। हालांकि, यदि आने वाले समय में वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण वृद्धि पर जोखिम उत्पन्न होता है, तो चौथी तिमाही 2025 में ब्याज दरों में कटौती के मजबूत कारण सामने आ सकते हैं।
DBS के प्रमुख अर्थशास्त्री राधिका राव के अनुसार, वर्तमान में कम महंगाई की स्थिति से RBI को दरों में कटौती के लिए आवश्यक गुंजाइश प्राप्त है। यह स्पष्ट करता है कि भारतीय मौद्रिक नीति विवेकपूर्ण और संतुलित है।
सरकारी पूंजीगत व्यय की भूमिका
भारत सरकार द्वारा अवसंरचना और विकास परियोजनाओं में किए जाने वाले निवेश आर्थिक विकास का एक मुख्य स्रोत है। DBS की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि सरकारी पूंजीगत व्यय वैश्विक अनिश्चितताओं के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में सहायक होगा। यह पहलू भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा अपनाई गई दूरदर्शी रणनीति को दर्शाता है।
अवसंरचना विकास से न केवल रोजगार का सृजन होता है, बल्कि उत्पादकता में भी वृद्धि होती है, जिससे दीर्घकालीन आर्थिक वृद्धि को बल मिलता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में चल रही विकास परियोजनाएं देश की आर्थिक शक्ति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।
कृषि और मानसून का महत्व
एक मजबूत मानसून आमतौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। DBS की रिपोर्ट में भी मानसून को सकारात्मक आर्थिक वृद्धि के कारकों में शामिल किया गया है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है, और यदि मानसून अच्छा रहता है, तो फसलों की पैदावार बढ़ती है, जिससे ग्रामीण आय में वृद्धि होती है। यह बदले में खपत को बढ़ाता है और संपूर्ण अर्थव्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
राजकोषीय और बाह्य मोर्चे पर स्थिरता
रिपोर्ट में राजकोषीय और बाह्य मोर्चों पर भी आशावादी दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है।
महंगाई और मूल्य नियंत्रण
राधिका राव के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में कमी अनुकूल आधार प्रभाव, ऊर्जा की कीमतों में स्थिरता, और अप्रत्यक्ष कर में कटौती के कारण देखी जा रही है। हालांकि, मुख्य महंगाई प्रवृत्ति मजबूत बनी हुई है, विशेषकर बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण। यह संतुलित तस्वीर दर्शाता है कि भारत मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में कामयाब हो रहा है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अभी भी सतर्कता की जरूरत है।
बाहरी व्यापार और विदेशी मुद्रा भंडार
DBS की रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2026 में GDP का 0.9 प्रतिशत रहने की संभावना है, जो स्वस्थ है। यह भारत के बाहरी खातों की मजबूत स्थिति को दर्शाता है। भारत को अपनी विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए विभिन्न उपायों की आवश्यकता है, और RBI द्वारा खुली बाजार प्रचालन और द्वितीयक बाजार क्रय के माध्यम से समर्थन प्रदान किया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते
DBS की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की घोषणा से मुद्रा बाजार में संक्षिप्त राहत मिल सकती है। ऐसे समझौते भारतीय निर्यातों को बढ़ावा देते हैं और विदेशी निवेश को आकृष्ट करते हैं। इस तरह के वैश्विक संबंधों को मजबूत करना भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अत्यावश्यक है।
राजकीय लेखांकन और ऋण प्रबंधन
भारत सरकार हाल में सार्वभौमिक रेटिंग अपग्रेड से सम्मानित हुई है, जो राजकीय आर्थिक प्रबंधन की मजबूत नीति को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2026 में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार के पास एक स्पष्ट रोडमैप है। इसके साथ ही, सार्वजनिक ऋण के स्तर में भी मॉडरेशन देखा जा रहा है, जो भारत की वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करता है।
भविष्य की दिशा और निष्कर्ष
Development Bank of Singapore की इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत आंतरिक कारकों द्वारा संचालित हो रही है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत अपनी स्वदेशी शक्तियों का उपयोग करते हुए सकारात्मक वृद्धि सुनिश्चित करने में सक्षम है। RBI की समझदारीपूर्ण मौद्रिक नीति, सरकार के सुनियोजित पूंजीगत निवेश, कृषि का मजबूत प्रदर्शन, और बाजार में पर्याप्त तरलता – ये सभी कारक मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे की ओर ले जा रहे हैं।
निश्चित रूप से, वित्त वर्ष 2026 भारत की अर्थनीति के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष साबित होगा। यदि ये सकारात्मक कारक अपनी गति बनाए रहें, तो भारत न केवल 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर को बनाए रख सकता है, बल्कि अपने दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकता है।