Silver Price: भारत में चाँदी की कीमतों में गिरावट
23 अक्टूबर 2025 को भारत में चाँदी की कीमत में मामूली गिरावट दर्ज की गई। आज चाँदी का भाव प्रति ग्राम ₹159.90 और प्रति किलोग्राम ₹1,59,900 है, जो कल की तुलना में क्रमशः ₹0.10 और ₹100 कम है। चाँदी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में धातु की स्थिति, डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल और औद्योगिक मांग पर आधारित होती हैं।
चाँदी की आज की कीमतें (INR) 23rd October 2025
ग्राम | आज | कल | बदलाव |
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1 | ₹159.90 | ₹160 | -₹0.10 |
8 | ₹1,279.20 | ₹1,280 | -₹0.80 |
10 | ₹1,599 | ₹1,600 | -₹1 |
100 | ₹15,990 | ₹16,000 | -₹10 |
1000 | ₹1,59,900 | ₹1,60,000 | -₹100 |
प्रमुख शहरों में चाँदी की दरें
शहर | 10 ग्राम | 100 ग्राम | 1 किलोग्राम |
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चेन्नई | ₹1,749 | ₹17,490 | ₹1,74,900 |
मुंबई | ₹1,599 | ₹15,990 | ₹1,59,900 |
दिल्ली | ₹1,599 | ₹15,990 | ₹1,59,900 |
कोलकाता | ₹1,599 | ₹15,990 | ₹1,59,900 |
बैंगलोर | ₹1,638 | ₹16,380 | ₹1,63,800 |
हैदराबाद | ₹1,749 | ₹17,490 | ₹1,74,900 |
केरल | ₹1,749 | ₹17,490 | ₹1,74,900 |
चाँदी की कीमतों पर प्रभाव डालने वाले प्रमुख कारक
चाँदी की दरें कई कारकों पर निर्भर करती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चाँदी की स्थिति, डॉलर और रुपये के विनिमय दर, औद्योगिक मांग, और वैश्विक उत्पादन दरें कीमतों को प्रभावित करती हैं। जब डॉलर मजबूत होता है, चाँदी की कीमतें कम रहती हैं और जब डॉलर कमजोर होता है, तब कीमतें बढ़ती हैं।
चाँदी का भारत में निवेश
भारत में चाँदी को आम आदमी का सोना माना जाता है। यह सोने की तुलना में सस्ती और आसानी से उपलब्ध धातु है। लोग इसे सिक्कों, जेवरात और ई-सिल्वर के रूप में खरीद सकते हैं। बैंक और ज्वैलर के माध्यम से चाँदी खरीदना सबसे आम विकल्प है। ई-सिल्वर और फ्यूचर्स मार्केट के माध्यम से निवेश करने पर अधिक लाभ और जोखिम दोनों हो सकते हैं।
चाँदी के स्वास्थ्य लाभ
चाँदी न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी मानी जाती है। यह जीवाणुरोधी गुणों से युक्त है और घाव, फ्लू, सर्दी जैसी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान कर सकती है। चाँदी पहनने से नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है और शरीर में गर्मी का संतुलन बनता है।
भारत में चाँदी का उपयोग
चाँदी का उपयोग औद्योगिक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है। इसके अलावा, यह फोटोग्राफी, दर्पण निर्माण, सोलर पैनल और चिकित्सा उपकरणों में महत्वपूर्ण है। भारतीय परंपरा में विवाह और त्योहारी अवसरों पर चाँदी के आभूषणों की मांग अधिक रहती है।
चाँदी की कीमतों में निवेश के सुझाव
विशेषज्ञों का मानना है कि त्योहारों और विवाह के मौसम में चाँदी की मांग बढ़ती है, जिससे निवेशकों के लिए यह उपयुक्त समय होता है। हालांकि, चाँदी में निवेश में उतार-चढ़ाव की संभावना अधिक होती है। सिक्कों और ई-सिल्वर के माध्यम से निवेश करना फायदेमंद माना जाता है, जबकि आभूषणों में निवेश करने पर अतिरिक्त शुल्क लगता है।
भारत में चाँदी की कीमतें स्थिर रूप से बदल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार, औद्योगिक मांग, मुद्रा विनिमय दर और निवेश की प्रवृत्ति इस धातु के भाव को प्रभावित करती हैं। निवेशकों को चाहिए कि वे बाजार की स्थिति को समझकर ही चाँदी में निवेश करें।
भारत में आज प्रति ग्राम चांदी के दाम तय करने वाले प्रमुख कारक
परिचय : कीमती धातु से आर्थिक संकेतक तक
चांदी, जिसे परंपरागत रूप से “गरीबों का सोना” कहा जाता है, आज भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। यह केवल आभूषण या पूजा में प्रयोग होने वाली धातु नहीं रही, बल्कि औद्योगिक क्षेत्र, ऊर्जा उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स और निवेश पोर्टफोलियो तक में अपनी जगह बना चुकी है।
भारत विश्व के सबसे बड़े चांदी उपभोक्ता देशों में से एक है, और यहां चांदी के भाव हर दिन अंतरराष्ट्रीय बाजार, डॉलर की स्थिति, घरेलू मांग–आपूर्ति और सरकारी नीतियों से प्रभावित होते हैं।
आज जब प्रति ग्राम चांदी के दाम में रोज़ाना उतार–चढ़ाव देखने को मिल रहा है, यह समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कौन–कौन से कारक इसकी कीमत को दिशा देते हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार का प्रभाव – कीमतों की पहली धड़कन
भारत में चांदी के भाव का सबसे बड़ा निर्धारक है अंतरराष्ट्रीय स्पॉट मार्केट।
लंदन बुलियन मार्केट और न्यूयॉर्क कमोडिटी एक्सचेंज (COMEX) में जो दरें तय होती हैं, उनका सीधा असर भारतीय बाजार पर पड़ता है।
जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है — जैसे युद्ध, तेल संकट या मंदी के संकेत — निवेशक “सेफ हेवन” यानी सुरक्षित निवेश की ओर झुकते हैं। उस समय सोना और चांदी दोनों की मांग तेजी से बढ़ जाती है।
उदाहरण के तौर पर, रूस–यूक्रेन युद्ध या मध्य–पूर्व में तनाव जैसी स्थितियों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमती धातुओं की मांग बढ़ी और भारतीय बाजारों में भी चांदी के दाम चढ़ गए।
इसके उलट, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर होती है या डॉलर मजबूत होता है, तब चांदी की कीमतों पर दबाव आता है।
डॉलर की मजबूती और विनिमय दर का असर
चांदी की अंतरराष्ट्रीय कीमत डॉलर में तय होती है, इसलिए रुपये की मजबूती या कमजोरी का सीधा प्रभाव भारतीय बाजार में दिखाई देता है।
अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है, तो भारत में चांदी महंगी हो जाती है — भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमत स्थिर क्यों न हो।
उदाहरण के लिए, यदि वैश्विक बाजार में चांदी $25 प्रति औंस पर टिकी है, और डॉलर की दर ₹82 से बढ़कर ₹84 हो जाती है, तो आयातित चांदी स्वतः महंगी हो जाएगी।
इसलिए निवेशकों और ज्वेलर्स दोनों के लिए डॉलर–रुपया विनिमय दर का ट्रेंड ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है।
घरेलू मांग और आपूर्ति का संतुलन
भारत में चांदी की मांग मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों से आती है:
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आभूषण और बर्तन निर्माण,
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औद्योगिक उपयोग (सोलर पैनल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल उपकरण),
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निवेश (सिक्के, बार और ETFs)।
त्योहारों, शादियों और धार्मिक अवसरों के दौरान चांदी की मांग में उल्लेखनीय उछाल देखा जाता है।
दूसरी ओर, आपूर्ति मुख्यतः आयात पर निर्भर है, क्योंकि भारत में खनन से निकलने वाली चांदी की मात्रा सीमित है।
यदि किसी कारणवश आयात बाधित होता है — जैसे सीमा शुल्क में बढ़ोतरी या वैश्विक सप्लाई चेन में अड़चन — तो घरेलू बाजार में तुरंत प्रभाव दिखता है। यही कारण है कि आयात–नीति और सीमा शुल्क में छोटा बदलाव भी कीमतों पर बड़ा असर डाल सकता है।
औद्योगिक और सौर ऊर्जा क्षेत्र में चांदी की भूमिका
आज की तकनीकी अर्थव्यवस्था में चांदी केवल गहनों तक सीमित नहीं है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, बैटरियों, सोलर पैनल और मेडिकल उपकरणों में इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।
भारत, जो 2070 तक नेट–ज़ीरो कार्बन लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहा है, उसमें सोलर एनर्जी सेक्टर की भूमिका महत्वपूर्ण है।
सोलर पैनल के निर्माण में चांदी की पतली परतें उपयोग की जाती हैं — और इस मांग में वृद्धि भविष्य में कीमतों को स्थायी रूप से ऊंचा रख सकती है।
इसी वजह से विश्लेषक मानते हैं कि “इंडस्ट्रियल सिल्वर” आने वाले वर्षों में निवेशकों के लिए एक लंबी अवधि का अवसर बन सकता है।
सोने और चांदी का ऐतिहासिक संबंध
इतिहास बताता है कि चांदी की कीमतें अक्सर सोने की चाल का अनुसरण करती हैं।
जब सोना तेजी पकड़ता है, तो निवेशक जल्द ही चांदी की ओर भी रुख करते हैं क्योंकि यह अपेक्षाकृत सस्ती होती है।
इसे “गोल्ड–सिल्वर रेशियो” कहा जाता है — यानी एक औंस सोने की कीमत को एक औंस चांदी की कीमत से विभाजित करना।
यदि यह अनुपात अधिक होता है (जैसे 80:1), तो इसका अर्थ है कि चांदी तुलनात्मक रूप से सस्ती है, और निवेशक इसे खरीदने की ओर आकर्षित होते हैं।
इस अनुपात का घट–बढ़ना भी भारतीय चांदी बाजार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाता है।
मुद्रास्फीति और ब्याज दरें – निवेशकों का समीकरण
चांदी, सोने की तरह, मुद्रास्फीति से सुरक्षा का साधन मानी जाती है।
जब महंगाई बढ़ती है, तो निवेशक ऐसी संपत्तियों में पैसा लगाना पसंद करते हैं जो “वास्तविक मूल्य” बनाए रखें।
इसके उलट, जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो निवेशक बैंक या बॉन्ड जैसी निश्चित आय वाली योजनाओं की ओर जाते हैं, जिससे चांदी की मांग घटती है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के नीतिगत फैसले — जैसे रेपो रेट में बदलाव — अप्रत्यक्ष रूप से चांदी के दाम को प्रभावित करते हैं।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि चांदी का बाजार केवल धातु नहीं, बल्कि आर्थिक भावनाओं का भी सूचक है।
निवेश और भावनात्मक जुड़ाव
भारतीय समाज में चांदी का एक भावनात्मक मूल्य जुड़ा हुआ है।
धार्मिक अवसरों, गृहप्रवेश, या बच्चे के जन्म पर चांदी के सिक्के या गिलास देना शुभ माना जाता है।
साथ ही, निवेशक इसे एक “मध्यम अवधि का सुरक्षित निवेश” मानते हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अब सिल्वर ETFs और सिल्वर बार ट्रेडिंग ने इसे और सुलभ बना दिया है।
ग्रामीण भारत में चांदी एक प्रकार का “सेविंग्स बैंक” मानी जाती है — जहाँ लोग नकदी की बजाय चांदी के रूप में बचत करना पसंद करते हैं।
यह परंपरा आज भी कीमतों में स्थिर मांग बनाए रखती है।
सरकारी नीतियां और आयात शुल्क का असर
भारत में चांदी की कीमतें सरकारी कर नीति, कस्टम ड्यूटी, और जीएसटी दरों से भी प्रभावित होती हैं।
अगर सरकार आयात शुल्क बढ़ाती है, तो कीमतों में तत्काल उछाल आता है क्योंकि व्यापारी यह लागत उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं।
वहीं, कभी–कभी सरकार विदेशी मुद्रा संतुलन बनाए रखने के लिए कीमती धातुओं के आयात पर अंकुश लगाती है, जिससे घरेलू आपूर्ति प्रभावित होती है।
इसलिए चांदी के बाजार में निवेश करने वाले लोगों को वित्त मंत्रालय और RBI की घोषणाओं पर पैनी नजर रखनी चाहिए।
वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य
वैश्विक तनाव, युद्ध, तेल की कीमतों में उतार–चढ़ाव, और लॉजिस्टिक रुकावटें चांदी की आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करती हैं।
उदाहरण के लिए, जब किसी प्रमुख उत्पादक देश जैसे मेक्सिको या पेरू में उत्पादन घटता है, तो वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं।
भारत, जो आयातक देश है, इस स्थिति से सीधे प्रभावित होता है।
इसके अलावा, अमेरिका–चीन व्यापार तनाव जैसे मसले भी अंतरराष्ट्रीय बुलियन बाजार में अस्थिरता पैदा करते हैं।
भविष्य की संभावनाएं – ‘ग्रीन इकोनॉमी’ की धातु
भविष्य में चांदी की मांग केवल पारंपरिक कारणों से नहीं, बल्कि तकनीकी और हरित ऊर्जा की दिशा से भी बढ़ने वाली है।
सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहनों, 5G इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल डिवाइसेस में चांदी का उपयोग लगातार बढ़ रहा है।
वर्ल्ड सिल्वर इंस्टीट्यूट के अनुसार, आने वाले वर्षों में औद्योगिक उपयोग के चलते चांदी की वैश्विक मांग ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच सकती है।
भारत जैसे उभरते बाजारों में यह एक सकारात्मक संकेत है — जो निवेश और उद्योग दोनों को अवसर देता है।
निष्कर्ष : चांदी – परंपरा, प्रौद्योगिकी और अर्थशास्त्र का संगम
चांदी भारतीय अर्थव्यवस्था का एक ऐसा प्रतिबिंब है जो परंपरा, निवेश और प्रौद्योगिकी — तीनों को जोड़ता है।
इसके दाम केवल धातु की कीमत नहीं दर्शाते, बल्कि यह भी बताते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है।
आज जब निवेशक तेजी से विविधता की तलाश में हैं, चांदी एक ऐसा विकल्प है जो सुरक्षा, स्थायित्व और औद्योगिक प्रगति – तीनों को संतुलित रूप में पेश करती है।
हालांकि, इसके बाजार में उतार–चढ़ाव को समझना जरूरी है, क्योंकि इसकी कीमतें केवल घरेलू नहीं बल्कि वैश्विक घटनाओं से भी संचालित होती हैं।
इसलिए कहा जा सकता है —
“चांदी की चमक केवल आभूषणों में नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक धड़कनों में भी झलकती है।”