Baramulla Review: बरामूला, स्मृतियों, निर्वासन और खोए अस्तित्व का मार्मिक चित्रण

Baramulla Review
Baramulla Review: मानव कौल की फिल्म में खोए अस्तित्व और निर्वासन की करुण कहानी (Photo: ScreenGrab / Netflix Trailer)
नवम्बर 7, 2025

Baramulla Review: स्मृतियों, निर्वासन और खोए अस्तित्व का मार्मिक चित्रण

नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित मानव कौल अभिनीत फिल्म ‘बरामूला’ केवल एक रहस्य या भय की कहानी नहीं है। यह एक ऐसी सिनेमाई यात्रा है, जो हमें कश्मीर की त्रासदी, स्मृति और मानवीय पीड़ा की गहराइयों तक ले जाती है। यह कहानी भूत-प्रेतों की नहीं, बल्कि उन ज़ख्मों की है जो समय के साथ भी नहीं भरते।

आरंभ: भय नहीं, बल्कि बिछोह का आतंक

‘बरामूला’ अपने नाम की तरह ही एक ठंडी और धुंधली कहानी बुनती है। फिल्म की शुरुआत डीएसपी रिदवान सैयद (मानव कौल) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बारामूला में बच्चों के रहस्यमय लापता होने की जांच कर रहा है। इन घटनाओं में सिर्फ एक निशानी मिलती है – बच्चों के कटे हुए बाल।
जांच के साथ ही यह कहानी केवल अपराध की खोज नहीं रह जाती, बल्कि धीरे-धीरे कश्मीर के ऐतिहासिक घावों और व्यक्तिगत पीड़ा की परतों को खोलती जाती है।

आंतरिक संघर्ष और आत्ममंथन की यात्रा

मानव कौल का रिदवान सैयद एक ऐसा किरदार है जो अपने कर्तव्य और अपनी आत्मा के बीच झूलता है। वह सिर्फ एक पुलिस अधिकारी नहीं, बल्कि एक पिता, एक पति और एक पीड़ित आत्मा है। उसका मौन और उसकी दृष्टि ही संवाद बन जाते हैं।
जब वह अपने अतीत और वर्तमान के बीच भटकता है, तो दर्शक उसके भीतर के टूटन को महसूस करते हैं। फिल्म का यही मौन सबसे गूंजता हुआ क्षण बन जाता है।

परिवार, खोई पहचान और स्मृतियों का बोझ

Baramulla Review: भाषा सुम्बली, जो फिल्म में रिदवान की पत्नी का किरदार निभाती हैं, मौन की भाषा को एक नई परिभाषा देती हैं। उनकी उपस्थिति किसी तूफ़ान की तरह है—धीमी, परंतु विनाशकारी।
परिवार के भीतर की जद्दोजहद, अपने घर से बिछड़ने की पीड़ा, और पहचान के खो जाने की बेचैनी, इन सबको निर्देशक ने बिना किसी नाटकीयता के दिखाया है।

निर्वासन की त्रासदी और इतिहास की गूंज

फिल्म का चरम बिंदु किसी भूतिया रहस्य का नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सच्चाई का है—कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की त्रासदी।
निर्देशक और लेखक ने इस दर्द को किसी नारे या संवाद में नहीं, बल्कि मौन में पिरोया है। ‘बरामूला’ का अंतिम हिस्सा एक सिनेमा नहीं, बल्कि एक प्रार्थना बन जाता है—उन लोगों के लिए जो अब भी अपने घरों की ओर देख रहे हैं, शायद लौटने की उम्मीद में।

अभिनय और प्रस्तुति की गहराई

मानव कौल ने इस फिल्म में अभिनय की वह परत खोली है जो लंबे समय तक दर्शक के मन में रह जाती है। उनका चेहरा हर दृश्य में कहानी कहता है।
उनकी बेटी के साथ उनके दृश्य विशेष रूप से प्रभावशाली हैं—भावनाओं से भरे, पर फिर भी संयमित। भाषा सुम्बली ने जिस तरह से एक टूटी हुई स्त्री का चित्र खींचा है, वह फिल्म की आत्मा बन जाती है।

तकनीकी पक्ष और सिनेमाई संवेदना | Baramulla Review

‘बरामूला’ का छायांकन और संगीत इसे एक स्वप्नवत अनुभव बनाते हैं। कश्मीर की घाटियों में फैली उदासी और सन्नाटा, कैमरे के हर फ्रेम में जीवंत है।
फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी गहराती है, यह दर्शक को अपनी पकड़ में ले लेती है।

एक सिनेमाई प्रार्थना

‘बरामूला’ किसी डरावनी कहानी से कहीं अधिक है। यह स्मृति, पीड़ा और अस्तित्व के खोने की कहानी है। यह उन आत्माओं की पुकार है जो विस्थापन की आग में झुलस गईं, पर अब भी यादों में जीवित हैं।

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Asfi Shadab

Writer, thinker, and activist exploring the intersections of sports, politics, and finance.