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महाकाल मंदिर पहुंचीं अभिनेत्री नुसरत भरूचा, भड़क उठे मौलाना

Nusrat Bharucha Mahakal Darshan
Nusrat Bharucha Mahakal Darshan (Credit- IG Nusrat Bharucha)
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में नुसरत भरूचा के दर्शन के बाद मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के बयान से धार्मिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है। यह मामला आस्था, निजी स्वतंत्रता और धार्मिक व्याख्या के टकराव को उजागर करता है।
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Nusrat Bharucha Mahakal Darshan: उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के दौरान बॉलीवुड अभिनेत्री नुसरत भरूचा की उपस्थिति ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आस्था व्यक्तिगत होती है या सामुदायिक पहचान से नियंत्रित। नुसरत ने भगवान महाकाल के दर्शन किए, जल अर्पित किया और मंदिर की परंपराओं का पालन किया। यह दृश्य सामान्य श्रद्धा का प्रतीक लग सकता था, लेकिन इसके बाद आई प्रतिक्रियाओं ने इस घटना को धार्मिक, सामाजिक और वैचारिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया।

महाकाल दर्शन और उठता विवाद

नुसरत भरूचा ने महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती में भाग लिया और शांत भाव से पूजा-अर्चना की। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोई राजनीतिक या वैचारिक बयान नहीं दिया। यह उनका निजी आध्यात्मिक अनुभव था, जिसे उन्होंने परंपराओं के अनुरूप पूरा किया। कई लोगों ने इसे धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक सम्मान का प्रतीक माना।

मामले ने तब विवाद का रूप लिया, जब ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम महिला का मंदिर जाकर पूजा करना, जल चढ़ाना और हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना इस्लाम और शरीयत के खिलाफ है। उनके अनुसार नुसरत ने धार्मिक नियमों का उल्लंघन किया है।

बरेली से जारी अपने बयान में मौलाना ने कहा कि शरीयत की नजर में नुसरत भरूचा गुनहगार हैं और उन्हें तौबा करनी चाहिए। उन्होंने इस्तेगफार और कलमा पढ़ने की सलाह दी। यह बयान आते ही सोशल मीडिया और समाज में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।

क्या आस्था पर किसी का अधिकार हो सकता है

इस विवाद ने एक बुनियादी सवाल खड़ा कर दिया है—क्या किसी व्यक्ति की आस्था पर किसी संगठन या धर्मगुरु का अधिकार हो सकता है। भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता देता है। किसी भी व्यक्ति को अपनी आस्था व्यक्त करने या किसी धार्मिक स्थल पर जाने का अधिकार है, बशर्ते वह कानून और शांति का पालन करे।

समर्थन और विरोध की दो धाराएं

सोशल मीडिया पर नुसरत भरूचा के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग सामने आए। उन्होंने कहा कि आस्था दिल का विषय है और किसी को किसी की भक्ति पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं। वहीं, कुछ लोग मौलाना के बयान के समर्थन में भी दिखे, जिन्होंने धार्मिक नियमों का हवाला दिया।

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Dipali Kumari

दीपाली कुमारी पिछले तीन वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने रांची के गोस्सनर कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। सामाजिक सरोकारों, जन-जागरूकता और जमीनी मुद्दों पर लिखने में उनकी विशेष रुचि है। आम लोगों की आवाज़ को मुख्यधारा तक पहुँचाना और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों को धारदार लेखन के माध्यम से सामने लाना उनका प्रमुख लक्ष्य है।