Tu Meri Main Tera Movie Review: हिंदी सिनेमा में प्रेम कहानियों की एक लंबी और समृद्ध परंपरा रही है। समय के साथ इन कहानियों के रंग-ढंग बदले, लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह जॉनर कहीं न कहीं पीछे छूट गया। एक्शन, थ्रिलर और बड़े बजट की फिल्मों के शोर में साधारण प्रेम कहानियां कम नजर आने लगीं। ऐसे माहौल में निर्देशक समीर विध्वंस की फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा, मैं तेरा तू मेरी’ एक सुकून देने वाला ब्रेक बनकर सामने आती है।
क्रिसमस के मौके पर रिलीज हुई यह फिल्म न तो किसी बड़े सिनेमाई दावे के साथ आती है और न ही दर्शकों को चौंकाने की कोशिश करती है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यही है कि यह खुद को सरल, ईमानदार और भावनात्मक बनाए रखती है। फिल्म उन दर्शकों को ध्यान में रखकर बनी लगती है, जो दो घंटे के लिए शोर से दूर एक भावनात्मक कहानी में खो जाना चाहते हैं।
क्या है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी रेहान और रूमी के इर्द-गिर्द घूमती है। रेहान एक सहज, भावुक और अपने रिश्तों को पूरी ईमानदारी से निभाने वाला युवक है, जबकि रूमी अपने भीतर जिम्मेदारियों और भावनाओं का द्वंद्व लिए हुए एक आत्मनिर्भर युवती है। दोनों की मुलाकात एक यात्रा के दौरान होती है। शुरुआत में हल्की-फुल्की नोकझोंक, हंसी-मजाक और अनजानेपन के बीच दोस्ती पनपती है।
यात्रा खत्म होती है, लेकिन रिश्ते की शुरुआत यहीं से होती है। दोनों एक-दूसरे की आदतों, खामियों और अच्छाइयों को स्वीकार करने लगते हैं। कब यह दोस्ती प्यार में बदल जाती है, इसका एहसास उन्हें खुद भी नहीं होता। कहानी तब मोड़ लेती है, जब शादी की बात सामने आती है। रूमी अपने पिता को अकेला छोड़ने की कल्पना से परेशान हो जाती है और यहीं से फिल्म रिश्तों, जिम्मेदारी और त्याग जैसे सवाल उठाती है।
यह कहानी किसी बड़े ट्विस्ट पर नहीं, बल्कि भावनात्मक सच्चाई पर टिकी है, जो इसे आम दर्शक से जोड़ती है।
निर्देशन और कहानी कहने का अंदाज
समीर विध्वंस ने इस फिल्म को बहुत ही सादे और संतुलित तरीके से निर्देशित किया है। उन्होंने कहानी को न तो खींचा है और न ही उसे जरूरत से ज्यादा भावुक बनाने की कोशिश की है। फिल्म का पहला हिस्सा हल्का, रोमांटिक और मनोरंजक है, जो दर्शकों को किरदारों के साथ जोड़ता है।
दूसरा हिस्सा ज्यादा गंभीर और भावनात्मक हो जाता है, जहां रिश्तों की वास्तविकता सामने आती है। निर्देशक यहां दर्शकों को सोचने का मौका देते हैं कि प्यार सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि एक-दूसरे की परिस्थितियों को समझने का नाम भी है।
सिनेमेटोग्राफी और संगीत का योगदान
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के मूड के साथ पूरी तरह मेल खाती है। यात्रा के दृश्य, शहर की हलचल और निजी पलों को कैमरे ने सादगी से कैद किया है। दृश्य भले ही भव्य न हों, लेकिन आंखों को सुकून देते हैं।
संगीत फिल्म की आत्मा को मजबूत करता है। गाने कहानी में जबरदस्ती नहीं घुसते, बल्कि भावनाओं को आगे बढ़ाते हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी सीन के मूड को समझदारी से सपोर्ट करता है।
अभिनय में दिखी परिपक्वता
कार्तिक आर्यन रेहान के किरदार में सहज और विश्वसनीय लगते हैं। उनका रोमांटिक अंदाज परिचित जरूर है, लेकिन इमोशनल दृश्यों में उन्होंने परिपक्वता दिखाई है। अनन्या पांडे रूमी के किरदार में अपने पिछले कामों से आगे निकलती नजर आती हैं। उन्होंने भावनात्मक द्वंद्व को संतुलित तरीके से निभाया है।
नीना गुप्ता अपने छोटे लेकिन प्रभावी किरदार में गहराई छोड़ जाती हैं। वहीं, जैकी श्रॉफ का शांत और गंभीर अभिनय कहानी को मजबूती देता है और रिश्तों की परिपक्व समझ को सामने लाता है।
क्यों देखी जानी चाहिए यह फिल्म
यह फिल्म उन दर्शकों के लिए है, जो बड़े एक्शन सीन या तेज रफ्तार कहानी की बजाय भावनात्मक जुड़ाव को महत्व देते हैं। ‘तू मेरी मैं तेरा, मैं तेरा तू मेरी’ यह याद दिलाती है कि प्यार सिर्फ रोमांस नहीं, बल्कि समझ, जिम्मेदारी और त्याग भी है.