Sreenivasan Passes Away: मलयालम सिनेमा से एक बेहद दुखद और भावुक कर देने वाली खबर सामने आई है। सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना मानने वाले वरिष्ठ अभिनेता, लेखक और फिल्ममेकर श्रीनिवासन का आज 20 दिसंबर को निधन हो गया। 69 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।
श्रीनिवासन का नाम मलयालम सिनेमा में केवल एक अभिनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक विचार के रूप में याद किया जाएगा। वे उन कलाकारों में से थे, जिन्होंने सिनेमा को चमक-दमक से निकालकर ज़मीन से जोड़ा। उनकी मौत की खबर सामने आते ही पूरी इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई। कलाकारों से लेकर लेखकों, निर्देशकों और दर्शकों तक हर कोई इस अपूरणीय क्षति से आहत है।
आज सुबह अस्लीपताल में ली अंतिम सांस
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, श्रीनिवासन लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे। केरल के उदयमपेरूर स्थित उनके आवास पर ही उनका इलाज चल रहा था। स्वास्थ्य अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें त्रिप्पुनिथुरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां सुबह 8 बजकर 22 मिनट पर उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। फिलहाल उनके पार्थिव शरीर को तालुक अस्पताल में रखा गया है। अंतिम संस्कार को लेकर परिवार की ओर से आधिकारिक जानकारी का इंतजार है।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
श्रीनिवासन अपने पीछे पत्नी विमला और दो बेटों को छोड़ गए हैं। उनके बड़े बेटे विनीत श्रीनिवासन मलयालम सिनेमा का जाना-माना नाम हैं, जो अभिनेता, गायक और निर्माता के रूप में पहचान बना चुके हैं। छोटे बेटे ध्यान श्रीनिवासन भी अभिनय और निर्देशन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। पिता के निधन से पूरा परिवार गहरे सदमे में है।
सिनेमा को समाज से जोड़ने वाला कलाकार
श्रीनिवासन का जन्म केरल के कन्नूर जिले में थलस्सेरी के पास पट्याम में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन और परिवेश से मिले अनुभवों को ही अपनी रचनाओं की आत्मा बनाया। उनकी कहानियों में आम आदमी की चिंताएं, मध्यवर्ग की विडंबनाएं और सामाजिक पाखंड खुलकर सामने आते थे।
श्रीनिवासन उन दुर्लभ कलाकारों में से थे, जिन्होंने लेखन और अभिनय दोनों क्षेत्रों में समान रूप से सफलता हासिल की। उन्होंने ‘ओडारुथम्मव आलरियाम’, ‘सनमानसुल्लावरक्कु समाधानम’, ‘गांधीनगर सेकंड स्ट्रीट’ और ‘पत्तनप्रवेशम’ जैसी फिल्मों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी लिखी कहानियां केवल मनोरंजन नहीं करती थीं, बल्कि सोचने पर मजबूर भी करती थीं।
व्यंग्य और यथार्थ का संतुलन
उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे गंभीर सामाजिक मुद्दों को भी हल्के व्यंग्य के साथ प्रस्तुत कर देते थे। फिल्म ‘संदेशम’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें राजनीति और समाज दोनों पर तीखा कटाक्ष किया गया। इसी तरह ‘मझयेथुम मुनपे’ जैसी फिल्मों ने मानवीय संवेदनाओं को गहराई से छुआ।
इन फिल्मों से कमाया नाम
श्रीनिवासन ने अपने करियर में 225 से अधिक फिल्मों में योगदान दिया। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, केरल राज्य फिल्म पुरस्कार, केरल फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन अवॉर्ड, फिल्मफेयर अवॉर्ड साउथ और एशियानेट फिल्म अवॉर्ड जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। ये पुरस्कार उनकी लोकप्रियता से अधिक उनकी वैचारिक मजबूती के प्रमाण हैं।
बतौर अभिनेता उन्होंने ‘मणिमुझक्कम’, ‘स्नेहा यमुना’, ‘ओना पुडावा’ और ‘संघगानम’ जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। वे कभी नायक बने, कभी सहायक पात्र, लेकिन हर किरदार में अपनी छाप छोड़ गए। उनके अभिनय में दिखावा नहीं, बल्कि सहजता और सच्चाई होती थी।
इंडस्ट्री में शोक, दर्शकों में खालीपन
उनके निधन से मलयालम सिनेमा में एक ऐसा खालीपन आ गया है, जिसे भर पाना आसान नहीं होगा। वे ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने सत्ता, समाज और सिनेमा—तीनों से सवाल पूछने की हिम्मत की। आज जब सिनेमा तेजी से बाजार के दबाव में ढल रहा है, श्रीनिवासन जैसी आवाज़ों की कमी और ज्यादा महसूस होती है।