पश्चिम बंगाल में बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLOs) की तरफ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक याचिका भेजे जाने की खबर ने राजनीतिक और प्रशासकीय हलकों में गहरी हलचल मचा दी है। इन अधिकारियों ने अपने पत्र में यह सवाल उठाया है कि चुनाव आयोग द्वारा उन्हें दी गई जिम्मेदारियों को पूरा करने में मदद के लिए आंकड़ा प्रविष्टि (डेटा एंट्री) परिचालकों की व्यवस्था क्यों नहीं की गई। उनका कहना है कि लगातार बढ़ता कार्यभार और मानसिक दबाव BLOs के स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
बूथ-स्तरीय अधिकारी कौन हैं और उनकी भूमिका क्या है?
बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLOs) वे स्थानीय अधिकारी होते हैं जो प्रत्येक मतदान बूथ के स्तर पर निर्वाचक सूची तैयार करने, संशोधित करने और सत्यापित करने का काम करते हैं। उनका दायित्व बहुत संवेदनशील होता है क्योंकि वे सीधे घर-घर जाकर मतदाता डेटा जमा करते हैं, आवश्यक सुधारों को नोट करते हैं, और निर्वाचन आयोग के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। इनकी भूमिका लोकतांत्रिक प्रक्रिया में केंद्रीय महत्व रखती है।
पत्र के मुख्य बिंदु: उनकी शिकायतें क्या हैं?
BLOs ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखे पत्र में निम्नलिखित मुख्य शिकायतें उठाई हैं:
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आंकड़ा प्रविष्टि परिचालकों की गंभीर कमी
उन्हें बताया गया है कि बहुत से BLOs व्यक्तिगत रूप से मतदान सूची के आंकड़े (एंरोलमेंट फॉर्म) को इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली में प्रविष्ट करने के लिए अकेले जिम्मेदार हैं। लेकिन पर्याप्त डेटा एंट्री परिचालकों की अनुपस्थिति के कारण यह काम भारी बोझ बन गया है। -
मानसिक और शारीरिक दबाव
पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि लगातार काम करना और डेटा संकलन के बाद उसे समय पर प्रविष्ट करना BLOs पर बेतहाशा दवाब डाल रहा है। कई BLOs अस्पताल में भर्ती हो गए हैं, जबकि कुछ की मनोदशा ऐसी हो गई है कि उन्होंने आत्महत्या की तीव्र संभावना जताई है। -
चुनाव आयोग के विरुद्ध मुख्यमंत्री की कार्रवाई का आश्चर्यजनक विरोधाभास
BLOs इस तथ्य पर हैरानी व्यक्त करते हैं कि मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग के समक्ष SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया रोकने की मांग की है और उसे “खतरनाक, अव्यवस्थित और जबरन” बताया है। लेकिन वहीं लोक स्तर पर जिसे उन्होंने मुद्दा बताया है — डेटा प्रवेश की कमी — उसे हल करने की दिशा में उन्होंने कदम क्यों नहीं उठाए? -
राजनीतिक दबाव और धमकियाँ
पत्र में यह भी दावा किया गया है कि कुछ राजनीतिक नेता BLOs को धमका रहे हैं। कुछ ने यह तक कहा कि BLOs को पेड़ से बांध दिया जाए, जबकि अन्य नेता उन्हें निगरानी में रखने की बात कह रहे हैं। BLOs का कहना है कि मुख्यमंत्री ने उन नेताओं के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे उन्हें असुरक्षा का अनुभव हो रहा है। -
क़ीमती माँगें
BLOs की मांग यह है कि राज्य सरकार चुनाव आयोग को तुरंत कम-से-कम 1000 आंकड़ा प्रविष्टि परिचालक उपलब्ध कराए। इसके अतिरिक्त, जिन्होंने अत्यधिक दबाव के कारण बीमारी झेली है या जीवन गँवाया है, उनके परिवारों के लिए उचित मुआवजे की व्यवस्था की जाए।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कदम
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही चुनाव आयोग के प्रमुख को एक कड़ा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने SIR प्रक्रिया को तत्काल रोके जाने की मांग की है। उन्होंने लिखा कि BLOs की जान चले जाने की खबरें उनके लिए चिंता का विषय हैं और इसे एक “जोखिमपूर्ण, अराजक और बाध्यकारी” प्रक्रिया कहा। यह पत्र राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ममता बनर्जी BLOs की कल्याण की ओर संवेदनशीलता दिखा रही हैं, लेकिन BLOs का कहना है कि सिर्फ संवेदनशीलता ही पर्याप्त नहीं — व्यावहारिक सहायता भी मिलनी चाहिए।
चुनाव आयोग और प्रशासन की जिम्मेदारी
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह बूथ-स्तरीय अधिकारियों के कार्यभार को संतुलित कर सके। यदि BLOs को पर्याप्त डेटा प्रविष्टि सहयोग नहीं मिलता है, तो अकुशलता, गलतियाँ और तनाव बढ़ सकते हैं। इसके अलावा, BLOs का स्वास्थ्य और मनोबल लोकतंत्र की आधारशिला है — यदि वे तनाव में हैं, तो निर्वाचन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ेगा।
स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार को यह विचार करना चाहिए कि चुनाव की तैयारियों में BLOs के समर्थन के लिए बजट और संसाधन प्रस्तुत किए जाएँ। डेटा प्रविष्टि परिचालकों की बहाली एक त्वरित लेकिन महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है। साथ ही, राजनीतिक नेताओं से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे BLOs को धमकाएँ न दें और उनके योगदान का सम्मान करें।
BLOs की मांगों का संभावित समाधान
BLOs की मांगों को हल करने के लिए कुछ व्यावहारिक कदम उठाए जा सकते हैं:
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तत्काल भर्ती: राज्य सरकार के माध्यम से चुनाव आयोग को आंकड़ा प्रविष्टि परिचालकों को भर्ती करने का प्रस्ताव देना चाहिए। यह 1000 से अधिक परिचालकों की आवश्यकता BLOs की ओर से उठाई गई है।
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विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम: डेटा प्रविष्टि कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिए ताकि वे निर्वाचन प्रक्रिया और डिजिटल प्रणाली को समझ सकें।
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मनोवैज्ञानिक सहायता: BLOs को मनोवैज्ञानिक परामर्श एवं सपोर्ट सर्विस दी जानी चाहिए, क्योंकि काम का बोझ और धमकियाँ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।
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मुआवजा योजना: जो BLOs बीमार हुए हैं या जिनकी मृत्यु हो गई हो, उनके परिवारों को राज्य सरकार द्वारा मुआवजा योजनाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
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राजनीतिक जवाबदेही: उन नेताओं के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए जो BLOs को धमका रहे हैं या अपमानजनक टिप्पणियाँ कर रहे हैं। मुख्यमंत्री और पार्टी नेतृत्व को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि BLOs को राजनीतिक दबाव से सुरक्षा मिले।
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समीक्षा और निगरानी तंत्र: चुनाव आयोग और राज्य सरकार के बीच संवाद बढ़ाना चाहिए और एक निगरानी समिति बनाई जानी चाहिए, जिसमें BLOs की समस्याओं की समीक्षा होती हो और उन्हें समय-समय पर हल करने के उपाय प्रस्तावित किए जाएँ।
राजनीतिक और सामाजिक महत्व
इस मुद्दे का महत्व सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी गहरा है। BLOs लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ हैं। यदि उनका काम सुचारू रूप से न चल पाए, तो मतदाता सूची की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा, और निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं। इसके अलावा, BLOs की आत्म-मूल्य भावना और उनकी सुरक्षा लोकतांत्रिक संस्थानों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में अहम है।
मुख्यमंत्री द्वारा चुनाव आयोग को भेजे गए पत्र ने दिखाया कि वह BLOs के हालात को गंभीरता से देख रही हैं। लेकिन BLOs की याचिका यह चेतावनी देती है कि सिर्फ लिखित समर्थन ही पर्याप्त नहीं है — ठोस कदम उठाना अनिवार्य हो गया है।
बूथ-स्तरीय अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजा गया यह पत्र उनके संघर्ष को राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय ध्यान में लाता है। BLOs की मांग डेटा प्रविष्टि परिचालकों की भर्ती, मानसिक सहायता, और मुआवजे की है। चुनाव आयोग और राज्य सरकार के लिए यह चुनौती है कि वे BLOs का सम्मान करें और उन्हें व्यावहारिक सहारा दें। लोकतंत्र की प्रक्रिया तभी मजबूत बनेगी, जब उसके सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले लोग सुरक्षित, समर्थ और प्रेरित महसूस करेंगे।