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गडचिरोली की बेटी श्वेता कोवे ने एशियन पैरा गेम्स में जीते स्वर्ण और कांस्य पदक, दिव्यांगता को बनाया अपनी ताकत

Shweta Kove: गडचिरोली की छात्रा ने जीते स्वर्ण और कांस्य पदक, पढ़ें पूरी कहानी
Shweta Kove: गडचिरोली की छात्रा ने जीते स्वर्ण और कांस्य पदक, पढ़ें पूरी कहानी (X Photo)
गडचिरोली के कढोली गांव की छात्रा श्वेता भास्कर कोवे ने एशियन पैरा गेम्स में स्वर्ण और कांस्य पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया। महात्मा ज्योतिबा फुले कला महाविद्यालय, आष्टी की यह छात्रा दिव्यांगता पर विजय पाकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं। उनका संघर्षपूर्ण सफर साबित करता है कि दृढ़ संकल्प और मेहनत से हर मुश्किल आसान हो जाती है।
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महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले की एक साधारण छात्रा ने अपने असाधारण हौसले और मेहनत से पूरे देश का नाम रोशन कर दिया है। हाल ही में संपन्न हुए एशियन पैरा गेम्स में गडचिरोली के कढोली गांव की बेटी कुमारी श्वेता भास्कर कोवे ने व्यक्तिगत प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक और टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया है। श्वेता महात्मा ज्योतिबा फुले कला महाविद्यालय, आष्टी की छात्रा हैं जो वन वैभव शिक्षण मंडल, अहेरी द्वारा संचालित है।

दिव्यांगता को बनाया अपनी पहचान

श्वेता की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। जिस दिव्यांगता को अक्सर लोग कमजोरी समझते हैं, श्वेता ने उसी को अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने साबित कर दिया कि शरीर की सीमाएं मन के हौसले को कभी रोक नहीं सकतीं। दुबई में हुई इस अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में उनका प्रदर्शन शानदार रहा और उन्होंने दो पदक जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया।

कढोली से दुबई तक का संघर्षपूर्ण सफर

गडचिरोली जिले के एक छोटे से गांव कढोली से दुबई के अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं था। श्वेता का यह सफर कठिनाइयों से भरा रहा। एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली लड़की के लिए खेल के क्षेत्र में करियर बनाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन श्वेता ने हर मुश्किल का सामना किया और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रहीं।

उनके परिवार ने भी हर कदम पर उनका साथ दिया। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने में कोई कमी नहीं आने दी। श्वेता ने अपने माता-पिता के त्याग और विश्वास को सफलता में बदल दिया।

शिक्षा संस्थान की भूमिका

महात्मा ज्योतिबा फुले कला महाविद्यालय, आष्टी और वन वैभव शिक्षण मंडल, अहेरी ने श्वेता के सपनों को पंख देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्थान ने न केवल उन्हें शिक्षा दी बल्कि खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पूरा सहयोग भी किया। यह दिखाता है कि जब शिक्षण संस्थान अपने छात्रों की प्रतिभा को पहचानते हैं और उन्हें सही मार्गदर्शन देते हैं, तो वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्टता हासिल कर सकते हैं।

कठोर परिश्रम और आत्मविश्वास का फल

श्वेता की सफलता का राज उनकी कड़ी मेहनत और अटूट आत्मविश्वास में छिपा है। उन्होंने दिन-रात अभ्यास किया और अपने कौशल को निखारा। खेल के मैदान में उन्होंने हर दिन अपनी सीमाओं को पार किया। उनका दृढ़ संकल्प यह था कि वे न केवल अपने लिए बल्कि अपने गांव, जिले और देश के लिए कुछ बड़ा करेंगी।

प्रशिक्षण के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कभी सुविधाओं की कमी तो कभी आर्थिक तंगी, लेकिन श्वेता ने कभी हार नहीं मानी। उनका मानना है कि जहां चाह होती है वहां राह भी मिल ही जाती है।

एशियन पैरा गेम्स में शानदार प्रदर्शन

दुबई में आयोजित एशियन पैरा गेम्स में श्वेता ने अपने खेल कौशल से सबको चौंका दिया। व्यक्तिगत प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और टीम स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल किया। यह उपलब्धि केवल उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरे गडचिरोली जिले के लिए गौरव का विषय है।

उनके इस प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी शहर या गांव की मोहताज नहीं होती। अगर सही मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और अवसर मिले तो छोटे गांवों से भी विश्वस्तरीय खिलाड़ी तैयार हो सकते हैं।

युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत

श्वेता की कहानी देश के करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। खासकर उन युवाओं के लिए जो किसी न किसी चुनौती से जूझ रहे हैं। उनकी सफलता यह संदेश देती है कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन हों, अगर इरादे मजबूत हों तो सफलता जरूर मिलती है।

दिव्यांग युवाओं के लिए श्वेता एक रोल मॉडल हैं। उन्होंने दिखाया है कि दिव्यांगता कोई बाधा नहीं है बल्कि यह एक अलग तरह की क्षमता है जिसे सही दिशा में लगाकर असाधारण परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

गडचिरोली जिले का गौरव

गडचिरोली जिला, जो अक्सर विकास की दौड़ में पीछे रह जाता है, आज श्वेता की वजह से पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह उपलब्धि जिले के हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है। स्थानीय लोग श्वेता को अपना नायक मान रहे हैं और उनकी सफलता का जश्न मना रहे हैं।

यह सफलता जिले के अन्य युवाओं को भी खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। श्वेता ने साबित कर दिया है कि गडचिरोली जैसे दूरदराज के जिलों में भी प्रतिभा की कमी नहीं है, बस जरूरत है तो सही अवसर और मार्गदर्शन की।

सरकार और समाज की जिम्मेदारी

श्वेता जैसी प्रतिभाओं को और प्रोत्साहन देने की जरूरत है। सरकार को ऐसे खिलाड़ियों के लिए बेहतर सुविधाएं, प्रशिक्षण केंद्र और आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं की पहचान और उन्हें बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए।

समाज को भी दिव्यांग खिलाड़ियों के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। उन्हें सहानुभूति नहीं बल्कि समान अवसर और सम्मान की जरूरत है। श्वेता ने यह साबित कर दिया है कि दिव्यांग खिलाड़ी भी किसी से कम नहीं हैं।

आगे की राह

श्वेता के लिए यह सफर यहीं खत्म नहीं होता। उनके सामने अभी और भी कई लक्ष्य हैं। पैरालंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना और वहां भी पदक जीतना उनका सपना है। उनकी मेहनत और समर्पण को देखते हुए कोई संदेह नहीं कि वे आने वाले समय में और भी बड़ी सफलता हासिल करेंगी।

उनकी यह उपलब्धि सिर्फ एक शुरुआत है। श्वेता का सफर युवाओं को यह सिखाता है कि असफलता से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उससे सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। हर चुनौती एक नया अवसर लेकर आती है और हर कठिनाई हमें मजबूत बनाती है।

श्वेता भास्कर कोवे ने अपनी सफलता से यह संदेश दिया है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करना किसी की बपौती नहीं है। चाहे आप किसी छोटे गांव से हों या बड़े शहर से, चाहे आप दिव्यांग हों या सामान्य, अगर आपके भीतर जुनून है, मेहनत करने का माद्दा है और खुद पर विश्वास है तो दुनिया की कोई भी ऊंचाई आपसे दूर नहीं है। गडचिरोली की यह बेटी आज पूरे देश के लिए गर्व की वजह बन चुकी है।

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Asfi Shadab

एक लेखक, चिंतक और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता, जो खेल, राजनीति और वित्त की जटिलता को समझते हुए उनके बीच के रिश्तों पर निरंतर शोध और विश्लेषण करते हैं। जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरल, तर्कपूर्ण और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध।