CJI गवई की विदाई में संविधान, धर्मनिरपेक्षता और आंबेडकर की विरासत का संदेश
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई के विदाई समारोह में एक ऐसा भावनात्मक और अर्थपूर्ण क्षण सामने आया, जिसने न्यायपालिका, संविधान और भारतीय समाज के बहुलतावादी चरित्र को एक साथ उजागर कर दिया। 23 नवंबर को अपने अंतिम कार्य दिवस से पहले सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस विदाई कार्यक्रम में जस्टिस गवई ने अपने जीवन, अपने सफर, अपने विश्वास और न्यायपालिका की भूमिका पर स्पष्ट और संवेदनशील विचार व्यक्त किए। उन्होंने न केवल अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए, बल्कि यह भी बताया कि भारत के न्यायिक ढांचे को किस प्रकार कार्य करना चाहिए और इसमें CJI की क्या भूमिका होनी चाहिए। उनका संदेश साफ था कि सुप्रीम कोर्ट किसी एक व्यक्ति पर आधारित संस्था नहीं है, बल्कि यह पूरे तंत्र और सभी जजों की साझा जिम्मेदारी है।
उन्होंने स्वयं को बौद्ध धर्म मानने वाला बताया, पर इसके साथ यह भी जोड़ दिया कि वे किसी एक धर्म के अध्ययन या पालन तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वे सच में धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हैं और सभी धर्मों को समान भाव से स्वीकार करते हैं। यही वह बिंदु था, जहां उन्होंने अपने पिता द्वारा डॉ. भीमराव आंबेडकर से प्रेरित जीवन मूल्यों और एक दरगाह में जाने की यादों का जिक्र किया। उनका यह वक्तव्य समाज के उस विविध, समानता-आधारित और स्वतंत्र भाव की प्रतिध्वनि था, जिसकी कल्पना भारत का संविधान करता है।
दलित समुदाय से शिखर तक पहुंचने का संघर्ष
भारत की न्यायिक व्यवस्था में यह दुर्लभ रहा है कि दलित समुदाय से आने वाला कोई व्यक्ति देश का मुख्य न्यायाधीश बने। जस्टिस गवई ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनका यह सफर व्यक्तिगत क्षमताओं का परिणाम नहीं, बल्कि भारतीय संविधान की देन है। उन्होंने म्युनिसिपल स्कूल में जमीन पर बैठकर पढ़ने के दिनों का जिक्र किया और बताया कि उन्हें कभी भी उम्मीद नहीं थी कि एक दिन वे देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठेंगे। यह यात्रा केवल उनकी मेहनत की नहीं, बल्कि उस न्यायिक संरचना की भी है, जिसने अवसर के द्वार सबके लिए खुला रखा।
उन्होंने कहा कि आज वे जो हैं, वह डॉ. भीमराव आंबेडकर की सोच और संविधान के कारण हैं। न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसी संवैधानिक मान्यताओं को उन्होंने अपने जीवन में हमेशा महत्व दिया। उनके शब्दों में यह स्पष्ट था कि उन्होंने केवल अपने करियर में नहीं, बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में भी संविधान को आधार बनाया।
सुप्रीम कोर्ट किसी एक व्यक्ति पर निर्भर संस्था नहीं
अपने भाषण के एक महत्वपूर्ण हिस्से में जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट न तो केवल CJI के नाम से पहचाना जाना चाहिए, न ही उसके कार्यों को किसी एक पद से जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि फैसले अकेले नहीं लिए जाते, बल्कि पूरी पीठ के सामने चर्चा होती है। यह कहना कि केवल CJI फैसले करते हैं, न्यायपालिका की सामूहिकता और पारदर्शिता को कम आंकना होगा।समाज की विविधता और न्यायपालिका की सोच
जस्टिस बीआर गवई के भाषण में भारतीय समाज की विविधता और संविधान के संतुलित दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई दिया। उन्होंने यह संदेश दिया कि देश की न्यायपालिका को केवल कानूनी पुस्तकों के आधार पर नहीं, बल्कि समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के सम्मान के साथ भी निर्णय लेने चाहिए। उनके शब्दों ने संकेत दिया कि न्याय केवल कानून नहीं, बल्कि भावनाओं और सामाजिक संरचनाओं को भी समझने की मांग करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायों की निष्पक्षता तभी संभव है, जब सभी जज, बार और न्यायिक कर्मचारी एक साथ अपने दायित्वों को निभाएं। उनके इस दृष्टिकोण ने न्यायपालिका को एक व्यक्ति आधारित व्यवस्था के बजाय सहभागिता आधारित संस्था के रूप में रखा।
धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा, गवई के अनुभव से
विदाई समारोह में एक क्षण ऐसा आया, जिसने जस्टिस गवई की सोच को और स्पष्ट कर दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि वे बौद्ध धर्म मानते हैं, पर किसी भी धर्म का विस्तृत अध्ययन नहीं किया। इसके बाद उन्होंने कहा कि वे सच में धर्मनिरपेक्ष हैं, क्योंकि वे हर धर्म को समान भाव से स्वीकार करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता डॉ. आंबेडकर में विश्वास करते थे और उनकी प्रेरणा उन्हें जीवन के विभिन्न अनुभवों से मिली।
यहां उन्होंने एक दरगाह जाने का जिक्र भी किया। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण बनी क्योंकि इससे भारतीय समाज के साझा सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने को सम्मान मिला। उनके शब्दों में यह विचार स्पष्ट था कि किसी भी पद, धर्म या पहचान से ऊपर इंसानियत और संवैधानिक मूल्य ही व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हैं।
न्यायपालिका की साझेदारी और मित्रता की मिसाल
कार्यक्रम में भावी CJI जस्टिस सूर्यकांत ने जस्टिस गवई के साथ अपनी दो दशक पुरानी मित्रता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वे हमेशा दोस्त बने रहेंगे। यह भाव न्यायपालिका के मानवीय पक्ष को भी सामने लाता है, जहां पदों से ऊपर संबंध और मूल्य जीवित रहते हैं। यह साझेदारी केवल दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि न्यायपालिका की सामूहिक भावना का प्रतीक बनकर सामने आई।