मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत का पहला दिन: न्यायपालिका में नई दिशा
24 नवंबर, 2025 को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत ने शपथ ग्रहण किया। राष्ट्रपति भवन में शपथ लेने के बाद उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहाँ उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ. बी.आर. आंबेडकर की प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित किए। इस अवसर पर न्यायपालिका में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ और न्यायपालिका में पारदर्शिता एवं अनुशासन को लेकर उनके दृष्टिकोण का परिचय मिला।
पहले दिन की सुनवाई और निर्णय
जस्टिस सूर्यकांत ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने पहले दिन में दो घंटे में 17 मामलों की सुनवाई की। इस दौरान उन्होंने तीन न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व किया, जिसमें जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अतल एस. चंदुरकर भी शामिल थे।
उनका पहला फैसला हिमाचल प्रदेश की एक निजी फर्म के खिलाफ दायर याचिका पर आया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्ष ने न्यायालय कक्ष में उनके स्वागत की घोषणा की।
न्यायपालिका में डिजिटल परिवर्तन की पहल
जस्टिस सूर्यकांत ने पहले दिन ही संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट में डिजिटल प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने पर जोर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और डिजिटल दस्तावेज़ीकरण से न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और पारदर्शिता आएगी। इससे न केवल वकीलों और आम जनता को सुविधा होगी, बल्कि मामलों की लंबित संख्या कम करने में भी मदद मिलेगी।
न्यायपालिका में युवा वकीलों की भागीदारी
नए मुख्य न्यायाधीश ने युवा वकीलों के प्रयासों को सराहा और उनके सुझावों को सुनने के लिए समय निकाला। उन्होंने यह कहा कि न्यायपालिका का विकास केवल न्यायाधीशों तक सीमित नहीं है, बल्कि वकीलों और नागरिकों की भागीदारी भी महत्वपूर्ण है। इस दृष्टिकोण से युवा पीढ़ी के लिए न्यायपालिका में नई संभावनाएँ खुलेंगी।
न्यायपालिका में पारदर्शिता और प्रक्रिया का सुधार
नए मुख्य न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर किसी मामले की तत्काल सूचीबद्धता केवल लिखित अनुरोध पर ही की जाएगी। उन्होंने कहा कि जिन मामलों में स्वतंत्रता, मृत्युदंड या किसी असाधारण परिस्थिति का प्रश्न हो, वही तत्काल सूचीबद्ध किए जाएंगे।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में मौखिक उल्लेख की प्रथा को बंद किया था, जबकि उनके उत्तराधिकारी जस्टिस गवई ने इसे पुनः शुरू किया था। जस्टिस सूर्यकांत ने इस प्रथा को नियंत्रित और व्यवस्थित रूप में लागू करने का संकेत दिया।
संवैधानिक अनुशासन पर विशेष ध्यान
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने पहले दिन ही संवैधानिक अनुशासन और विधिक मर्यादा पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सभी मामलों की सुनवाई निष्पक्ष, त्वरित और संवैधानिक ढांचे के अनुरूप होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने रजिस्ट्री और कोर्ट स्टाफ को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए ताकि न्यायपालिका में उच्चतम स्तर का अनुशासन बना रहे।
सामाजिक न्याय और न्यायपालिका की जिम्मेदारी
नए सीजेआई ने अपने भाषण में सामाजिक न्याय पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका केवल कानून के पालन का माध्यम नहीं है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी उसका दायित्व है। उनके दृष्टिकोण से न्यायालय को न्याय के साथ-साथ समाज में विश्वास पैदा करने वाला संस्थान बनाना होगा।
वकीलों और न्यायालय का पहला संवाद
सुप्रीम कोर्ट में मौजूद वकीलों ने जस्टिस सूर्यकांत का गर्मजोशी से स्वागत किया। एक वकील ने उन्हें “किसान का बेटा, जो प्रधान न्यायाधीश बन गया है” कहकर बधाई दी, जिससे उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान दिखाई दी। जस्टिस सूर्यकांत ने उत्तर दिया, “शुक्रिया। मैं चंडीगढ़ के युवा वकीलों को भी देख सकता हूं।”
न्यायालय में नए प्रशासनिक दिशा-निर्देश
मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत ने यह निर्देश भी दिया कि किसी भी मामले की जल्दी सुनवाई केवल लिखित आवेदन और रजिस्ट्री के निरीक्षण के बाद ही संभव होगी। इस कदम से न्यायालय की प्रक्रियाओं में अनुशासन और न्यायिक जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है।
न्यायपालिका में न्याय और सामाजिक प्रतिबद्धता
जस्टिस सूर्यकांत का व्यक्तित्व न्यायपालिका में न केवल विधिक विशेषज्ञता बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए भी जाना जाता है। उनके कार्यक्षेत्र में पारदर्शिता, त्वरित सुनवाई और न्यायिक अनुशासन को महत्व मिलेगा। उन्होंने पहले दिन ही यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका का उद्देश्य केवल मामलों का निपटारा नहीं, बल्कि समाज में विश्वास और विश्वासयोग्य न्याय प्रणाली को मजबूत करना है।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत के सामने कई चुनौतियाँ हैं। वर्तमान समय में न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या अधिक है और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। नए प्रधान न्यायाधीश ने संकेत दिया कि वे न केवल मामलों की त्वरित सुनवाई को प्राथमिकता देंगे, बल्कि न्यायपालिका में डिजिटल व्यवस्था और प्रक्रिया में पारदर्शिता को भी बढ़ावा देंगे।
न्यायपालिका का नया युग
जस्टिस सूर्यकांत के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट में नए युग की शुरुआत हुई है। उनके पहले दिन की गतिविधियाँ दर्शाती हैं कि न्यायपालिका में न केवल अनुशासन बल्कि सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी को भी प्रमुखता मिलेगी। उनका दृष्टिकोण न्यायपालिका को जनता के और भी करीब लाने का है।