कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ का सशक्त संबोधन
नई दिल्ली के पुस्तक विमोचन समारोह में पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का संबोधन न केवल गंभीर चिंतन प्रस्तुत करता है, बल्कि हास्य, स्पष्टवादिता और कर्तव्यनिष्ठा के अनूठे मिश्रण का उदाहरण भी बन गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऑल इंडिया एग्जीक्यूटिव मेंबर मनमोहन वैद्य की नई पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ के विमोचन अवसर पर धनखड़ का वक्तव्य कई बार तालियों और ठहाकों से गूंज उठा। उनके संबोधन ने कार्यक्रम को जीवंत बना दिया और उपस्थित जनसमूह के चेहरे पर मुस्कान और विचार, दोनों एक साथ छोड़ गया।
फ्लाइट समय की पर्ची पर धनखड़ की त्वरित प्रतिक्रिया
अपने संबोधन के दौरान जब एक युवक उनके हाथ में एक पर्ची थमाता है, जिस पर उनकी फ्लाइट का समय लिखा होता है, तभी मनोरंजक अंदाज में उन्होंने कहा, “संदेश आ गया। समय सीमा है। मैं फ्लाइट पकड़ने की चिंता से अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकता।” इस एक वाक्य ने परिसर में मौजूद हर व्यक्ति को प्रभावित किया। यह केवल एक हल्का-फुल्का वक्तव्य नहीं था, बल्कि यह उनके कर्तव्यबोध और उनकी प्राथमिकताओं का स्पष्ट संकेत था। पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से भर उठता है और माहौल उत्साहपूर्ण हो जाता है।
इसके बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “दोस्तो, मेरा हाल का अतीत इसका सबूत है।” यह सुनते ही परिसर में ठहाके गूंज उठे। इस तरह के वक्तव्य उनकी विनम्रता और सहजता को दर्शाते हैं।
#WATCH | Bhopal, Madhya Pradesh | At the launch of the book ‘Hum Aur Yah Vishva,’ written by RSS All India Executive Member Manmohan Vaidya, Former Vice President Jagdeep Dhankar says, “…In today’s time, people are drifting away from morality and spirituality. ‘Main flight… pic.twitter.com/OWbfcEy0XO
— ANI (@ANI) November 21, 2025
नैरेटिव की राजनीति पर तीखी टिप्पणी
अपने संबोधन के अगले हिस्से में धनखड़ गंभीर मुद्दों पर आए। उन्होंने कहा कि भगवान करे कोई भी व्यक्ति नैरेटिव के जाल में न फंसे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अपना उदाहरण नहीं दे रहे, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक समस्या है कि लोग दूसरों को नैरेटिव का शिकार बनाने की कोशिश करते हैं।
धनखड़ का कहना था कि व्यक्ति इन नैरेटिव्स से अकेले नहीं लड़ सकता, पर संस्थाएं लड़ सकती हैं। यह विचार वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां सूचनाओं और कथाओं का आदान-प्रदान तेजी से होता है और अक्सर कई गलत धारणाएं भी इसी माध्यम से पनपती हैं। धनखड़ ने राष्ट्र की अवधारणा को बहुत सीमित करने की प्रवृत्ति पर भी गहरा खेद व्यक्त किया।
पुस्तक की प्रासंगिकता और सांस्कृतिक दृष्टि
धनखड़ ने मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ के बारे में कहा कि यह पुस्तक पाठकों को भारतीय विमर्श के भीतर गहराई से झांकने का अवसर प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि यदि कोई इस पुस्तक में डुबकी लगाएगा तो उसे भारत के गौरवशाली अतीत और वैश्विक दृष्टि का एहसास होगा।
उन्होंने कहा कि यह पुस्तक केवल अतीत की गौरवगाथा नहीं सुनाती, बल्कि भविष्य निर्माण की प्रेरणा भी देती है। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को पुनर्स्थापित करने वाली इस पुस्तक को उन्होंने ‘सोए हुए को जगाने वाली कृति’ भी बताया।
कार्यक्रम में विशेष अतिथियों की उपस्थिति
इस विमोचन कार्यक्रम में कई विशिष्ट अतिथि भी उपस्थित रहे। इनमें मनमोहन वैद्य के साथ दैनिक जागरण समूह के कार्यकारी संपादक विष्णु त्रिपाठी तथा वृंदावन स्थित श्रीआनंदम धाम के पीठाधीश्वर सदगुरु ऋतेश्वर जी महाराज शामिल थे। उनके समक्ष दिया गया यह संबोधन कार्यक्रम की गरिमा को और अधिक बढ़ाता है।
इस्तीफे के बाद पहली सार्वजनिक उपस्थिति
धनखड़ का यह कार्यक्रम इसलिए भी खास रहा क्योंकि उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद यह उनकी पहली सार्वजनिक उपस्थिति थी। 21 जुलाई 2025 को उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया था। इस कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति और उनका संबोधन यह दर्शाता है कि वे अभी भी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं और विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी आवाज बुलंद करने के इच्छुक हैं।
कर्तव्यनिष्ठा और नेतृत्व का संदेश
कार्यक्रम के दौरान बार-बार यह स्पष्ट हुआ कि धनखड़ के लिए कर्तव्य सर्वोपरि है। उनका फ्लाइट समय को लेकर किया गया वक्तव्य केवल मजाक नहीं था, बल्कि यह उनके नेतृत्व और जीवन दृष्टि का संकेत था। उन्होंने यह संदेश दिया कि जिनके पास ज़िम्मेदारी होती है, उन्हें सुविधा से अधिक कर्तव्य को स्थान देना चाहिए। यह संदेश युवाओं, छात्रों और समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायक है।
सामाजिक और राष्ट्रीय विमर्श पर गहन दृष्टि
धनखड़ ने देश, समाज और वैश्विक विमर्श पर अपने विचार रखते हुए स्पष्ट किया कि भारत को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहकर आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता और दर्शन विश्व को दिशा दे सकते हैं और यह पुस्तक उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका विमोचन केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत के वैचारिक योगदान को पुनः स्थापित करने का प्रयास भी था।