श्रम सुधारों की नई दिशा
केंद्र सरकार ने श्रम सुधारों को नई गति देते हुए आज से चारों नई श्रम संहिताओं को लागू कर दिया है। इन संहिताओं के माध्यम से देश के श्रमिकों, कंपनियों और उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था—तीनों के मध्य बेहतर तालमेल स्थापित करने का प्रयास किया गया है। पांच वर्षों से लंबित इन सुधारों को लागू किए जाने के साथ ही देश के श्रम कानूनों में दशकों बाद व्यापक परिवर्तन की शुरुआत हो गई है। सरकार का कहना है कि ये कदम भारत को एक आधुनिक, सुरक्षित और उत्पादक कार्यबल उपलब्ध कराएंगे और आर्थिक प्रतिस्पर्धा को मजबूती देंगे।
एक वर्ष में ग्रेच्युटी का अधिकार
नए प्रावधानों में सबसे बड़ा परिवर्तन ग्रेच्युटी से संबंधित है। अब तक ग्रेच्युटी के लिए किसी कर्मचारी को कम से कम पाँच वर्ष की नौकरी पूरी करनी अनिवार्य थी। नई श्रम संहिताओं के तहत यह शर्त समाप्त कर दी गई है। अब केवल एक वर्ष की नौकरी के बाद ही कर्मचारी ग्रेच्युटी पाने का अधिकार रखता है। यह व्यवस्था स्थायी कर्मचारियों के साथ-साथ फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों पर भी लागू होगी। इस परिवर्तन से उद्योगों में कार्यरत बड़ी संख्या में श्रमिकों को सीधे लाभ प्राप्त होगा।
गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा
डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ गिग और प्लेटफॉर्म कार्यकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पहली बार सरकार ने इन श्रमिकों को औपचारिक रूप से श्रम कानूनों की परिधि में शामिल किया है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य कवर और सुरक्षा निधियों का लाभ देने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए सभी एग्रीगेटर कंपनियों को अपने वार्षिक कारोबार का एक से दो प्रतिशत योगदान करना होगा।
गिग श्रमिकों के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर जारी किया जाएगा जो पूरे देश में पोर्टेबल रहेगा। इससे वे किसी भी राज्य में काम करें, उनकी पहचान और लाभ दोनों स्थिर बने रहेंगे।
न्यूनतम वेतन और ओवरटाइम पर नई व्यवस्था
नए श्रम कोड के तहत अब सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन की गारंटी अनिवार्य होगी। इससे पहले अलग-अलग क्षेत्रों और उद्योगों के लिए अलग-अलग प्रावधान थे, जिसकी वजह से कई श्रमिक इस दायरे से बाहर रह जाते थे।
काम के घंटों को लेकर भी स्पष्ट व्यवस्था की गई है। दैनिक कार्य अवधि 8 से 12 घंटे और साप्ताहिक कार्य अवधि 48 घंटे निर्धारित की गई है। ओवरटाइम के लिए अब दोगुना भुगतान देना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान श्रमिकों के शोषण को रोकने और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
महिलाओं के लिए सुरक्षा और समान अवसर
नई श्रम संहिताओं में महिलाओं को अत्यधिक लाभ पहुंचाने वाले स्पष्ट प्रावधान शामिल किए गए हैं। अब महिलाओं को सभी क्षेत्रों में, यहां तक कि खतरनाक उद्योगों और खदानों में भी, सुरक्षा उपायों के साथ नाइट शिफ्ट में काम करने की अनुमति दी जाएगी।
समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया गया है। परिवार की परिभाषा में महिलाओं को अपने सास-ससुर को जोड़ने का अधिकार भी प्रदान किया गया है, जिससे पारिवारिक उत्तरदायित्वों को देखते हुए उन्हें अधिक सहूलियत मिलेगी।
स्वास्थ्य सुरक्षा और वार्षिक चिकित्सा जांच
40 वर्ष से अधिक आयु के सभी श्रमिकों के लिए वार्षिक स्वास्थ्य जांच अनिवार्य की गई है। इससे न केवल उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा बल्कि रोकथाम आधारित स्वास्थ्य प्रणाली को भी बल मिलेगा। साथ ही पूरे देश में ईएसआईसी कवरेज को विस्तारित किया गया है जिससे छोटे, खतरनाक या असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक भी सरकारी सुरक्षा दायरे में आएंगे।
एकल रजिस्ट्रेशन और पारदर्शी प्रणाली
नई श्रम संहिताएँ कंपनियों के लिए भी बड़ी राहत लाती हैं। अब सिंगल रजिस्ट्रेशन, सिंगल लाइसेंस और सिंगल रिटर्न व्यवस्था लागू होगी। इससे कंपनियों पर भार कम होगा और अनुपालन में सरलता आएगी।
इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर प्रणाली के तहत सजा देने की जगह मार्गदर्शन और जागरूकता पर जोर दिया जाएगा। वहीं, विवादों के त्वरित समाधान के लिए दो सदस्यीय औद्योगिक न्यायाधिकरण गठित किए गए हैं। सुलह प्रक्रिया के बाद सीधे ट्रिब्यूनल में जाने का विकल्प उपलब्ध होगा।
वस्त्र, आईटी, डिजिटल मीडिया और खदान क्षेत्र भी दायरे में
नई संहिताओं के दायरे को व्यापक बनाते हुए सरकार ने वस्त्र उद्योग, आईटी-आईटीईएस, डिजिटल और ऑडियो-विजुअल मीडिया, पोर्ट ऑपरेशंस और निर्यात क्षेत्रों के कर्मचारियों को भी शामिल किया है। इन सभी को सात तारीख तक वेतन भुगतान अनिवार्य किया गया है।
खदानों और खतरनाक उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों की सुरक्षा के लिए ऑन-साइट सुरक्षा मानक निर्धारित किए गए हैं और 500 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में सुरक्षा समितियां अनिवार्य की गई हैं।
आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक निवेश की संभावनाएँ
सरकार का मानना है कि पुरानी श्रम व्यवस्थाएं न केवल जटिल थीं बल्कि बदलती अर्थव्यवस्था के अनुरूप भी नहीं थीं। नए प्रावधान श्रमिकों और उद्योगों—दोनों की आवश्यकताओं का संतुलन बनाते हैं और भारत को निवेश-अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और घरेलू उद्योगों से निवेश बढ़ने की उम्मीद जताई गई है, जिससे रोजगार सृजन को गति मिल सकती है।