लोकपाल के बीएमडब्ल्यू टेंडर ने मचाई सियासी हलचल
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार विरोधी संस्था लोकपाल ने अपने सदस्यों के लिए सात BMW लग्जरी कारों की खरीद हेतु निविदा (टेंडर) जारी किया है। इस कदम ने तुरंत ही राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है और विपक्ष ने इसे सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के रूप में प्रस्तुत किया है। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने लोकपाल के इस निर्णय की तीव्र आलोचना करते हुए सवाल उठाए कि जब सुप्रीम कोर्ट के जजों को साधारण सेडान कारें दी जाती हैं, तो लोकपाल सदस्यों को बीएमडब्ल्यू की आवश्यकता क्यों है।
कांग्रेस का विरोध और सवाल
पी. चिदंबरम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि इन कारों को खरीदने के लिए पब्लिक के पैसे का उपयोग क्यों किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि कम से कम एक या दो सदस्य इन कारों को खरीदने से इंकार कर सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने इसे “दुखद विडंबना” करार देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी संस्था अब अपने सदस्यों के लिए लक्जरी कारें मंगवा रही है।
सिंघवी ने बताया कि लोकपाल ने 2019 में अपनी स्थापना के बाद से कुल 8,703 आवेदन प्राप्त किए, जिनमें से केवल 24 मामलों की जांच हुई और केवल 6 अभियोजन स्वीकृत हुए। उनके अनुसार, यह स्थिति इस संस्था की वास्तविक कार्यक्षमता पर सवाल उठाती है।
विवाद की शुरुआत और टेंडर विवरण
16 अक्टूबर को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार लोकपाल ने सात बीएमडब्ल्यू 3 सीरीज Li कारों की आपूर्ति के लिए खुला टेंडर मंगाया। इस टेंडर में BMW को लोकपाल के ड्राइवरों और स्टाफ को सात दिनों की प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करने का भी निर्देश दिया गया। टेंडर की कीमत लगभग 70 लाख रुपये प्रति कार बताई गई है।
लोकपाल के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए.एम. खानविलकर हैं। सदस्यों में रिटायर जज जस्टिस एल. नारायण स्वामी, जस्टिस संजय यादव और जस्टिस ऋतु रात अवस्थी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा तथा रिटायर जज-ब्यूरोक्रेट्स पंकज कुमार और अजय तिर्की शामिल हैं।
लोकपाल की भूमिका और आलोचना
लोकपाल की स्थापना भ्रष्टाचार के मामलों की निष्पक्ष जांच और राज्य में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से हुई थी। किन्तु, बीएमडब्ल्यू कारों के टेंडर ने इस संस्था की छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आलोचक मानते हैं कि यह कदम आम जनता के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक है, क्योंकि संस्था के सदस्य उच्च वेतन और सुविधाओं के बावजूद लग्जरी कारों की मांग कर रहे हैं।
विपक्ष का कहना है कि यह टेंडर केवल प्रतीकात्मक रूप से ही भ्रष्टाचार विरोधी संदेश को कमजोर नहीं करता, बल्कि जनता के बीच लोकपाल की विश्वसनीयता पर भी असर डालता है।
विशेषज्ञों की राय
नीति विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी संस्थानों में ऐसे महंगे खरीद निर्णय जनता के दृष्टिकोण से असंवेदनशील माने जा सकते हैं। कुछ विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि ऐसे मामलों में अधिक पारदर्शिता और वैकल्पिक साधनों पर विचार किया जाना चाहिए, ताकि संस्थाओं का उद्देश्य और संसाधनों का उपयोग संतुलित बना रहे।
लोकपाल के इस निर्णय पर राजनीतिक उठापटक लगातार जारी है और आने वाले दिनों में संसद या मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस मुद्दे पर बहस की संभावना जताई जा रही है।
लोकपाल द्वारा सात BMW कारों का टेंडर जारी करना न केवल सार्वजनिक धन के उपयोग पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि भ्रष्टाचार विरोधी संस्था की नैतिक जिम्मेदारी और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना रहेगा।