National Herald Case: नेशनल हेराल्ड मामला पिछले एक दशक से भारतीय राजनीति और न्यायिक व्यवस्था के बीच खड़े सबसे संवेदनशील मामलों में गिना जाता रहा है। आज मंगलवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट से इस मामले में गांधी परिवार को बड़ी राहत मिली. अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार करते हुए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बड़ी राहत दी है।
यह फैसला ऐसे समय आया है, जब विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है। अदालत के इस रुख ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जांच एजेंसियों की कार्रवाई न्यायिक कसौटी पर टिक पा रही है या नहीं।
नेशनल हेराल्ड मामला क्या है
नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना वर्ष 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। यह अखबार स्वतंत्रता आंदोलन की वैचारिक आवाज माना जाता रहा है। इसका प्रकाशन ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड’ नामक कंपनी द्वारा किया जाता था, जिसमें कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की भूमिका रही।
समय के साथ अखबार आर्थिक संकट में चला गया और कंपनी पर भारी कर्ज चढ़ गया। इसी दौरान वर्ष 2010 में ‘यंग इंडियन लिमिटेड’ नामक कंपनी अस्तित्व में आई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की हिस्सेदारी प्रमुख बताई गई। आरोप लगाया गया कि यंग इंडियन के जरिए एसोसिएटेड जर्नल्स की संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल किया गया।
कैसे शुरू हुआ पूरा विवाद
इस पूरे मामले की शुरुआत भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर की गई शिकायत से हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेतृत्व ने साजिश के तहत यंग इंडियन के माध्यम से हजारों करोड़ की संपत्तियों पर कब्जा किया। इसके बाद यह मामला अदालत पहुंचा और जांच का दायरा बढ़ता चला गया।
प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के तहत जांच शुरू की और कई बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लंबी पूछताछ भी की गई। कांग्रेस पार्टी ने शुरू से इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया, जबकि सरकार का दावा रहा कि कानून अपना काम कर रहा है।
राउज एवेन्यू कोर्ट का ताजा फैसला
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने ईडी द्वारा दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार करते हुए कहा कि दस्तावेजों और तथ्यों की गहन समीक्षा आवश्यक है। अदालत का यह रुख ईडी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि चार्जशीट पर संज्ञान न लेना सीधे तौर पर जांच एजेंसी की दलीलों पर सवाल खड़ा करता है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यह दर्शाता है कि किसी भी हाई-प्रोफाइल मामले में केवल आरोप काफी नहीं होते, बल्कि ठोस और स्पष्ट सबूत भी जरूरी होते हैं।
कांग्रेस के लिए राजनीतिक संजीवनी
इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ने इसे सत्य की जीत बताया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि लंबे समय से गांधी परिवार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अदालत के फैसले ने साफ कर दिया कि कानून के सामने सभी समान हैं।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इस फैसले को लेकर उत्साह देखा गया। पार्टी के भीतर इसे आने वाले राजनीतिक संघर्षों के लिए मनोबल बढ़ाने वाला माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब विपक्ष एकजुट होकर सरकार पर सवाल उठा रहा है।