नेपाल में बीते कुछ दिनों से जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है। Nepal Social Media Ban के बाद हालात इतने बिगड़ गए कि सड़कों पर हज़ारों युवा उतर आए। अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से ज़्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। राजधानी काठमांडू से शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया है। संवेदनशील इलाक़ों में कर्फ़्यू लगा दिया गया है और हालात काबू में लाने के लिए सेना तक उतारनी पड़ी है।
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कैसे शुरू हुआ विवाद? | Nepal Social Media Ban
28 अगस्त को नेपाल सरकार ने सभी सोशल मीडिया कंपनियों को एक हफ़्ते के भीतर पंजीकरण करने का आदेश दिया था। लेकिन Meta (Facebook, Instagram, WhatsApp), Alphabet (YouTube), X (Twitter), LinkedIn, Reddit जैसी कंपनियों ने समय सीमा तक आवेदन नहीं किया। इसके बाद सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया।
दिलचस्प बात ये है कि TikTok, Viber और कुछ अन्य प्लेटफ़ॉर्म पहले से ही सरकार के साथ पंजीकृत हैं, इसलिए वे अब भी चल रहे हैं।
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युवाओं का ग़ुस्सा सिर्फ़ बैन पर नहीं
Nepal Social Media Ban: हालांकि, विरोध की असली वजह सिर्फ़ सोशल मीडिया बैन नहीं है। नेपाल के लाखों युवा Facebook और Instagram पर अपने कारोबार, मार्केटिंग और आजीविका पर निर्भर हैं। लेकिन जैसे ही प्लेटफ़ॉर्म बंद हुए, यह नाराज़गी सरकार की भ्रष्टाचार-रोधी नीतियों और “तानाशाही रवैये” के ख़िलाफ़ एक व्यापक आंदोलन में बदल गई।
प्रदर्शनकारियों ने कहा –
- “यह आंदोलन सिर्फ़ सोशल मीडिया के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और अन्याय के ख़िलाफ़ है।”
- “नेताओं के बच्चों का भविष्य सुरक्षित है, हमारा क्यों नहीं?”
सरकार की सफाई
Nepal Social Media Ban: नेपाल सरकार का कहना है कि वह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है, लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों को देश के क़ानून का पालन करना होगा। सरकार का तर्क है कि कई प्लेटफ़ॉर्म्स का इस्तेमाल ऑनलाइन फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों के लिए हो रहा है।
क्यों अहम है यह आंदोलन?
नेपाल की आबादी का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर निर्भर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, नेपाल में 1.3 करोड़ से अधिक Facebook और 36 लाख Instagram यूज़र्स हैं। यही वजह है कि सरकार का यह फ़ैसला सीधे युवाओं और व्यापारियों की आजीविका से जुड़ गया है।
इससे यह साफ़ है कि सोशल मीडिया बैन ने सिर्फ़ डिजिटल आज़ादी का सवाल नहीं खड़ा किया, बल्कि यह आंदोलन नेपाल की राजनीति और शासन व्यवस्था के प्रति जनता की गहरी असंतुष्टि को सामने लाता है।