भारत के श्रम कानूनों में ऐतिहासिक बदलाव
केंद्र सरकार ने देश के श्रमिक वर्ग को व्यापक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। शुक्रवार को सरकार ने चार प्रमुख श्रम संहिताओं को लागू कर दिया, जिससे मौजूदा 29 पुराने श्रम कानून न केवल सरल हुए, बल्कि उन्हें आधुनिक औद्योगिक जरूरतों के अनुरूप भी बनाया गया। इन संहिताओं के नाम हैं— मजदूरी संहिता, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020; तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्तें संहिता, 2020। इन संशोधनों के परिणामस्वरूप न्यूनतम मजदूरी से लेकर ग्रेच्युटी, ओवरटाइम, सामाजिक सुरक्षा और ईएसआईसी जैसे अनेक प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं।
मजदूरी संहिता 2019: न्यूनतम मजदूरी का समान अधिकार
मजदूरी संहिता 2019 संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों के श्रमिकों पर लागू होगी। पहले न्यूनतम मजदूरी केवल अनुसूचित श्रेणियों तक सीमित थी, जिसके कारण लगभग 70% कामगार इससे वंचित रहते थे। नई संहिता के अनुसार:
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हर श्रमिक को न्यूनतम वेतन पाने का वैधानिक अधिकार प्राप्त होगा।
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केंद्र सरकार एक ‘फ्लोर वेज’ निर्धारित करेगी, जिसके नीचे कोई भी राज्य न्यूनतम मजदूरी तय नहीं कर सकता।
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समान कार्य के लिए लिंग आधारित भेदभाव समाप्त किया जाएगा। इसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल किए गए हैं।
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समय पर वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा, तथा अवैध कटौतियों पर रोक लगाई जाएगी।
सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि किसी भी कर्मचारी से नियमित कार्य समय से अतिरिक्त काम लेने पर नियोक्ता को सामान्य मजदूरी के दोगुने भुगतान की बाध्यता होगी। इससे ओवरटाइम का शोषण रुकने की संभावना प्रबल होती है।
औद्योगिक संबंध संहिता 2020: एक वर्ष में ग्रेच्युटी की पात्रता
नई औद्योगिक संहिता के अंतर्गत ग्रेच्युटी प्रावधान सबसे प्रभावी माना जा रहा है। अब तक किसी कर्मचारी को ग्रेच्युटी का लाभ केवल पांच वर्ष तक कार्य करने पर मिलता था। नई संहिता के अनुसार:
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निश्चित अवधि के रोजगार यानी कॉन्ट्रैक्ट आधार पर नियुक्त कर्मचारी केवल एक वर्ष सेवा देने पर ग्रेच्युटी पाने के पात्र होंगे।
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छंटनी का सामना करने वाले श्रमिकों के लिए विशेष फंड बनाया जाएगा।
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छंटनी के बाद 45 दिनों के अंदर श्रमिक के खाते में मुआवजा जमा किया जाएगा।
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सेवा क्षेत्र में ‘वर्क फ्रॉम होम’ का प्रावधान कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त करेगा, बशर्ते दोनों पक्ष सहमत हों।
यह परिवर्तन उन कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जिन्हें अल्प अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है और जिनके पास लंबे समय तक नौकरी करने का सुरक्षा कवच नहीं होता।
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020: ईएसआईसी और ईपीएफ का विस्तार
नई सामाजिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा योजनाएं अब व्यापक दायरे में लागू होंगी।
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ईएसआईसी कवरेज पूरे भारत में बाध्यकारी होगा।
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10 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठान भी आपसी सहमति से ईएसआईसी में शामिल हो सकते हैं।
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खतरनाक क्षेत्रों और बागान उद्योग के कार्यकर्ता अनिवार्य रूप से शामिल किए जाएंगे।
वहीं, ईपीएफ के नियमों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया है:
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जांच और वसूली प्रक्रिया शुरू करने के लिए पांच वर्ष की समय सीमा तय की गई।
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दो वर्षों में पूरी कार्रवाई को पूरा करना होगा।
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अब नियोक्ता को अपील करने के लिए केवल आकलित राशि का 25% ही जमा करना होगा।
इन प्रावधानों से न केवल श्रमिकों को सुरक्षा मिलेगी, बल्कि ईपीएफ जैसे फंड की पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संहिता: कार्यस्थल की सुरक्षा सर्वोपरि
नए कोड का उद्देश्य श्रमिकों के कार्यस्थलों को सुरक्षित बनाना है। यह प्रावधान विशेष रूप से निर्माण, खदान, फैक्ट्री और खतरनाक उद्योगों पर लागू होगा। इसमें स्वास्थ्य जांच, प्रशिक्षण, सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने और कार्य परिस्थितियों को मानक के अनुरूप बनाने का प्रावधान शामिल है।श्रम कानूनों के सरलीकरण और आधुनिक रूप देने से औद्योगिक उत्पादकता में स्पष्ट सुधार की उम्मीद की जा रही है। नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच विवादों को कम करने से उद्योगों में स्थायित्व बढ़ेगा, जिससे उत्पादन क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। समान वेतन, समय पर भुगतान, और सुरक्षित कार्यस्थल जैसे प्रावधान श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं, क्योंकि वेतन और सुरक्षा से संतुष्ट कर्मचारी अधिक ध्यान और परिश्रम से काम करते हैं।
नए श्रम कोड से उम्मीदें और चुनौतियां
जहां ये संहिताएं श्रमिकों के लिए बड़े लाभ लेकर आई हैं, वहीं चुनौतियां भी मौजूद हैं। नियोक्ताओं को अब अधिक जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी, जबकि कर्मचारी वर्ग अधिक संगठित और सुरक्षित होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे औद्योगिक सद्भाव बढ़ेगा और रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे।लघु और मध्यम उद्योगों के लिए नई चुनौतियां
जहां यह नीति श्रमिकों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रही है, वहीं लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को लागत और अनुपालन बोझ का सामना करना पड़ सकता है। अधिक ओवरटाइम भुगतान, सुरक्षा साधनों का खर्च, और सामाजिक सुरक्षा योगदान जैसी जिम्मेदारियां छोटे उद्यमियों के लिए चुनौतियां पैदा कर सकती हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकाल में कुशल व सुरक्षित कार्यबल उद्योगों के लिए लाभकारी साबित होगा, जो उत्पादन और विश्वसनीयता में बढ़ोतरी करेगा।