Pariksha Pe Charcha 2025: देश में परीक्षा को लेकर बच्चों के मन में बैठा डर, दबाव और तनाव कोई नई बात नहीं है। दशकों तक परीक्षा को केवल अंकों और रैंक की दौड़ के रूप में देखा गया, जहां मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक संतुलन और आत्मविश्वास जैसे पहलू अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते थे। ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल परीक्षा पे चर्चा ने न केवल सोच बदली, बल्कि शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक नई राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया।
आज यह पहल एक नए मुकाम पर पहुंच चुकी है। कल तक परीक्षा पे चर्चा के लिए तीन करोड़ से अधिक पंजीकरण दर्ज किए जा चुके हैं। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि इतनी व्यापक भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि यह कार्यक्रम अब सिर्फ एक सरकारी आयोजन नहीं, बल्कि एक सच्चा जन आंदोलन बन चुका है।
परीक्षा पे चर्चा की ऐतिहासिक उपलब्धि
तीन करोड़ पंजीकरण का आंकड़ा अपने आप में अभूतपूर्व है। यह संख्या सिर्फ छात्रों की नहीं, बल्कि अभिभावकों और शिक्षकों की भी है, जो इस संवाद का हिस्सा बनना चाहते हैं। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, देश के शहरी क्षेत्रों से लेकर दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाकों तक, हर वर्ग ने इसमें रुचि दिखाई है।
यह सहभागिता बताती है कि परीक्षा पे चर्चा ने छात्रों के मन की बात को राष्ट्रीय मंच पर लाने का काम किया है। आज का छात्र केवल सवालों के जवाब नहीं चाहता, वह यह भी जानना चाहता है कि असफलता से कैसे निपटें, तनाव को कैसे संभालें और अपनी क्षमताओं को कैसे पहचानें।
परीक्षा पे चर्चा: 2018 में हुई थी शुरुआत
परीक्षा पे चर्चा की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी। इसका उद्देश्य छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को एक ऐसा मंच देना था, जहां वे बिना किसी औपचारिकता के परीक्षा, जीवन और करियर से जुड़े सवालों पर खुलकर बात कर सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं छात्रों से संवाद करते हैं और अपने अनुभवों के माध्यम से उन्हें मार्गदर्शन देते हैं।
यह कार्यक्रम पारंपरिक भाषण से अलग है। इसमें सवाल-जवाब का सीधा संवाद होता है, जिससे छात्र खुद को सुना हुआ महसूस करते हैं। यही वजह है कि धीरे-धीरे यह पहल छात्रों के बीच भरोसे का प्रतीक बन गई।
मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित सोच
परीक्षा पे चर्चा की सबसे बड़ी खासियत इसका मानसिक स्वास्थ्य पर फोकस है। प्रधानमंत्री कई बार इस बात पर जोर दे चुके हैं कि परीक्षा जीवन का अंत नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
कार्यक्रम के दौरान यह संदेश लगातार दिया जाता है कि असफलता से डरने की बजाय उससे सीखना चाहिए। छात्रों को यह समझाया जाता है कि तुलना की संस्कृति से बाहर निकलकर अपनी व्यक्तिगत क्षमता को पहचानना ज्यादा जरूरी है।
अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका
इस पहल में अभिभावकों और शिक्षकों को भी बराबर का भागीदार बनाया गया है। अक्सर बच्चों पर अनजाने में ही परिवार और समाज का दबाव बढ़ जाता है। परीक्षा पे चर्चा इस दबाव को पहचानने और कम करने की बात करती है।
शिक्षकों को प्रेरित किया जाता है कि वे सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करने तक सीमित न रहें, बल्कि छात्रों के भावनात्मक पक्ष को भी समझें। वहीं अभिभावकों से अपेक्षा की जाती है कि वे बच्चों को नंबरों से नहीं, बल्कि प्रयासों से आंकें।
डिजिटल प्लेटफॉर्म और बढ़ती पहुंच
डिजिटल माध्यमों के जरिए परीक्षा पे चर्चा की पहुंच और भी बढ़ी है। ऑनलाइन पंजीकरण, लाइव प्रसारण और रिकॉर्डेड सत्रों के कारण अब देश के किसी भी कोने से छात्र इसमें भाग ले सकते हैं।
तीन करोड़ से अधिक पंजीकरण यह दर्शाते हैं कि डिजिटल भारत की अवधारणा शिक्षा के क्षेत्र में भी मजबूत हो रही है।
भविष्य के लिए क्या मायने
तीन करोड़ पंजीकरण का आंकड़ा आने वाले समय में शिक्षा नीति और छात्र कल्याण योजनाओं के लिए भी दिशा तय करता है। यह साफ संकेत है कि देश का युवा वर्ग संवाद चाहता है, समझ चाहता है और सहयोग चाहता है।
परीक्षा पे चर्चा ने यह साबित कर दिया है कि अगर छात्रों से सही भाषा में बात की जाए, तो वे न सिर्फ सुनते हैं, बल्कि जुड़ते भी हैं।