नई दिल्ली।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष पर संगठन की गौरवमयी और प्रेरक यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने लिखा कि 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा RSS की स्थापना ने भारत में सेवा, त्याग और राष्ट्र निर्माण का एक नया मार्ग प्रशस्त किया। बीते सौ वर्षों में संघ ने न केवल सामाजिक बुनियाद को मजबूत किया बल्कि देश की संप्रभुता की रक्षा, कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण और भारतीय सभ्यता के मूल्यों का संवर्धन भी किया।
संघ का समावेशी दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों पर बल
सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने हाल ही में दिल्ली में यह स्पष्ट किया कि संघ का दृष्टिकोण समावेशी है। धर्म व्यक्तिगत पसंद का विषय है और समाज में टकराव नहीं, सामंजस्य होना चाहिए। संघ की शाखाएं और स्वयंसेवकों द्वारा संचालित कार्यक्रम अनुशासन, आत्मबल और भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व करने की प्रेरणा देते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन काल में संघ की भूमिका
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी संघ को “दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन” बताते हुए इसके योगदान की सराहना की। वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के समय संघ के स्वयंसेवक न केवल हिंसा से प्रभावित लोगों को सुरक्षा और चिकित्सा उपलब्ध कराते रहे बल्कि विस्थापित लोगों के पुनर्वास में भी सक्रिय योगदान दिया। पंजाब में संघ के स्वयंसेवकों की कार्रवाई को उस समय के मीडिया ने भी “The sword arm of Punjab” कहकर सम्मानित किया।
समाज सेवा और अल्पसंख्यकों के प्रति सुरक्षा
1984 में सिख विरोधी दंगों के दौरान संघ स्वयंसेवकों ने सिखों की सुरक्षा और राहत कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन के समय भी संघ ने अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों की रक्षा की। मार्च 1947 में श्री हरमंदिर साहिब पर हमले के समय आरएसएस स्वयंसेवकों ने मानव घेरा बनाकर उसे सफलतापूर्वक बचाया।
भारत के एकीकरण और राज्य स्वतंत्रता आंदोलनों में योगदान
संघ ने भारत के विभिन्न हिस्सों जैसे कश्मीर, गोवा, दादरा और नगर हवेली में राष्ट्रीय एकता बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई। 1954 में दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने में संघ के 200 स्वयंसेवक अग्रणी रहे। गोवा की आज़ादी के भूमिगत आंदोलनों में संघ के कई स्वयंसेवक शहादत भी दे चुके हैं।
आपातकाल और लोकतंत्र की रक्षा
1975 में जब भारत आपातकाल के दौर से गुज़रा, संघ ने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा में निर्णायक भूमिका निभाई। संघ के असंख्य स्वयंसेवक तानाशाही के खिलाफ खड़े हुए और देश में लोकतांत्रिक विकल्प बनाए रखने में मदद की।
समाज सेवा, त्याग और राष्ट्र निर्माण का प्रतीक
राजनाथ सिंह ने कहा कि RSS ने हमेशा निःस्वार्थ सेवा, राष्ट्रभक्ति और समाज सेवा को अपने मूल उद्देश्य के रूप में रखा। आपदाओं, प्राकृतिक विपदाओं और सामाजिक संकटों में संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचते रहे। समाज के कमजोर और दुर्गम हिस्सों तक पहुंचकर उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सशक्तिकरण के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाई।
संक्षेप में, RSS की यह शताब्दी यात्रा सेवा, त्याग और राष्ट्र निर्माण की मिसाल है। संघ ने लगातार व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया और आज भी इसकी शाखाएं और स्वयंसेवक समाज में अनुशासन, एकता और देशभक्ति का संदेश फैलाने में लगे हुए हैं।