Shivraj Patil: राजनीति में कुछ चेहरे सिर्फ पदों और ताकत से नहीं पहचाने जाते, बल्कि उनके शांत स्वभाव, संयमित दृष्टि और संवैधानिक परंपराओं के प्रति सच्ची निष्ठा से पहचाने जाते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल चाकुरकर भी ऐसे ही व्यक्तित्व थे, जिनकी उपस्थिति भारतीय राजनीति में हमेशा एक गरिमा और मर्यादा का भाव लेकर आई।
आज शुक्रवार सुबह करीब 6:30 बजे 91 वर्ष की आयु में उन्होंने लातूर स्थित अपने निवास ‘देवघर’ में अंतिम सांस ली। लंबे समय से बीमार चल रहे पाटिल का वर्षों से घर पर ही उपचार हो रहा था। उनका जाना केवल कांग्रेस का नुकसान नहीं, बल्कि उस पीढ़ी के अंतिम प्रतिनिधियों में से एक का जाना है, जो राजनीति को संवाद, शालीनता और संवैधानिक संतुलन के साथ जीती थी।
Saddened by the passing of Shri Shivraj Patil Ji. He was an experienced leader, having served as MLA, MP, Union Minister, Speaker of the Maharashtra Assembly as well as the Lok Sabha during his long years in public life. He was passionate about contributing to the welfare of… pic.twitter.com/muabyf7Va8
— Narendra Modi (@narendramodi) December 12, 2025
गरिमा के साथ निभाई जिम्मेदारियां
शिवराज पाटिल चाकुरकर का राजनीतिक जीवन बेहद व्यापक और बहुआयामी रहा। वे लोकसभा के स्पीकर रहे, कई केंद्रीय मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और देश के गृह मंत्री के रूप में 2008 के मुंबई आतंकी हमले जैसे सबसे कठिन दौर का नेतृत्व किया। 2008 के मुंबई हमले के बाद, जब पूरा देश आक्रोश और सदमे में था, पाटिल ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गृह मंत्री पद से इस्तीफा दिया। यह कदम आज भी राजनीतिक गरिमा का उदाहरण माना जाता है। अपने राजनीतिक करियर में पाटिल ने हमेशा संविधान और लोकतांत्रिक प्रणाली को सर्वोच्च माना। यही कारण है कि उनकी कार्यशैली को अक्सर ‘शांत लेकिन प्रभावी’ कहा जाता रहा।
2008 का कठिन दौर और उनकी जिम्मेदारी
मुंबई पर 26/11 आतंकी हमले का समय भारतीय इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय रहा। उस समय केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में शिवराज पाटिल पर भारी जिम्मेदारी थी। हमले के बाद राजनीतिक दबाव और जनता के आक्रोश के बीच उन्होंने जिस तरह से नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार की, उससे उनकी राजनीतिक संस्कृति का स्तर झलकता है। बाद में कई विश्लेषकों ने कहा कि यह कदम एक ऐसे नेता का था जो पद से बड़ा नहीं, अपना चरित्र और कर्तव्य बड़ा मानता है।
मराठवाड़ा में पाटिल की राजनीतिक पकड़
लातूर जिले के चाकुर से उनका राजनीतिक सफर न सिर्फ लंबा बल्कि बेहद मजबूत रहा। वे लातूर लोकसभा क्षेत्र से सात बार जनता के प्रतिनिधि रहे, और लगातार मराठवाड़ा की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाते रहे। 2004 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उनके राजनीतिक कद में कोई कमी नहीं आई; पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा और केंद्र में गृह मंत्री जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी।
मराठवाड़ा के लिए वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि विकास के मजबूत आधार भी थे। कांग्रेस के अनेक कार्यकर्ता आज भी बताते हैं कि पाटिल से मुलाकात करना कठिन नहीं, बल्कि सहज था—वे हर किसी के लिए समय निकाल लेते थे।
कांग्रेस पार्टी और राजनीति में शोक की लहर
उनके निधन की खबर आते ही कांग्रेस पार्टी में गहरा शोक छा गया। कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि पाटिल उस दौर के राजनेता थे, जहां बहसें तेज होती थीं, लेकिन भाषा और शालीनता अपनी जगह कभी नहीं छोड़ती थीं। उनके घर ‘देवघर’ में शोक व्यक्त करने वालों का लगातार आना इस बात का प्रमाण है कि उनके जाने से पैदा हुआ खालीपन केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी महसूस किया जा रहा है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे एक ऐसे मार्गदर्शक थे, जो अपनी उम्र के बावजूद समस्याओं का समाधान धैर्य के साथ समझाते थे।
परिवार, क्षेत्र और देश—सभी के लिए अपूरणीय क्षति
लातूर, मराठवाड़ा और पूरे महाराष्ट्र में पाटिल के निधन ने शोक की लहर पैदा कर दी है। कई स्थानीय नागरिक उन्हें उस नेता के रूप में याद करते हैं जिसकी आवाज कभी ऊंची नहीं होती थी, लेकिन जो अपनी बात तर्क और सादगी से मनवा लेता था। उनके परिवार के प्रति हर राजनीतिक दल ने संवेदनाएं व्यक्त की हैं, और एक स्वर में माना कि देश ने एक संयमी, अनुभवी और सादगीपूर्ण नेता खो दिया।