विवाह पंचमी में श्रीसीताराम विवाह उत्सव: भक्ति, परंपरा और दिव्य रस्मों का अद्भुत संगम
विवाह पंचमी हिंदू धर्म का वह पावन पर्व है, जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और जनकनंदिनी माता सीता का विवाह उत्सव बड़े हर्षोल्लास और धार्मिक भाव के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक विरासत, रीति-रिवाजों और लोकमान्यताओं का भी प्रतीक माना जाता है। विशेषकर अयोध्या में हर वर्ष विवाह पंचमी के दिन पूरा नगर भक्ति संगीत की मधुर ध्वनियों, भक्तिमय झांकियों और अनुष्ठानों की पवित्रता से सराबोर हो जाता है।
पावन पर्व का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
विवाह पंचमी का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में विस्तार से मिलता है। यह उत्सव मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कालांतर से यह पर्व विवाह संस्कार की मर्यादाओं, धर्म पर आधारित पारिवारिक व्यवस्था और आदर्श दांपत्य जीवन का प्रेरक उदाहरण माना जाता है।
धर्मग्रंथों में उल्लेखित राम-सीता विवाह केवल एक दिव्य समारोह नहीं, बल्कि जीवन के आदर्श सिद्धांतों का उद्घोष है। विवाह पंचमी के दिन भगवान श्रीराम का विवाह संस्कार समाज को मर्यादा, निष्ठा, आदर और धर्मपालन का संदेश देता है।

अयोध्या में निकाली जाती है भव्य राम बारात
अयोध्या में विवाह पंचमी का खास आकर्षण भगवान श्रीराम की भव्य बारात होती है। नगर की सड़कों पर भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। इस बारात में हाथी, घोड़े, दूल्हे के वाहनों का प्रतीक रथ, बैंड-बाजा और सांस्कृतिक दल शामिल होते हैं। भक्तगण, महिलाएं, साधु-संत और विदेशी पर्यटक भी बारात में सम्मिलित होकर राम-नाम की आराधना के स्वर में शामिल होते हैं।
इस अवसर पर दो दलों का प्रतीकात्मक निर्माण किया जाता है– एक पक्ष राजा दशरथ का और दूसरा राजा जनक का। दोनों पक्ष पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए दिव्य विवाह का उत्सव संपन्न करते हैं।

विवाह रस्मों में होता है मंगलाचार और गीत-भजन का आयोजन
श्रीसीताराम विवाह के दौरान विविध प्रकार की रस्में निभाई जाती हैं। इसमें सबसे पहले नंदिमुख संस्कार, वर-माला, दत्तक कन्या विदान, फेरे, सात प्रतिज्ञाएं और कन्यादान की परंपरा निभाई जाती है। विवाह मंत्रों के साथ-साथ मंगल गीतों और भजन-कीर्तन का समागम इस उत्सव को और भी विशेष बना देता है।
पारंपरिक लोकगीतों में सीता-राम विवाह की भावनाओं, माता सीता की सौम्यता और भगवान राम के मर्यादित स्वरूप का वर्णन होता है। महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीत इस धार्मिक आयोजनों में लोक संस्कृति की अनूठी झलक प्रस्तुत करते हैं।
भगवान के विवाह के बाद होता है राम कलेवा
विवाह उपरांत अयोध्या के मंदिरों में राम कलेवा का आयोजन किया जाता है। यह एक अद्भुत परंपरा है, जिसमें भगवान श्रीराम और माता सीता को नवविवाहित जोड़े के रूप में 56 प्रकार के व्यंजन समर्पित किए जाते हैं। प्रसाद में व्यंजन, मिठाइयां, फल और पान आदि शामिल होते हैं। भक्त, मंदिरों में प्रसाद पाकर स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं।
माता सीता की विदाई और भावनात्मक रस्में
विवाह के बाद अंतिम चरण में माता सीता की प्रतीकात्मक विदाई कराई जाती है। यह रस्म भक्तों के मन को गहरे भाव से स्पर्श करती है। लोकगीतों के माध्यम से जनकपुर से अयोध्या जाने की भावनात्मक विदाई का वर्णन किया जाता है। यह विदाई भारतीय विवाह प्रणालियों के आदर्श रूप की प्रेरणा मानी जाती है।
विवाह पंचमी पर पूजा और व्रत का विशेष महत्व
विवाह पंचमी के दिन अनेक लोग व्रत करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना के साथ भगवान श्रीराम और माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिरों में श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकांड एवं वैदिक मंत्रों का पाठ किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और पूजा करने से विवाह संबंधित बाधाएं दूर होती हैं और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
जनकपुर से अयोध्या तक भक्तों का विशेष आवागमन
विवाह पंचमी 2025 के अवसर पर नेपाल के जनकपुर और भारत की अयोध्या के बीच धार्मिक आवागमन में विशेष वृद्धि देखने को मिलती है। जनकपुर को माता सीता का जन्मस्थल माना जाता है, इसलिए वहां से हजारों श्रद्धालु विशेषत: राम-सीता विवाह के साक्षी बनने अयोध्या पहुँचते हैं। दोनों नगर न केवल धार्मिक संबंधों से जुड़े हैं, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान की भी अनोखी परंपरा निभाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक समितियाँ यात्रा और आवास की व्यवस्थाएँ करती हैं, जिससे श्रद्धालुओं के लिए यह पर्व सुखद अनुभव बन सके।
सांस्कृतिक उत्सव का समृद्ध स्वरूप
विवाह पंचमी के अवसर पर नगरों में झांकियां, सांस्कृतिक नृत्य, रामलीला और भक्तिमय कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यह पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय कला, साहित्य और लोक जीवन की धरोहर को भी जीवित रखता है।
विवाह पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का जीवंत उत्सव है। यह आदर्श दांपत्य जीवन, धर्मपालन, मर्यादा और प्रेम से परिपूर्ण भारतीय परंपरा का अमूल्य प्रतीक है। ऐसे दिव्य आयोजन समाज को धर्म और संस्कृति के संरक्षण की प्रेरणा देते हैं।