मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया बनी भय का कारण
पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहाँ मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के दौरान एक वृद्ध व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। घटना इलामबाज़ार क्षेत्र की है, जहाँ 70 वर्षीय क्षितीश मजूमदार का शव बुधवार रात उनके दामाद के घर के एक कमरे में फंदे से झूलता मिला। परिवार ने आरोप लगाया है कि वे मतदाता सूची संशोधन को लेकर अत्यधिक भय और मानसिक तनाव में थे।
यह घटना मात्र एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक असुरक्षा को उजागर करती है जो प्रशासनिक प्रक्रियाओं के प्रति आम नागरिकों में व्याप्त है। परिवार के अनुसार, मजूमदार पिछले कुछ दिनों से चिंतित थे क्योंकि उन्हें यह पता चला था कि वर्ष 2002 की मतदाता सूची में उनका नाम नहीं था। वे बार-बार कहते थे — “अगर मेरा नाम मतदाता सूची में नहीं है, तो क्या मुझे अब वापस बांग्लादेश जाना होगा?”
परिवार ने जताया भय और अविश्वास
परिवारजन बताते हैं कि क्षितीश मजूमदार पिछले कुछ हफ्तों से गहरी चिंता में थे। वे अक्सर चुनाव आयोग की कार्यवाही और पहचान प्रमाण से जुड़ी चर्चाओं में असुरक्षित महसूस करते थे।
उनकी बेटी ने कहा, “वे बार-बार कहते थे कि जिनका नाम मतदाता सूची में नहीं है, उन्हें देश छोड़ना पड़ सकता है। वे हर समाचार से डर जाते थे।”
मजूमदार की मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ गई थी कि वे कई दिनों से ठीक से भोजन भी नहीं कर रहे थे। अंततः बुधवार रात उन्होंने यह कठोर कदम उठा लिया।
पुलिस की प्रारंभिक जाँच और प्रशासन की चुप्पी
पुलिस ने इस मामले को ‘अस्वाभाविक मृत्यु’ (Unnatural Death) के रूप में दर्ज किया है और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्राथमिक जांच में आत्महत्या की पुष्टि हुई है, परंतु परिवार के दावे की भी पड़ताल की जा रही है।
अब तक चुनाव आयोग या जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। स्थानीय लोगों में प्रशासन की चुप्पी को लेकर असंतोष व्याप्त है। उनका कहना है कि यदि जागरूकता और भरोसे का माहौल बनाया गया होता, तो ऐसी घटना टाली जा सकती थी।
पिछले 72 घंटों में दूसरी घटना
यह घटना बीते 72 घंटों में राज्य में आत्महत्या का दूसरा मामला है, जो सीधे मतदाता सूची संशोधन से जुड़ा माना जा रहा है। इससे पहले कोलकाता के समीप पानिहाटी और कूचबिहार ज़िले में भी इसी तरह की घटनाएँ सामने आई थीं।
कूचबिहार में एक किसान ने आत्महत्या का प्रयास किया था, जो वर्तमान में अस्पताल में भर्ती है। लगातार घटित हो रही इन घटनाओं ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में भय और अविश्वास का माहौल पैदा कर दिया है।
विशेष पुनरीक्षण अभियान पर उठे प्रश्न
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाना है, परंतु इस प्रक्रिया के दौरान नागरिकों को डर और भ्रम में डाल देना प्रशासन की बड़ी विफलता मानी जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे अभियानों में पारदर्शिता और जनसंपर्क की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि स्थानीय स्तर पर लोगों को भरोसा दिलाने और जानकारी देने के उपाय किए जाते, तो यह भयावह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
समाज में भरोसे का संकट
यह दुखद घटना प्रशासनिक संवेदनहीनता की ओर भी संकेत करती है। एक नागरिक जिसने जीवनभर इस देश में रहकर अपने अधिकार निभाए, वह अंततः अपने ही नाम के सूची से मिट जाने के डर से जान दे बैठा — यह लोकतंत्र के लिए गम्भीर प्रश्न है।
यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग इस घटना की गहन जांच करे और जनता के बीच यह स्पष्ट संदेश दे कि मतदाता सूची पुनरीक्षण का उद्देश्य किसी नागरिक को वंचित करना नहीं, बल्कि उसके अधिकार को और सशक्त बनाना है।
समापन टिप्पणी
क्षितीश मजूमदार की मृत्यु केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया की विफलता नहीं, बल्कि व्यवस्था पर विश्वास के क्षरण की प्रतीक बन गई है। जब तक नागरिकों में सुरक्षा, पहचान और अधिकार को लेकर भरोसा पुनः स्थापित नहीं किया जाएगा, तब तक लोकतंत्र की जड़ें अस्थिर रहेंगी।
यह समाचार पीटीआई(PTI) के इनपुट के साथ प्रकाशित किया गया है।