महागठबंधन में सीटों का विवाद
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन प्रक्रिया के समाप्त होने के पश्चात् भी महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद थम नहीं रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पहले चरण की कुछ सीटों पर दलों के आपसी मतभेद ने महागठबंधन की एकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। अब इसी प्रकार के मतभेद दूसरे चरण की सीटों तक पहुँचते दिखाई दे रहे हैं।
कुटुंबा सीट पर सियासी जटिलता
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम अपनी पार्टी की ओर से कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। लेकिन सूत्रों के अनुसार, राजद के पुराने नेता सुरेश पासवान को भी इसी सीट से उम्मीदवार बनाने की चर्चाएँ उठ रही हैं। यह खबरे महागठबंधन के भीतर आपसी मतभेद को उजागर करती हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यदि ऐसा हुआ तो यह महागठबंधन की मजबूती पर सवाल उठाएगा और गठबंधन की साख पर असर डाल सकता है। भाजपा ने इस मामले को अपने पक्ष में प्रचारित करते हुए इसे महागठबंधन के टूटने का संकेत बताया है।
भाजपा की प्रतिक्रिया और रणनीति
भाजपा ने सोशल मीडिया एवं अपने इंटरनेट प्लेटफार्म पर महागठबंधन के भीतर चल रही खींचतान को बड़े पैमाने पर उजागर किया है। पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि “महागठबंधन अब अपनी आंतरिक समस्याओं में उलझ चुका है। सीटों का विवाद यह स्पष्ट करता है कि गठबंधन आपसी मतभेद के कारण जनता के विश्वास को खो सकता है।”
राजद का विरोध और स्पष्टिकरण
राजद ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार की अफवाहें केवल विपक्ष को लाभ पहुँचाने के लिए फैलायी जा रही हैं। राजद के आधिकारिक पृष्ठ से जारी बयान में कहा गया, “महागठबंधन की सीटों के संबंध में जो खबरें आ रही हैं, वे वास्तविकता से दूर हैं। जनता को ऐसी अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।”
राजद का यह भी कहना है कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने कभी भी महागठबंधन की एकता को कमजोर करने वाली कार्रवाई नहीं की है। वर्तमान समय में, पार्टी का ध्यान केवल चुनावी रणनीति और जनता तक अपनी नीतियों को पहुँचाने पर केंद्रित है।
कांग्रेस का दृष्टिकोण
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने अभी तक इस विवाद पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस भी इस विवाद को सुलझाने के प्रयास में है और महागठबंधन की छवि को जनता के सामने सकारात्मक बनाए रखना चाहती है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि महागठबंधन के दल आपसी मतभेद को जल्दी नहीं सुलझाते, तो इससे पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कुटुंबा सीट पर यह विवाद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से संवेदनशील माना जाता है।
भविष्य की संभावनाएँ
चुनावी माहौल में कुटुंबा सीट पर उम्मीदवारों की घोषणा अगले कुछ दिनों में तय हो सकती है। यदि राजद सुरेश पासवान को उतारती है, तो कांग्रेस को अपने प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के पक्ष में सटीक रणनीति अपनानी होगी। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि महागठबंधन की भविष्य की छवि इस सीट के परिणाम पर भी निर्भर कर सकती है।