बेगूसराय विधानसभा में चुनावी हलचल
बिहार चुनाव 2025 के पहले चरण के लिए नामांकन वापसी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों से सात उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया, जिससे अब 73 उम्मीदवार मैदान में हैं।
भाजपा ने इस मौके पर अपने असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को मनाने में सफलता पाई। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बागी नेताओं से कई दौर की बैठकें कर उन्हें पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ दिलाई।
महागठबंधन में आंतरिक मतभेद
वहीं, महागठबंधन में नाराजगी और मतभेद बरकरार हैं। बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में भाकपा और कांग्रेस के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। भाकपा से अवधेश कुमार राय और कांग्रेस से शिव प्रकाश गरीबदास ने नाम वापस नहीं लिया। दोनों को अपनी-अपनी पार्टी का खुला समर्थन मिला है, जिससे इस सीट पर मुकाबला और रोचक हो गया है।
राजद जिलाध्यक्ष मोहित यादव ने बताया कि रूठे नेताओं को मनाने की कोशिश जारी है, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
अन्य विधानसभा क्षेत्रों का चुनावी हाल
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तेघड़ा विधानसभा: भाजपा के बागी पूर्व विधायक ललन कुंवर ने नाम वापस लिया, जिससे भाजपा प्रत्याशी रजनीश सिंह को मजबूती मिली। मुख्य दावेदार अब भाकपा के रामरतन सिंह और जनसुराज के आरएन सिंह हैं।
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चेरिया बरियारपुर: राजद के बागी रामसखा महतो ने नाम वापस नहीं लिया। राजद प्रत्याशी सुशील सिंह, जदयू से अभिषेक कुमार और जनसुराज से डा. मृत्युंजय कुमार मैदान में हैं।
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साहेबपुर कमाल: जदयू के बागी अमर कुमार ने टिकट न मिलने के कारण नाम वापस नहीं लिया। यहां राजद, लोजपा-रा और जनसुराज के प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में हैं।
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बखरी: भाजपा के रामशंकर पासवान और राजद के पूर्व विधायक उपेंद्र पासवान के नाम वापसी के बाद मुकाबला सरल हो गया है। अब एनडीए के संजय पासवान और महागठबंधन के सीपीआइ प्रत्याशी सूर्यकांत पासवान के बीच सीधी लड़ाई तय मानी जा रही है।
जनता के लिए मुद्दे
विकास और रोजगार जैसे मुद्दे बेगूसराय के मतदाताओं के लिए अहम बने हुए हैं। राजनीतिक दलों के आंतरिक मतभेद और बागियों की स्थिति चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकती है। भाजपा का लक्ष्य अधिक सीटें जीतना है, जबकि महागठबंधन को आंतरिक मतभेदों को सुलझाना होगा।
बेगूसराय में बिहार चुनाव 2025 की तैयारियाँ पूरी तरह से जोरों पर हैं। भाजपा ने बागियों को मनाकर अपनी स्थिति मजबूत की है, वहीं महागठबंधन में नाराजगी और आंतरिक मतभेद बरकरार हैं। इस जिले के मतदाताओं की नजरें विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर टिक गई हैं, जबकि राजनीतिक दल अपनी रणनीति और गठबंधनों को सुलझाने में लगे हुए हैं।