भागलपुर विधानसभा में फिर राजनीति का नया मोड़
भागलपुर विधानसभा में 2025 के बिहार चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे और पूर्व प्रत्याशी अर्जित शाश्वत चौबे ने पार्टी से टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इसके लिए उन्होंने आवश्यक एनआर (नॉमिनेशन रजिस्ट्रेशन) भी कटवा लिया है।
बीजेपी ने इस बार भागलपुर विधानसभा से रोहित पांडेय को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं, अर्जित शाश्वत चौबे के निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है। इससे यह सीट एक बार फिर से मुकाबले की दृष्टि से बेहद दिलचस्प बन गई है।
अश्विनी चौबे का परिवार और राजनीतिक महत्व
अश्विनी चौबे बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान रखते हैं। उनके राजनीतिक अनुभव और प्रभाव का सीधा असर उनके बेटे अर्जित शाश्वत चौबे पर भी देखा जाता है। पिछले चुनावों में भी बीजेपी को पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतरघात और असंतोष के कारण भागलपुर सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। अब अर्जित शाश्वत चौबे के कदम से बीजेपी के लिए यह सीट अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
निर्दलीय चुनाव: राजनीतिक संकेत
अर्जित शाश्वत चौबे के निर्दलीय चुनाव लड़ने से यह स्पष्ट होता है कि वह बीजेपी के टिकट वितरण से संतुष्ट नहीं हैं। यह कदम ना केवल उनके व्यक्तिगत राजनीतिक महत्व को दर्शाता है बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उत्पन्न असंतोष को भी उजागर करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले अनुभवों के आधार पर बीजेपी को सतर्क रहने की आवश्यकता है। अगर पार्टी नेतृत्व समय पर अर्जित शाश्वत चौबे को मनाने में सफल नहीं हुआ, तो यह सीट उनके लिए खतरे का संकेत बन सकती है।
महागठबंधन का नजरिया
इस विधानसभा क्षेत्र में महागठबंधन से वर्तमान विधायक अजीत शर्मा को फिर से टिकट मिलने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में चुनाव तीन प्रमुख मोर्चों के बीच बेहद प्रतिस्पर्धात्मक होने की पूरी संभावना है।
मतदान की रणनीति और जनता की भूमिका
भागलपुर की जनता ने हमेशा से अपनी सशक्त और सजग मतदान नीति दिखाई है। इस बार भी जनता का रुख निर्णायक साबित होगा। पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतरघात, उम्मीदवारों की लोकप्रियता और स्थानीय मुद्दे चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
अर्जित शाश्वत चौबे का कदम राजनीतिक रणनीति और भावनाओं का मिश्रण है। बीजेपी नेतृत्व को अब यह देखना होगा कि क्या वह उन्हें मनाने में सफल होता है या अर्जित चौबे का बगावती तेवर चुनाव तक बरकरार रहता है। भागलपुर विधानसभा का यह मुकाबला न केवल स्थानीय राजनीति में बल्कि राज्य स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।