पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Election 2025) से पहले प्रकाशित हुई अंतिम मतदाता सूची ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। चुनाव आयोग (Election Commission) ने राज्य की मतदाता सूची जारी करते हुए बताया कि इस बार लगभग 7.41 करोड़ मतदाता चुनाव में हिस्सा लेंगे। इनमें 14 लाख नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं, जबकि विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के तहत 65 लाख नाम हटाए गए हैं।
विपक्ष का आरोप
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने मतदाता सूची की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता सूची का अध्ययन कर रहे हैं और यदि कहीं भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन पाया गया तो कांग्रेस अदालत का दरवाजा खटखटाएगी। तिवारी के अनुसार, इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने से निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
वहीं, राजद (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने मतदाता सूची को लेकर और भी कड़े शब्दों का प्रयोग किया। उन्होंने इसे “वोट चोरी की साजिश” करार देते हुए यहां तक कहा कि यदि आयोग ने उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया तो उनकी पार्टी चुनाव बहिष्कार (Election Boycott) पर भी विचार कर सकती है।
NDA की प्रतिक्रिया
दूसरी ओर सत्ताधारी गठबंधन एनडीए (NDA) ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। जदयू (JDU) और भाजपा (BJP) नेताओं ने कहा कि विपक्ष को पहले से ही अपनी हार दिख रही है, इसलिए वे चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर अनावश्यक सवाल उठा रहे हैं। उनके अनुसार, चुनाव आयोग ने पूरी प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से पूरी की है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण पूरी तरह निष्पक्ष और संवैधानिक प्रावधानों के तहत किया गया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि मृत मतदाताओं, डुप्लीकेट नामों और लंबे समय से विस्थापित लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट को दी गई रिपोर्ट में सभी प्रक्रियाओं का ब्योरा प्रस्तुत किया गया है। आयोग का दावा है कि इस बार की मतदाता सूची अब तक की सबसे पारदर्शी और व्यवस्थित है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सप्ताह पहले चुनाव आयोग से 65 लाख नाम हटाए जाने के पीछे का ब्योरा मांगा था। अदालत ने यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया था कि मतदाता सूची से किसी भी वैध नाम को गलत तरीके से न हटाया जाए। विपक्ष अब सुप्रीम कोर्ट की इसी टिप्पणी का हवाला देते हुए कह रहा है कि आयोग ने पारदर्शिता का पालन नहीं किया।
चुनावी समीकरण पर असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता सूची का यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पूरे परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है। विपक्ष जहां इसे सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बना रहा है, वहीं एनडीए इसे चुनाव से पहले की “राजनीतिक रणनीति” बता रहा है।
ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने की शिकायतें सामने आ रही हैं। यदि ये शिकायतें चुनाव तक जारी रहती हैं तो यह सीधे-सीधे विपक्ष के लिए एक बड़ा अभियान बन सकती हैं। दूसरी ओर, नए 14 लाख मतदाताओं में युवाओं की संख्या ज्यादा होने की वजह से राजनीतिक दल अब अपनी रणनीति युवाओं को लुभाने पर केंद्रित कर सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची को लेकर छिड़ा यह विवाद आने वाले समय में और गहराने की संभावना है। जहां कांग्रेस और राजद जैसे विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट तक जाने की तैयारी में हैं, वहीं एनडीए और चुनाव आयोग इसे एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया बता रहे हैं। अब देखना यह होगा कि मतदाता सूची पर छिड़ी यह बहस चुनावी माहौल को किस दिशा में मोड़ती है।