बिहार में महागठबंधन की प्रमुख साझेदार कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनावों में मिली शर्मनाक हार के बाद अपने ही नेताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई का बिगुल फूंक दिया है। पार्टी ने उन तथाकथित ‘अनुशासनहीन’ नेताओं को निशाने पर लिया है, जिन पर चुनावी दौर में पार्टी हितों के विपरीत कार्य करने के आरोप लगे हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस ने 43 पदाधिकारियों और नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी करके पार्टी प्रबंधन में सख्ती का परिचय दिया है।
इन नेताओं पर आरोप है कि उन्होंने जनसभाओं और सार्वजनिक मंचों से ऐसे बयान दिए, जो पार्टी की साख के लिए हानिकारक सिद्ध हुए और चुनावी नतीजों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। पार्टी के अनुशासनात्मक समिति के अध्यक्ष कपिल देव प्रसाद ने स्पष्ट किया कि यदि नोटिस प्राप्त होने के तीन दिन के भीतर इन नेताओं से संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छह वर्षों तक के लिए निष्कासन भी शामिल है।
पार्टी अनुशासन का सवाल
यह कदम पार्टी में बढ़ रही अनुशासनहीनता पर अंकुश लगाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। एक राजनीतिक दल के लिए उसकी एकजुटता और अनुशासन सबसे बड़ी ताकत होती है। जब यही एकजुटता दरकने लगे, तो न केवल चुनावी परिणाम प्रभावित होते हैं, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटता है। कांग्रेस पार्टी ने इसी बिखराव को रोकने का संकल्प लिया प्रतीत होता है। समिति ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पार्टी का अनुशासन और एकता सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसे हानि पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ सख्ती से निपटा जाएगा।
कौन हैं वे नेता जिन्हें मिला नोटिस?
जिन नेताओं को यह नोटिस प्राप्त हुआ है, उनमें पूर्व मंत्री अफाक आलम, पूर्व प्रवक्ता आनंद माधव, पूर्व विधायक छत्रपति यादव और पूर्व मंत्री वीणा शाही जैसे वरिष्ठ नाम शामिल हैं। इस सूची में पूर्व एमएलसी अजय कुमार सिंह, पूर्व विधायक गजानंद शाही उर्फ मुन्ना शाही, सुदीप कुमार उर्फ बंटी चौधरी, बांका जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कंचन कुमारी, सारण जिला अध्यक्ष बच्छू कुमार बिरु, और पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष राज कुमार राजन भी हैं। इन सभी नेताओं से अपेक्षा की गई है कि वे 21 नवंबर तक पैनल के समय लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें।
चुनावी नतीजों पर क्या पड़ा प्रभाव?
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने पार्टी के भीतर गहरी नाराजगी पैदा की थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के भीतर गुटबाजी और सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी ने मतदाताओं के बीच पार्टी की छवि धूमिल की। इससे न केवल पार्टी के समर्थक भ्रमित हुए, बल्कि विपक्ष को भी इन आंतरिक कलह का लाभ मिला। जब कोई दल अपने ही नेताओं के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता, तो जनता का उससे विश्वास उठना स्वाभाविक है। यह कार्रवाई इसी विश्वास को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक कदम है।
आगे की राह क्या है?
अब नजर उन 43 नेताओं के जवाब पर टिकी है जो पार्टी को तीन दिन के भीतर देना होगा। यदि कोई नेता संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रहता है, तो पार्टी उसे छह वर्षों तक के लिए निष्कासित कर सकती है। यह निर्णय पार्टी के भीतर एक स्पष्ट संदेश भेजने का काम करेगा कि अनुशासन के मामले में कोई लचीलापन नहीं बरता जाएगा। यह कदम भविष्य की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है, जिसके तहत पार्टी अपनी छवि एक मजबूत और अनुशासित संगठन के रूप में स्थापित करना चाहती है। राज्य की राजनीति में यह फैसला आने वाले दिनों में नए समीकरण खड़े कर सकता है।