Bihar Election 2025: महिला मतदाता बनीं चुनावी परिणामों की दिशा-निर्धारक
बिहार में पहले चरण के मतदान के दौरान महिलाओं की उपस्थिति ने रिकॉर्ड कायम किया। कुल 64.66% मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में अधिक रही। यह प्रवृत्ति नई नहीं, बल्कि 2010 से ही लगातार देखी जा रही है। आंकड़ों के अनुसार, 2010 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 54.49% था, जो पुरुषों (51.12%) से अधिक था। यह अंतर 2015 और 2020 के चुनावों में भी बना रहा।
जिलों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का प्रभाव
बेगूसराय, गोपालगंज और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 5-10% अधिक मतदान किया। इस बढ़ती भागीदारी ने राजनीतिक दलों को मजबूर किया है कि वे अपनी चुनावी रणनीतियों में महिलाओं को प्रमुख स्थान दें।
सरकारी योजनाओं की भूमिका
नीतीश कुमार सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं का बड़ा प्रभाव देखने को मिला है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना और सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण ने महिलाओं में न केवल राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई, बल्कि सक्रिय भागीदारी की भावना को भी प्रबल किया। इसी के समान विपक्ष भी महिलाओं को लुभाने के प्रयास में है। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने महिलाओं के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त सहायता का वादा किया है।
प्रतिनिधित्व: मतदान में मजबूत, लेकिन टिकटों में कमजोर
हालांकि महिलाएं वोटर के रूप में मजबूत होकर उभरी हैं, लेकिन उम्मीदवार के रूप में उनकी स्थिति अभी भी कमजोर है। इस चुनाव में कुल 1,314 उम्मीदवारों में केवल 122 महिलाएं मैदान में हैं, यानी मात्र 9.28%। यह आंकड़ा उन दावों के विपरीत खड़ा है, जो राजनीतिक दल महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर करते हैं।
प्रमुख दलों में टिकट वितरण का विश्लेषण
Bihar Election 2025: आरजेडी ने 144 सीटों में 24 महिलाओं को टिकट दिया है, बीजेपी ने 160 सीटों में करीब 14 महिलाओं को मौका दिया, जबकि जेडीयू ने 45 सीटों में 22 महिलाओं को उम्मीदवार के रूप में उतारा। हालांकि जेडीयू का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है, लेकिन कुल प्रभाव कम ही दिखता है।
जमीन से आने वाली महिला नेताओं की उपेक्षा
सीमा कुशवाहा और रितू जायसवाल जैसी नेताओं को इस बार टिकट नहीं मिल सका। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, परिवारवाद और वंशवाद आज भी उम्मीदवार चयन में हावी है। महिलाएं वोटर तो बन रही हैं, लेकिन नेतृत्व की भूमिका में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
आगे का रास्ता
महिला आरक्षण विधेयक के तहत 33% सीटों की मांग अभी भी अधूरी है। पंचायत स्तर पर नेतृत्व की पहल सफल रही है, पर विधानसभा स्तर पर यह प्रभाव अभी कमजोर है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक राजनीतिक दल टिकट देने में साहस नहीं दिखाएंगे, तब तक प्रतिनिधित्व का संतुलन नहीं बदलेगा।