बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों पर कांग्रेस का आत्ममंथन
शशि थरूर ने कहा– चुनाव प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने कांग्रेस नेतृत्व के सामने कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। तिरुअनंतपुरम के सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने शुक्रवार को इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि उन्हें बिहार में चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित ही नहीं किया गया, इसलिए वे जमीनी स्थिति पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कह सकते।
मतगणना जारी रहने के दौरान पत्रकारों से बातचीत में थरूर ने कहा कि पार्टी अब चुनाव नतीजों का गहन और निष्पक्ष विश्लेषण करेगी। उनके अनुसार जमीनी स्तर पर मौजूद नेताओं और कार्यकर्ताओं को वास्तविक परिस्थितियों की बेहतर जानकारी है, इसलिए पार्टी उसी आधार पर आगे की रणनीति बनाएगी।
गठबंधन में ‘वरिष्ठ भागीदार’ नहीं थी कांग्रेस
थरूर ने स्वीकार किया कि इस चुनाव में कांग्रेस गठबंधन की प्रमुख शक्ति नहीं थी। उन्होंने कहा कि गठबंधन के प्रमुख घटक राजद को भी अपने प्रदर्शन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
उनके अनुसार इतनी बड़ी जनसंख्या वाले राज्य में चुनाव कई स्तरों पर प्रभावित होते हैं। जनता के मूड, संगठनात्मक मजबूती, नेतृत्व की धारणा और संदेश प्रसारण की प्रभावशीलता जैसे अनेक तत्व परिणामों को निर्धारित करते हैं। थरूर ने कहा कि इन्हीं सभी बिंदुओं का समग्र आकलन आवश्यक है।
कांग्रेस के भीतर उठी आवाजें और बढ़ते मतभेद
जहां एक ओर थरूर ने शांत और विश्लेषणात्मक रुख प्रस्तुत किया, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एमएम हसन ने उन पर सीधे निशाना साधा।
हसन ने आरोप लगाया कि शशि थरूर बार-बार पार्टी नेतृत्व को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि थरूर का राजनीतिक उत्थान केवल नेहरू परिवार के विश्वास और उदारता के कारण संभव हुआ, लेकिन अब वे नेतृत्व की छवि को चोट पहुंचाने वाले बयान दे रहे हैं।
हसन के मुताबिक, यदि थरूर में थोड़ी भी राजनीतिक शिष्टता होती, तो वे इस प्रकार के वक्तव्य देने से पहले कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्यता से इस्तीफा दे देते।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि थरूर ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की प्रशंसा और कांग्रेस नेताओं के बारे में नकारात्मक टिप्पणी कर पार्टी में असंतोष पैदा किया। हसन के बयान से स्पष्ट है कि बिहार की हार के बाद कांग्रेस केवल बाहरी चुनौतियों से नहीं, बल्कि आंतरिक मतभेदों से भी जूझ रही है।
क्या है कांग्रेस की अगली राह?
बिहार चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने संगठन, नेतृत्व और चुनावी रणनीति का यथार्थ मूल्यांकन करे।
यह साफ है कि केवल गठबंधन पर निर्भर रहकर चुनाव लड़ना पर्याप्त नहीं होता। पार्टी को अपने जनसंपर्क और संदेश प्रसारण तंत्र को भी मजबूत करना होगा।
बिहार की राजनीति में स्थानीय मुद्दे, जातीय समीकरण और नेतृत्व की विश्वसनीयता बड़ी भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस फिलहाल इन सभी पहलुओं पर पुनर्विचार कर रही है।
थरूर के बयान और हसन की आलोचना से यह भी संकेत मिलता है कि पार्टी को पहले अपनी आंतरिक एकता को मजबूत करना होगा, तभी वह जनता के बीच विश्वास पुनः अर्जित कर सकेगी।