सीमांचल में कांग्रेस का सियासी दांव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीमांचल एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने इस बार अपने पुराने गढ़ सीमांचल पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है, जहां उसने पिछले चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था। किशनगंज, कस्बा, अररिया और पूर्णिया जैसी सीटों पर पार्टी की उम्मीदें टिकी हैं। कांग्रेस को भरोसा है कि सीमांचल की जनता एक बार फिर उसके पक्ष में मतदान करेगी।
सीमांचल कांग्रेस के लिए क्यों अहम है
वर्ष 2020 के चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में कांग्रेस ने दस में से लगभग पाँच सीटों पर जीत दर्ज की थी। किशनगंज, कदवा, मनिहारी और कस्बा जैसी सीटों पर कांग्रेस ने मजबूती दिखाई थी। इस क्षेत्र में मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्गों का समर्थन कांग्रेस की राजनीतिक रीढ़ बना था। यही समीकरण 2025 के चुनाव में भी पार्टी की रणनीति का आधार है।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असितनाथ तिवारी का कहना है कि सीमांचल का बड़ा इलाका कांग्रेस का ऐतिहासिक गढ़ रहा है। पार्टी ने पिछले दो वर्षों में संगठन को पुनर्जीवित करने और ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ाने में काफी मेहनत की है।
नए चेहरों पर भरोसा, पुराने समीकरण कायम
इस बार कांग्रेस ने सीमांचल की कई सीटों पर नए चेहरों को मौका दिया है। पार्टी का मानना है कि स्थानीय मुद्दों से जुड़े उम्मीदवार जनता के बीच ज्यादा स्वीकार्यता रखते हैं। किशनगंज से इजहारुल हुसैन की जगह मो. कमरूल होदा को टिकट दिया गया है, जबकि कस्बा में अफाक आलम के स्थान पर इरफान आलम को उतारा गया है।
फारबिसगंज में मनोज विश्वास, बहादुरगंज में प्रोफेसर मशकर आलम और पूर्णिया से जितेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने स्थानीय संतुलन और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। यह रणनीति कांग्रेस की “स्थानीय जुड़ाव” नीति को भी दर्शाती है।
एआईएमआईएम की चुनौती और कांग्रेस की रणनीति
सीमांचल की सियासत में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का प्रभाव लगातार बढ़ा है। 2020 में एआईएमआईएम ने कई सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया था। इस बार भी यह पार्टी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है।
हालांकि कांग्रेस ने इस चुनौती का सामना करने के लिए “विकास और सम्मान” के नारे के साथ अपना प्रचार अभियान शुरू किया है। सीमांचल की बाढ़ समस्या, शिक्षा की स्थिति, बेरोजगारी और सीमावर्ती जिलों के विशेष पैकेज जैसे मुद्दों को कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से शामिल किया है।
सीमांचल का बदलता सियासी मिजाज
सीमांचल की राजनीति अब केवल धर्म या जाति पर निर्भर नहीं रह गई है। यहां के मतदाता अब विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे मुद्दों पर भी गंभीरता से विचार करते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस ने इस बार केवल पहचान की राजनीति नहीं, बल्कि विकास को भी केंद्र में रखा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीमांचल की जनता अब ठोस परिणाम चाहती है। कांग्रेस की कोशिश है कि वह अपनी पारंपरिक वोट बैंक को बरकरार रखते हुए विकास के नए एजेंडे के माध्यम से नए मतदाताओं को जोड़ सके।
14 नवंबर को खुलेगा चुनावी नतीजों का पिटारा
अब सबकी नजर 14 नवंबर पर है, जब ईवीएम के बक्से खुलेंगे और यह तय होगा कि सीमांचल की जनता ने कांग्रेस के दांव पर भरोसा जताया या नहीं। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि इस बार सीमांचल में पार्टी का प्रदर्शन पहले से बेहतर रहेगा।
फिलहाल इतना तय है कि सीमांचल केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का धड़कता दिल है, जहां से सत्ता की दिशा और दशा तय होती है।