एनडीए ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी रणनीति का फोकस उन 45 सीटों पर रखा है, जहां 2020 के चुनाव में जीत और हार का अंतर बेहद कम रहा था। इन सीटों में से कई पर अंतर 1000 वोटों से भी कम था, जबकि कुछ सीटों पर यह अंतर केवल कुछ दर्जन मतों का था।
हज़ार से कम वोटों से जीतने और हारने वाले प्रत्याशी
साल 2020 में एनडीए के कई प्रत्याशी बहुत मामूली अंतर से चुनाव जीते या हारे। उदाहरण के लिए, नालंदा जिले के हिलसा विधानसभा क्षेत्र में जदयू प्रत्याशी कृष्ण मुरारी शरण मात्र 12 वोटों से जीत पाए थे। इसी तरह, परबत्ता से जदयू प्रत्याशी की जीत 951 वोटों से और बरबीघा से 113 वोटों से हुई थी।
वहीं, बखरी से भाजपा प्रत्याशी रामशंकर पासवान 777 वोटों से, डेहरी से सत्यनारायण यादव 464 वोटों से और कुढ़नी से केदार गुप्ता 712 वोटों से हार गए थे। ये आंकड़े दिखाते हैं कि कितनी छोटी बढ़त या कमी चुनावी नतीजे को पूरी तरह पलट सकती है।
बदले गए प्रत्याशी और सीट शेयरिंग का समीकरण
एनडीए ने इस बार सीट शेयरिंग में कई बदलाव किए हैं। परबत्ता जैसी सीटें, जहां पिछली बार जदयू ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी, अब अन्य सहयोगी दलों के खाते में चली गई हैं। वहीं, बरबीघा में भी जदयू ने प्रत्याशी बदलने का फैसला लिया है। इसका उद्देश्य नए चेहरों के माध्यम से स्थानीय असंतोष को दूर कर बेहतर जनसंपर्क बनाना है।
1000 से 5000 वोटों के अंतर वाली सीटें
एनडीए के कई विधायक ऐसे भी हैं जिन्होंने 2020 में 1000 से 5000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। झाझा से जदयू के दामोदर रावत 1679 वोटों से, टेकारी से हम के अनिल कुमार 2630 वोटों से, आरा से भाजपा के अमरेंद्र प्रताप सिंह 3002 वोटों से जीते थे।
इसी तरह, बेलहर, अमरपुर, सरायरंजन, हाजीपुर, अमनौर, बहादुरपुर और महिषी जैसे क्षेत्रों में एनडीए उम्मीदवारों की जीत का अंतर सीमित रहा। ऐसे में पार्टी इन सीटों पर बूथ स्तर तक संगठन को सक्रिय कर रही है।
एनडीए के हारने वाले प्रत्याशियों की स्थिति
एनडीए के कुछ उम्मीदवार 2020 में बेहद कम अंतर से हार गए थे। इनमें बोधगया से हरि मांझी (4708 वोट), औरंगाबाद से रामाधार सिंह (2243), जमालपुर से शैलेश कुमार (4432) और किशनगंज से स्वीटी सिंह (1381 वोट) जैसी सीटें शामिल हैं। पार्टी इन क्षेत्रों में हार के कारणों की समीक्षा कर रही है और रणनीतिक बदलावों पर काम कर रही है।
एनडीए की चुनावी प्राथमिकताएं और अभियान
बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन के रूप में एनडीए का मुख्य लक्ष्य इन 45 सीटों पर अपना प्रदर्शन सुधारना है। इसके लिए जनसंपर्क अभियान, क्षेत्रवार बैठकें, और कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की योजना पर जोर दिया जा रहा है।
नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा के बीच तालमेल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि सीट शेयरिंग और प्रचार रणनीति में कोई मतभेद न रहे। वहीं, केंद्रीय नेतृत्व भी इन संवेदनशील सीटों पर विशेष निगरानी रख रहा है।
जनता के मुद्दों पर फोकस
एनडीए इन सीटों पर जनता के प्रमुख मुद्दों — रोजगार, शिक्षा, सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था — को अपने प्रचार का केंद्र बना रहा है। भाजपा और जदयू दोनों दलों ने तय किया है कि वे विकास के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों को भी उठाएंगे ताकि विपक्ष को जनभावना के स्तर पर चुनौती दी जा सके।
2025 की लड़ाई और एनडीए की चुनौती
बिहार में महागठबंधन और एनडीए के बीच होने वाली यह जंग बेहद करीबी मानी जा रही है। जहां विपक्ष बेरोज़गारी और महंगाई के मुद्दे उठा रहा है, वहीं एनडीए विकास और स्थिरता की बात कर रहा है।
2020 के परिणामों के विश्लेषण से साफ है कि कुछ सैकड़ों वोटों से सरकार बन या बिगड़ सकती है। ऐसे में 2025 के चुनाव में ये 45 सीटें सत्ता की कुंजी साबित हो सकती हैं।