गौड़ाबौराम सीट बनी बिहार चुनाव 2025 का सबसे चर्चित रणक्षेत्र
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान कुछ सीटें ऐसी हैं, जो राजनीतिक पहेलियों का केंद्र बन गई हैं। दरभंगा जिले की गौड़ाबौराम विधानसभा सीट भी ऐसी ही एक जगह है, जहां के समीकरण देखकर बड़े-बड़े विश्लेषक भी हैरान हैं।
यहां की स्थिति इतनी उलझी हुई है कि राजद प्रमुख तेजस्वी यादव खुद अपनी पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार करते दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने मंच से ‘लालटेन’ छाप वाले प्रत्याशी का नाम तक नहीं लिया और वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) उम्मीदवार के समर्थन में वोट देने की अपील कर दी।
शुरुआत से ही सीट रही विवादों में
नामांकन शुरू होते ही गौड़ाबौराम सीट चर्चा में आ गई थी। शुरुआत में यह सीट राजद और वीआईपी के बीच ‘फ्रेंडली फाइट’ की वजह से सुर्खियों में आई।
बाद में जब यह सीट वीआईपी के खाते में गई तो उम्मीद थी कि पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी खुद मैदान में उतरेंगे, क्योंकि वे इसी क्षेत्र के मतदाता हैं। लेकिन सहनी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। इसके बावजूद सीट का विवाद थमा नहीं।
तेजस्वी का बयान बना चर्चा का विषय
तेजस्वी यादव हाल ही में गौड़ाबौराम में प्रचार के लिए पहुंचे। वहां मंच से उन्होंने राजद प्रत्याशी अफजल अली खान का नाम तक नहीं लिया, बल्कि कहा —
“लालटेन को हराइए और संतोष सहनी (वीआईपी प्रत्याशी) को जिताइए।”
उनका यह बयान इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो गया। कई लोग इसे “राजनीति का नया चेहरा” बता रहे हैं, तो कुछ इसे “अपने ही दल के कार्यकर्ताओं का अपमान” मान रहे हैं।
मुकेश सहनी का जवाब — “अफजल भी हमारे अपने हैं”
तेजस्वी की सभा में ही वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने बिल्कुल अलग रुख दिखाया। उन्होंने कहा —
“मेरे लिए अफजल भी संतोष सहनी की तरह ही हैं। अगर हमारी सरकार बनी तो अफजल को एमएलसी बनाऊंगा, बस वे अभी हमारे लिए काम करें।”
यह बयान भी राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा गया।
सवाल उठ रहे हैं तेजस्वी की रणनीति पर
लोग अब सवाल पूछ रहे हैं कि अगर तेजस्वी यादव को अफजल अली खान से इतनी नाराज़गी है, तो उन्होंने अब तक उन्हें पार्टी से बाहर क्यों नहीं किया?
कई लोगों का मानना है कि तीन प्रतिशत की आबादी वाले सहनी समुदाय को लुभाने के लिए तेजस्वी यादव लगातार समझौते कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम प्रत्याशियों की अनदेखी कर रहे हैं।
गौड़ाबौराम सीट अब बिहार की सबसे दिलचस्प राजनीतिक पहेली बन चुकी है।
यहां का समीकरण सिर्फ दो उम्मीदवारों या दो दलों के बीच नहीं, बल्कि गठबंधन की आंतरिक राजनीति, जातीय गणित और व्यक्तिगत अहंकारों की जंग बन चुका है।
आने वाले दिनों में यह सीट तय कर सकती है कि बिहार में महागठबंधन की एकता किस हद तक वास्तविक है — या सिर्फ कागज़ों तक सीमित।