पहले चरण के चुनाव से पहले सियासत गरमाई
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान से पहले राज्य की सियासत मुस्लिम वोटों को लेकर तीखी हो गई है। राजद और जदयू दोनों दल सीमांचल के उन जिलों पर फोकस कर रहे हैं, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक है।
तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून संशोधन को मुद्दा बनाकर मुस्लिम समुदाय का समर्थन पाने की कोशिश तेज कर दी है। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वह इस कानून में किए गए संशोधन को रद्द करेंगे।
जदयू का पलटवार, कानून को ‘डस्टबिन’ में फेंकने पर आपत्ति
जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने तेजस्वी के बयान पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा, “कानून को डस्टबिन में नहीं फेंका जा सकता। जब यह बिल आया था, जदयू ने संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की सिफारिश की थी। समिति बनी, और हमारे संशोधन शामिल किए गए। इस कानून को खत्म करने की बात गैर-जिम्मेदाराना है।”
इस बयान से साफ है कि जदयू मुस्लिम समाज को कानून की पारदर्शिता और अपनी भूमिका बताकर भरोसा दिलाना चाहती है।
नीतीश कुमार का दावा, ‘भेदभाव नहीं, सबको बराबर हक’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी सरकार ने हमेशा हर वर्ग के साथ समान व्यवहार किया है। उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम समाज को शिक्षा, प्रशासन, और रोजगार में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है।
नीतीश ने यह भी कहा कि “कुछ लोग फिर से मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। जनता को याद रखना चाहिए कि किसने उनके अधिकारों के लिए काम किया।”
तेजस्वी यादव का पलटवार, ‘वक्फ संपत्ति पर सरकार की नजर’
तेजस्वी यादव ने कहा कि “वक्फ संपत्ति पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। हमारी सरकार आने पर हम इन संशोधनों को खत्म करेंगे और वक्फ बोर्ड को स्वायत्तता देंगे।”
उन्होंने अपने भाषणों में यह भी कहा कि राजद की सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और शिक्षा पर विशेष ध्यान देगी।
सीमांचल की 70 सीटों पर मुस्लिम वोटों की निर्णायक भूमिका
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17.7 प्रतिशत है। यह आबादी राज्य के लगभग 50 से 70 विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाती है।
सीमांचल के जिलों में मुस्लिम वोटरों का अनुपात सबसे अधिक है:
-
किशनगंज: 68%
-
कटिहार: 44%
-
अररिया: 43%
-
पूर्णिया: 39%
इन इलाकों में मुस्लिम वोटर अक्सर सत्तारूढ़ गठबंधन को बदलने या बनाए रखने की दिशा तय करते हैं।
2020 के चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व
वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 19 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे, जो सदन के लगभग 8 प्रतिशत हैं। इनमें से अधिकतर राजद और कांग्रेस से थे, जबकि जदयू और भाजपा को सीमांचल में सीमित सफलता मिली थी।
इस बार दोनों दल इस जनसमूह को अपने पक्ष में करने के लिए सक्रिय प्रचार में जुटे हैं।
राजद-जदयू की रणनीति में अंतर
राजद अपनी पुरानी सामाजिक समीकरणों पर लौटना चाहती है। पार्टी मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण को फिर से मजबूत करने की कोशिश में है।
जदयू दूसरी ओर विकास और समान अधिकार की राजनीति को सामने रखकर अल्पसंख्यक मतदाताओं को भरोसे में लेने की कोशिश कर रही है।
विश्लेषण: मुस्लिम वोट किस ओर झुकेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीमांचल में मुस्लिम वोटरों का झुकाव उम्मीदवार की स्थानीय छवि, गठबंधन की विश्वसनीयता और राष्ट्रीय मुद्दों पर निर्भर करेगा।
अगर मुस्लिम मतों का विभाजन होता है तो इसका फायदा तीसरे मोर्चे या भाजपा गठबंधन को मिल सकता है।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि इस बार वक्फ कानून, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दे मुस्लिम समाज की प्राथमिकता में हैं।
बिहार के पहले चरण के चुनाव में मुस्लिम वोटर सबसे बड़ा निर्णायक समूह हैं। तेजस्वी और नीतीश दोनों यह जानते हैं कि सीमांचल की 70 सीटें सरकार गठन की दिशा तय कर सकती हैं।
आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम समाज किस दल पर भरोसा जताता है, और कौन मारेगा बाजी।