बिहार एनडीए की जीत पर अमित शाह की खास बैठक
बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की शानदार जीत के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना है केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बिहार भाजपा नेताओं को दिया गया संदेश। नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर आयोजित बैठक में अमित शाह ने बिहार के भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं को विजय के घमंड से बचने की नसीहत दी है। यह बैठक केवल औपचारिक बधाई का कार्यक्रम नहीं थी बल्कि आने वाले समय की रणनीति और संगठन की मजबूती पर केंद्रित थी।
बुधवार को हुई इस अहम बैठक में डिप्टी मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित बिहार भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेता शामिल हुए। गृहमंत्री अमित शाह ने इस मौके पर जो बातें कहीं वह पार्टी के भीतर अनुशासन और सामूहिकता की भावना को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण संदेश मानी जा रही है।
सामूहिक जीत का संदेश
बैठक में मौजूद सूत्रों के अनुसार अमित शाह ने साफ शब्दों में कहा कि बिहार में मिली यह जीत किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे संगठन की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने कहा कि सभी नेताओं ने अपनी क्षमता के अनुसार परिश्रम किया है और हर किसी का योगदान समान रूप से महत्वपूर्ण रहा है। चुनाव में एक प्रतिशत का योगदान भी बहुत बड़ा होता है और इसलिए कोई भी नेता यह सोचने की गलती ना करे कि जीत सिर्फ उसके कारण मिली है।
शाह ने जोर देकर कहा कि ऐसी सोच घमंड को जन्म देती है जो किसी भी राजनीतिक संगठन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है। पार्टी की ताकत उसकी सामूहिकता में है और हर कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेता तक सभी की भूमिका एक श्रृंखला की तरह जुड़ी हुई है।
जहां कम वहां हम का मंत्र
अमित शाह ने बिहार के नेताओं और मंत्रियों को आगामी चुनावों के लिए तैयार रहने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल समेत देश के अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए सभी को तैयार रहना होगा। किसी को भी कहीं भी पार्टी के काम के लिए भेजा जा सकता है और सभी को इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए।
गृहमंत्री ने ‘जहां कम वहां हम’ का मंत्र देते हुए कहा कि जहां संगठन कमजोर है वहां जाकर उसे मजबूत करना है। यह सिर्फ नारा नहीं बल्कि पार्टी की विस्तार रणनीति का हिस्सा है। बिहार में मिली सफलता का अनुभव अन्य राज्यों में भी दोहराने की जरूरत है और इसके लिए अनुभवी नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
बिहार में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रच दिया है। पहली बार बीजेपी राज्य की विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी ने कुल 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इसमें से 89 सीटों पर जीत हासिल की। यह सफलता दर लगभग 88 प्रतिशत है जो किसी भी मानक से असाधारण मानी जाती है।
गठबंधन के दूसरे बड़े सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने भी शानदार प्रदर्शन किया। जेडीयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा और 85 सीटों पर कामयाबी हासिल की। इस तरह एनडीए को कुल 202 सीटें मिली हैं जो 243 सदस्यीय विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से भी अधिक है। यह आंकड़ा गठबंधन की मजबूती को दर्शाता है।
विपक्ष की करारी हार
दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। पूरे गठबंधन को मिलाकर केवल 35 सीटें ही मिल सकी हैं। राष्ट्रीय जनता दल जो कभी बिहार की राजनीति में प्रमुख शक्ति हुआ करती थी, वह मुश्किल से मुख्य विपक्षी दल का दर्जा बचा पाई। आरजेडी को 25 सीटें मिली हैं जो नेता विपक्ष का पद पाने के लिए जरूरी न्यूनतम 24 सीटों से बस एक अधिक है।
तेजस्वी यादव के लिए यह स्थिति राहत भरी तो है लेकिन संतोषजनक नहीं कही जा सकती। यदि पार्टी को 23 या उससे कम सीटें मिलतीं तो उन्हें नेता विपक्ष का पद नहीं मिलता और इसके साथ मिलने वाली कैबिनेट मंत्री स्तर की सुविधाएं भी छिन जातीं। यह हार विपक्ष के लिए गहन आत्ममंथन का समय है।
नीतीश कुमार का नेतृत्व बरकरार
जीत के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। यह उनका लगातार कई बार मुख्यमंत्री बनना है। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का अनुभव और रणनीति हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं। एनडीए गठबंधन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना गठबंधन धर्म का निर्वाह माना जा रहा है। यह फैसला भाजपा की परिपक्व राजनीति और गठबंधन को मजबूत रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आगे की राजनीतिक चुनौतियां
बिहार में मिली जीत के बाद अब भाजपा के लिए आगे की चुनौतियां और भी महत्वपूर्ण हो गई हैं। पश्चिम बंगाल, दिल्ली और अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव पार्टी के लिए अगली परीक्षा होंगे। अमित शाह का बिहार के नेताओं को अन्य राज्यों में भेजने का संकेत इसी रणनीति का हिस्सा है।
पार्टी को अपनी जीत की गति बनाए रखनी होगी और साथ ही जमीनी स्तर पर संगठन को और मजबूत करना होगा। विपक्ष की कमजोरी को अवसर के रूप में देखते हुए पार्टी को अपनी पकड़ और बढ़ानी होगी।
घमंड से बचने की सीख
अमित शाह की नसीहत सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे संगठन के लिए एक संदेश है। राजनीति में जीत और हार का सिलसिला चलता रहता है लेकिन जो संगठन अपनी जमीन से जुड़ा रहता है और घमंड से दूर रहता है वही लंबे समय तक सफल रहता है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता का यह कहना कि एक प्रतिशत योगदान भी महत्वपूर्ण है, हर कार्यकर्ता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह संदेश देता है कि पार्टी में हर किसी का महत्व है चाहे वह कितना भी छोटा या बड़ा पद हो।
बिहार की जीत भाजपा के लिए एक मजबूत आधार तैयार करती है लेकिन असली चुनौती इस सफलता को बनाए रखना और इसे आगे बढ़ाना है। अमित शाह की सलाह इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो पार्टी को अनुशासित और केंद्रित रखने में मदद करेगी।