नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद संभालते ही बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। इस बार कैबिनेट गठन में कुछ नाम पहले से तय माने जा रहे थे, परंतु जिन 12 नए चेहरों को मंत्री पद मिला, उन्होंने पूरे राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी। रामकृपाल यादव, दीपक, रमा, श्रेयसी और अन्य नेताओं की एंट्री को नीतीश कुमार और बीजेपी नेतृत्व की संयुक्त रणनीति बताया जा रहा है। यह नयी टीम सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने के साथ आने वाले राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करेगी।
नीतीश कैबिनेट में बदलता जातीय और क्षेत्रीय संतुलन
नीतीश कुमार की कैबिनेट टीम में नए चेहरों की भरमार से साफ संकेत मिलता है कि सत्ता साझेदारी केवल पार्टी ढांचे तक सीमित नहीं रही, बल्कि सामाजिक आधार को भी मजबूती दी गई है। इसमें यादव, निषाद, तेली समाज, भूमिहार, कुर्मी, राजपूत समेत कई समुदायों को प्रतिनिधित्व देकर BJP और JDU ने गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश की है। यही कारण है कि इस बार केवल अनुभव को नहीं, बल्कि जनाधार और जातीय प्रभाव को भी प्राथमिकता दी गई है।
रामकृपाल यादव की वापसी का सियासी महत्व
बीजेपी की टिकट पर दानापुर विधानसभा से जीतकर आने वाले रामकृपाल यादव का मंत्री बनना राजनीतिक विमर्श का बड़ा मुद्दा बन गया है। 1974 में मैट्रिक और 1978 में एएन कॉलेज से बीए की डिग्री प्राप्त करने वाले यह नेता, बीजेपी के साथ-साथ यादव समुदाय में सक्रिय प्रभाव रखते हैं। उनके संपत्ति विवरण, राजनीतिक पृष्ठभूमि और जेल मामलों के बावजूद उन्हें मंत्री बनाए जाने की वजह उनके जनाधार और सामाजिक पकड़ को माना जा रहा है। यादव समुदाय में RJD का प्रभाव कम करने में यह नियुक्ति बीजेपी के लिए प्रभावी साबित हो सकती है।
संजय सिंह टाइगर की सादगी और राजनीतिक सफर की सफलता
आरा से दूसरी बार विधायक बने संजय सिंह टाइगर ने अपने साधारण जीवन और पढ़ाई-लिखाई को राजनीति में बेहतर ढंग से उपयोग किया है। चार भाइयों में सबसे छोटे संजय के पिता सरकारी सेवा में थे। एएन कॉलेज से स्नातक, एलएलबी और परास्नातक की शिक्षा लेने वाले संजय सिंह का मंत्री बनना इस बात का प्रमाण है कि बीजेपी और नीतीश कुमार पढ़े-लिखे और संघर्ष से निकले नेताओं को भी महत्व दे रहे हैं।
अरुण शंकर प्रसाद की लगातार जीत ने बनाई विशेष पहचान
खजौली सीट से बीजेपी के अरुण शंकर प्रसाद ने दूसरी बार विजयी होकर अपने राजनीतिक अनुभव और जनसंपर्क की ताकत को साबित किया है। उन्होंने RJD के उम्मीदवार को 13 हजार से अधिक मतों से हराया। जातीय संतुलन और मजबूत संगठनात्मक पकड़ के चलते उन्हें मंत्री पद देना स्वाभाविक माना जा रहा है।
सुरेंद्र मेहता की कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि से भाजपा विचारधारा की ओर यात्रा
बछवाड़ा विधानसभा के विधायक सुरेंद्र मेहता का राजनीतिक सफर सामान्य नहीं रहा। छात्र जीवन में कम्युनिस्ट विचारधारा से शुरुआत करने वाले यह नेता बाद में बीजेपी में पहुंचे और यहां उन्होंने अपनी पहचान कायम की। 2025 के चुनाव में उन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल कर अपनी लोकप्रियता का प्रमाण दिया, जिसके बाद उन्हें कैबिनेट में शामिल करना जरूरी समझा गया।
तेली समाज में नारायण प्रसाद की पकड़ से बीजेपी को मजबूती
नौतन सीट से चौथी बार विधायक चुने गए नारायण प्रसाद के समर्थन आधार ने उन्हें मंत्री पद तक पहुंचाया। तेली समाज में उनका प्रभाव बीजेपी को सामाजिक आधार मजबूत करने में मदद करेगा। खेती-किसानी से जुड़े परिवार से होने के कारण उनका ग्रासरूट कनेक्शन बेहद मजबूत माना जाता है।
रमा निषाद का उदय, निषाद समुदाय को साधने की नई रणनीति
औराई विधानसभा से पहली बार चुनी गई रमा निषाद के मंत्री बनने के पीछे बीजेपी की रणनीति निषाद समुदाय को अपने पाले में मजबूत करना है। पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी और कप्तान जयनारायण निषाद की बहू होने के कारण वह राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवार से आती हैं। शुरू में कुढ़नी विधानसभा से तैयारी कर रहीं रमा को अचानक टिकट बदलकर औराई से उतारना बीजेपी की जातीय रणनीति का हिस्सा माना गया। विरोध के बाद भी उनकी शानदार जीत इस बात का प्रमाण है कि यह दांव सफल रहा।