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बिहार की विकासगाथा: आज़ादी के बाद भी क्यों बना रहा पिछड़ेपन का प्रतीक?

Bihar Development Issues
Bihar Development Issues – बिहार की विकास यात्रा और पिछड़ेपन के मूल कारणों पर गहन विश्लेषण
अक्टूबर 30, 2025

बिहार की विकास यात्रा का अधूरा सपना

आज़ादी के 78 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन बिहार अब भी विकास की सीढ़ियों पर नीचे की पायदान पर खड़ा है। हर चुनाव में बिहार चर्चा का विषय बनता है — पर चर्चा इस बात पर नहीं कि बिहार को कैसे आगे बढ़ाया जाए, बल्कि इस बात पर होती है कि “अबकी बार किसकी सरकार बनेगी?” यह विडंबना ही है कि जिस राज्य ने भारत को राजनीति, दर्शन, शिक्षा और संस्कृति की दिशा दिखाई, वही आज विकास के सबसे पीछे खड़ा है।


राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव

बिहार की समस्या केवल आर्थिक या भौगोलिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है। शासन करने वाले दलों ने बिहार को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, पर कोई ठोस नीति नहीं बनाई। योजनाएँ आईं, घोषणाएँ हुईं, मगर परिणाम नगण्य रहे। सरकारी नौकरियों की बहालियाँ या तो रद्द होती हैं या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। इस व्यवस्था ने युवाओं का विश्वास तोड़ा और उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया।


औद्योगिक ढांचा और रोजगार की कमी

बिहार में सड़कों और पुलों का जाल तो बिछ गया है, परंतु उद्योगों का नामोनिशान नहीं है। यह विडंबना है कि “युवा राज्य” कहलाने वाला बिहार युवाओं को अपने घर में रोजगार नहीं दे पा रहा। कृषि आधारित प्रोसेसिंग यूनिट्स, मत्स्य पालन, पशुपालन और कुटीर उद्योगों में असीम संभावनाएँ हैं, पर राज्य नीति-निर्माण के स्तर पर अभी तक उदासीन है।


शिक्षा और संस्थागत विफलता

नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों की धरती आज गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए तरस रही है। सरकारी विद्यालयों की स्थिति दयनीय है, उच्च शिक्षा संस्थानों में संसाधनों की कमी है और प्रतिभावान छात्रों को बाहर जाकर पढ़ना पड़ता है। परिणामस्वरूप, “ब्रेन ड्रेन” बिहार की स्थायी समस्या बन गई है।


प्रशासनिक जवाबदेही का अभाव

बिहार की सबसे बड़ी विफलता है — जवाबदेही की कमी। शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक अधिकारी विकास योजनाओं को कागज़ों में सीमित रखते हैं। लोकतंत्र के चारों स्तंभ — विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया — सभी अपने दायित्वों से विमुख दिखते हैं। शासन व्यवस्था लालफीताशाही और जातिवादी राजनीति में उलझी हुई है।


कृषि की संभावनाएँ और अनदेखी

बिहार कृषि प्रधान राज्य है, पर किसान आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को विवश हैं। सरकार की योजनाएँ खेतों तक नहीं पहुँच पातीं। यदि कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों का नेटवर्क विकसित किया जाए तो बिहार आत्मनिर्भर बन सकता है, लेकिन इसके लिए ठोस कार्यनीति और पारदर्शिता आवश्यक है।


शराबबंदी और समाजिक प्रभाव

शराबबंदी नीति से सामाजिक स्तर पर शांति तो आई, लेकिन आर्थिक दृष्टि से कोई स्थायी समाधान नहीं मिला। रोजगार के विकल्प न होने से लोग पुनः गरीबी के दलदल में फँस गए। अपराध दर में कमी नहीं आई। यह बताता है कि नीति बनाना पर्याप्त नहीं, उसके क्रियान्वयन और विकल्प निर्माण पर भी समान ध्यान होना चाहिए।


युवाओं की भूमिका और नई दिशा

बिहार के युवा आज डिजिटल युग में खुद को सशक्त बना रहे हैं। सिविल सेवा परीक्षाओं में उनका प्रदर्शन इस बात का प्रमाण है कि क्षमता की कोई कमी नहीं। जरूरत है कि सरकार उन्हें मंच, मार्गदर्शन और उद्योग-परक शिक्षा प्रदान करे। युवाओं की भागीदारी ही बिहार को पुनः गौरवशाली बना सकती है।


संविधान और राज्य की जिम्मेदारी

आर्थिक असमानता, अशिक्षा और कुपोषण का बना रहना संविधान की प्रस्तावना और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की अवहेलना है। जब तक शासन जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होगा, तब तक बिहार के लिए “विकास” केवल भाषणों का शब्द बना रहेगा।


बिहार को चाहिए नई सोच और नया चाणक्य

बिहार को पुनः उठाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य जैसा नेतृत्व और चाणक्य जैसी नीतिगत दृष्टि चाहिए। विकास की नई दिशा शिक्षा, उद्योग और जनभागीदारी से निकलेगी, न कि केवल घोषणाओं से। जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सामाजिक चेतना का संगम नहीं होगा, तब तक बिहार का सुनहरा इतिहास केवल किताबों में ही सिमटा रहेगा।

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Aakash Srivastava

Writer & Editor at RashtraBharat.com | Political Analyst | Exploring Sports & Business. Patna University Graduate.

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