राजनीति का नया रंग: जब कलाकार बने जनसेवक
पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इस बार केवल राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि मनोरंजन जगत के चमकते सितारों के बीच भी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बन गया है। भोजपुरी और मैथिली के लोकप्रिय कलाकार अब पर्दे से उतरकर जनता के बीच “माननीय” बनने की आकांक्षा लेकर उतर रहे हैं। उनके गीतों और संवादों की गूंज अब भाषणों और घोषणाओं में बदल चुकी है।
इस चुनावी महासमर में भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव, लोकगायक रितेश पांडेय और प्रसिद्ध मैथिली गायिका मैथिली ठाकुर जैसे कलाकार मैदान में हैं। कोई जनसुराज से जुड़ा है, तो कोई राजद और भाजपा के रंग में रंग चुका है। उनके प्रशंसक अब दर्शक नहीं, बल्कि मतदाता बन गए हैं।
लोकप्रियता बनी राजनीतिक पूंजी
भोजपुरी फिल्मों से अपनी पहचान बना चुके खेसारी लाल यादव अब राजनीति में जनसेवा को नया मंच मानते हैं। उन्होंने कहा कि “अब मैं पर्दे पर नहीं, जनता के दिल में जगह बनाना चाहता हूं।” वहीं, रितेश पांडेय अपने गीतों के जरिए जनसंपर्क में जुटे हैं। सभाओं में उनके सुरों से भीड़ झूम उठती है, और यह ऊर्जा वोट में बदलने की कोशिश में है।
मैथिली ठाकुर, जो अपनी मधुर आवाज से हर दिल में जगह बना चुकी हैं, भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में हैं। उनके मंचों पर भाषणों के साथ लोकगीतों की मिठास भी गूंजती है। यह अनोखा संगम राजनीति और संस्कृति दोनों का प्रतिनिधित्व करता है।
मनोरंजन से जनसेवा तक: पुराना सिलसिला, नया जोश
कलाकारों का राजनीति में प्रवेश कोई नई बात नहीं है। पहले भी बिहार की धरती पर शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, शेखर सुमन जैसे बालीवुड कलाकार सक्रिय रहे हैं। परंतु अब समीकरण बदल चुके हैं।
जहाँ पहले बाहरी चमकदार नाम आकर्षण का केंद्र होते थे, वहीं अब स्थानीय भाषाओं के कलाकार जनता के और अधिक निकट हैं। उनका जुड़ाव मिट्टी, संस्कृति और भाषा से है — जो मतदाताओं के दिल तक पहुंचने की सबसे मजबूत डोर है।
जनभावना और संस्कृति का संगम
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार की राजनीति में भाषा, संस्कृति और लोककला की भूमिका गहरी है। भोजपुरी और मैथिली कलाकारों का ग्रामीण जनता से जुड़ाव, उनकी सादगी और जनप्रियता उन्हें राजनीति में एक सशक्त चेहरा बना रही है।
यह केवल प्रचार का साधन नहीं, बल्कि जनता से संवाद का नया तरीका बन गया है। जब कोई कलाकार मंच से बोलता है, तो जनता केवल शब्द नहीं सुनती — वह अपनी संस्कृति की आवाज सुनती है।
दल भी दिखा रहे हैं रुचि
राजनीतिक दल भी इस जनप्रियता को भलीभांति समझ रहे हैं। यही कारण है कि हर दल अपने प्रचार में किसी न किसी लोक कलाकार को शामिल कर रहा है।
जहाँ एक ओर खेसारी लाल यादव राजद के पोस्टर पर छाए हुए हैं, वहीं रितेश पांडेय जनसुराज के सुर में जनता को लुभा रहे हैं। भाजपा ने मैथिली ठाकुर को “संस्कृति और समर्पण की पहचान” बताते हुए अभियान का चेहरा बनाया है।
क्या जनता देगी वोट की तालियां?
हालांकि, राजनीति का मैदान सिनेमा से अलग है। यहाँ तालियों की जगह वोट मिलते हैं, और दर्शक नहीं, मतदाता निर्णायक होते हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मंचों पर ताली बटोरने वाले ये कलाकार, जनसभाओं में जनता के विश्वास और वोट भी जीत पाएंगे या नहीं।
फिलहाल, इतना तय है कि बिहार चुनाव 2025 में इस बार राजनीति और कला का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। जहाँ राजनीति के गलियारों में सुर गूंज रहे हैं, वहीं जनता के दिलों में उम्मीदों की नई धुन बज रही है।