Bihar Politics 2025: बिहार में जदयू की विरासत की परीक्षा: दूसरे चरण में 44 सीटों पर दांव, पीढ़ियों की राजनीति पर फोकस
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में जदयू (जनता दल यूनाइटेड) ने 44 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। इन प्रत्याशियों की सूची में विरासत की राजनीति का गहरा प्रभाव झलकता है। कई उम्मीदवार दशकों से जनता के बीच अपनी पहचान बनाए हुए हैं, तो वहीं कई नए चेहरे अपने पारिवारिक राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार का चुनाव जदयू के लिए केवल सत्ता की जंग नहीं, बल्कि “विरासत बनाम बदलाव” की परख भी माना जा रहा है।
विरासत की राजनीति: अनुभव और निरंतरता का संतुलन
जदयू ने अपने कई पुराने और अनुभवी चेहरों पर भरोसा जताया है, जिन्होंने वर्षों तक क्षेत्रीय राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। सुपौल से बिजेंद्र प्रसाद यादव इस सूची में सबसे प्रमुख नाम हैं। वे राज्य के ऊर्जा मंत्री के रूप में डेढ़ दशक से अधिक समय तक सक्रिय रहे हैं और लगातार अपने क्षेत्र में विकास कार्यों से जनता का विश्वास बनाए हुए हैं।
इसी तरह निर्मली से अनिरुद्ध प्रसाद यादव, अमौर से सबा जफर, रानीगंज से अचमित ऋषिदेव, पिपरा से रामविलास कामत और झाझा से दामोदर रावत जैसे नाम उन नेताओं की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने वर्षों से अपनी सीटों पर पकड़ बनाए रखी है। रफीगंज से प्रमोद कुमार सिंह भी इसी श्रेणी में हैं, जिनकी जड़ें स्थानीय राजनीति में गहराई तक फैली हैं।
विरासत में मिली राजनीति: नई पीढ़ी की चुनौती
Bihar Politics 2025: दूसरे चरण में कई ऐसे उम्मीदवार हैं जो अपने पिता या परिजनों की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। कहलगांव से शुभानंद मुकेश, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह के पुत्र हैं, जो अपने पिता की छवि और जनसंपर्क को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
घोसी से ऋतुराज कुमार, पूर्व सांसद अरुण कुमार के पुत्र हैं, वहीं नवीनगर से चेतन आनंद, आनंद मोहन के पुत्र हैं। चकाई से सुमित कुमार सिंह, सिकटा से समृद्ध वर्मा और बाबूबरही से मीना कामत भी इस “विरासत की श्रेणी” में आते हैं। इन सभी के सामने चुनौती है कि वे अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित राजनीतिक आधार को कायम रखते हुए जनता का विश्वास जीत सकें।
पहली बार मैदान में उतरे प्रत्याशी: नई उम्मीदें, नया दृष्टिकोण
इस चुनाव में जदयू ने कुछ नए चेहरों को भी मौका दिया है। पहली बार चुनावी अखाड़े में उतरने वालों में सोनम रानी सरदार, विशाल साह, सतीश साह, श्वेता गुप्ता और नागेंद्र चंद्रवंशी के नाम उल्लेखनीय हैं। ये उम्मीदवार जदयू की “नई सोच, नया बिहार” की नीति को आगे बढ़ाने के प्रतीक हैं। इनकी उम्मीदवारी यह दर्शाती है कि पार्टी अपने पुराने ढांचे में नई ऊर्जा और विचार जोड़ना चाहती है।
चार पूर्व सांसद भी मैदान में
दूसरे चरण में जदयू के चार ऐसे प्रत्याशी हैं जो पहले संसद तक पहुंच चुके हैं। काराकाट से महाबली सिंह, कदवा से दुलालचंद गोस्वामी, जहानाबाद से चंद्रेश्वर चंद्रवंशी और गोपालपुर से बुलो मंडल पहले सांसद रह चुके हैं। इन उम्मीदवारों के पास जनसंपर्क, अनुभव और संसदीय समझ की पूंजी है, जो उन्हें बाकी प्रत्याशियों से अलग करती है।
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों, पारिवारिक विरासत और जनसंपर्क की मजबूती पर आधारित रही है। जदयू के लिए यह चरण एक महत्वपूर्ण परीक्षा है — जहां पार्टी को अपनी पुरानी राजनीतिक परंपराओं को बनाए रखते हुए, नए चेहरों और विचारों को जगह देनी है। चुनाव का यह दौर केवल सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि बिहार की राजनीति में “विरासत” और “बदलाव” के बीच संतुलन कैसे स्थापित होगा।