बिहार में सत्ता की नई पटकथा: नीतीश कुमार की वापसी पर जनादेश से आगे राजनीति की गणित
पटना के गांधी मैदान ने एक बार फिर इतिहास को दर्ज किया, जब बिहार की राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेता नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह उनका दसवां कार्यकाल है, जो उन्हें न केवल राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उनके प्रभाव और बदलते समीकरणों को उजागर करता है। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति ने इस पूरे घटनाक्रम को एक विशेष राजनीतिक महत्व प्रदान किया, जो भविष्य की गठबंधन राजनीति की दिशा का भी संकेत देता है।
बिहार की राजनीति का निर्णायक मोड़
बुधवार को राजनीतिक हलचल तेज हुई, जब शाम तक नीतीश कुमार ने राजभवन पहुंच कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। 202 NDA विधायकों के समर्थन पत्र के साथ उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर नए सिरे से सरकार गठन की प्रक्रिया को गति दी। इसके तुरंत बाद राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान ने 17वीं विधानसभा भंग करने की औपचारिक घोषणा की और नीतीश कुमार को नई सरकार बनाने का न्योता दिया।
ऐतिहासिक उपस्थिति: प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी
बिहार की राजनीति में आज का दिन इसलिए भी खास दर्ज हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। यह वही दौर है जिसमें नीतीश कुमार ने 2014 के बाद पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनमें से किसी भी समारोह में प्रधानमंत्री उपस्थित नहीं थे। इस बार स्थिति अलग थी, जिसने NDA के भीतर सत्ता-संतुलन और गठबंधन की मजबूती को नया राजनीतिक संदेश दिया।

शपथ ग्रहण में बनाये गये नए सत्ता केंद्र
नीतीश कुमार के तुरंत बाद तड़ापुर से विजयी विधायक सम्राट चौधरी ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सम्राट चौधरी पिछड़े वर्ग और क्षेत्रीय नेतृत्व के प्रतिनिधि के रूप में NDA में नई भूमिका में प्रवेश कर रहे हैं। उनके साथ विजय सिन्हा ने भी उपमुख्यमंत्री पद संभालकर बिहार में दोहरी नेतृत्व प्रणाली की शुरुआत की। यह संकेत है कि राजनीतिक संतुलन क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के आधार पर और अधिक मजबूत किया जा रहा है।
टीम विस्तार: सत्ता में अनुभवी और नए चेहरे
शपथ समारोह में कई प्रमुख नेताओं को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इनमें विजय कुमार चौधरी, मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल, श्रवण कुमार और बिजेंद्र यादव शामिल रहे। इन चेहरों का चयन इस बात की पुष्टि करता है कि सत्ता की नई टीम में अनुभव, सामाजिक संतुलन और संगठन की मजबूती को प्राथमिकता दी गई है।
बार-बार सत्ता में वापसी का रहस्य
नीतीश कुमार की राजनीति की परिभाषा व्यक्तिगत करिश्मे से अधिक, परिस्थितियों की सटीक समझ और समयानुकूल निर्णयों पर आधारित है। वह 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका पहला कार्यकाल केवल सात दिनों का रहा। इसके बाद 2005 से उनकी सत्ता यात्रा ऐसे आगे बढ़ी कि लगातार नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। यह दसवीं शपथ न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि बिहार की राजनीति में सत्ता के समीकरणों की बदलती परिस्थितियों का भी संकेत है।
राजनीतिक संदेश: NDA का सुदृढ़ीकरण या रणनीतिक सहमति
प्रधानमंत्री की मौजूदगी यह साफ करती है कि NDA नीतीश कुमार की राजनीतिक उपयोगिता को राष्ट्रीय स्तर पर भी समझता है। बिहार लोकसभा चुनाव 2029 की दिशा में यह गठबंधन मजबूत करने का संकेत हो सकता है, जिसमें नीतीश कुमार एक केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं। दूसरी ओर, यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह गठबंधन पूरी तरह स्थायी हो चुका है, क्योंकि बिहार की राजनीति हमेशा अप्रत्याशित मोड़ों के लिए जानी जाती है।
बिहार की जनता की नजरें नई सरकार पर
बिहार की जनता की उम्मीदें इस नई सरकार से काफी ऊंची हैं। रोजगार, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं जैसे मुद्दे आज भी चुनौती बने हुए हैं। जनता चाहती है कि राजनीतिक गठबंधन की मजबूती केवल सत्ता संरक्षण तक सीमित न रहे, बल्कि राज्य के विकास का ठोस रास्ता भी प्रशस्त करे।
दसवीं शपथ केवल एक संख्या नहीं, बल्कि एक ऐसी राजनीतिक यात्रा का प्रतीक है, जो उतार-चढ़ाव, गठबंधन बदलाव और सत्ता संतुलन की जटिलताओं से होकर गुजरी है। आज बिहार एक नई सरकार को देख रहा है, लेकिन उसके सामने चुनौतियां पुरानी ही हैं। अब देखने वाला यह है कि क्या इस बार राजनीति विकास की दिशा में कोई निर्णायक कदम उठाती है या सत्ता की चौसर पर नए मोहरे ही बदलते रहेंगे।
यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।