उपेंद्र कुशवाहा का आत्मस्वीकार: पुत्र को मंत्री बनाने के निर्णय पर ‘जहर पीने’ जैसा क्षण

Upendra Kushwaha Controversy: पुत्र को मंत्री बनाने का निर्णय और पार्टी अस्तित्व की मजबूरी पर उनका आत्मस्वीकार
Upendra Kushwaha Controversy: पुत्र को मंत्री बनाने का निर्णय और पार्टी अस्तित्व की मजबूरी पर उनका आत्मस्वीकार (File Photo)
उपेंद्र कुशवाहा ने अपने पुत्र दीपक प्रकाश को मंत्री बनाए जाने पर उठे विवाद पर स्पष्ट किया कि यह कदम उन्होंने पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए लिया। इसे उन्होंने ‘जहर पीने’ जैसा बताया। परिवारवाद के आरोपों को नकारते हुए उन्होंने कहा कि दीपक योग्य हैं और उन्हें खुद को साबित करने का समय दिया जाए।
नवम्बर 21, 2025

उपेंद्र कुशवाहा के निर्णय पर उठे प्रश्न और उनका आत्मस्वीकार

बिहार की राजनीति में बीते कुछ दिनों से सबसे अधिक चर्चा जिस विषय पर हो रही है, वह है राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा द्वारा अपने पुत्र दीपक प्रकाश को नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल करवाने का निर्णय। यह कदम न केवल राजनीतिक गलियारों में बहस का विषय बना, बल्कि इससे जुड़े तमाम आरोप—विशेषकर परिवारवाद—ने इस मुद्दे को और अधिक विवादास्पद बना दिया। इसी पृष्ठभूमि में कुशवाहा ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए स्पष्ट किया कि उन्होंने यह निर्णय अत्यंत भारी मन से लिया और इसे ‘जहर पीने’ जैसा बताया।

निर्णय की पृष्ठभूमि: राजनीतिक परिस्थितियों का दबाव

कुशवाहा ने अपने सोशल मीडिया बयान में कहा कि यह निर्णय उन्होंने सुख या सुविधा में नहीं, बल्कि पार्टी की मजबूरी और उसके अस्तित्व को बचाने के लिए लिया। उनके अनुसार पार्टी जिस प्रकार पिछली कई राजनीतिक घटनाओं से गुज़री, उनमें कई बार अलोकप्रिय और आत्मघाती निर्णय भी लेने पड़े। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसे कदमों से संगठन को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिससे वे लगभग शून्य पर पहुँच गए थे।

उनके शब्दों में, यह आशंका वास्तविक थी कि यदि सही समय पर सही कदम नहीं उठाया गया, तो पार्टी दुबारा उसी ‘शून्य’ की ओर लौट सकती थी। यही कारण है कि उन्होंने पुत्र के मंत्रिमंडल में शामिल होने को व्यावहारिक आवश्यकता बताया, न कि व्यक्तिगत आकांक्षा।

परिवारवाद के आरोपों पर कुशवाहा की प्रतिक्रिया

परिवारवाद का तगड़ा आरोप लगने पर कुशवाहा ने कहा कि यदि लोग उनके निर्णय को इस दृष्टि से देखते हैं, तो वे उनकी विवशता को समझने की कोशिश करें। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनका उद्देश्य कभी भी अपने परिवार को आगे बढ़ाने का नहीं रहा, बल्कि वे हमेशा पार्टी के संगठन, मजबूती और भविष्य को प्राथमिकता देते आए हैं। अपने बयान में उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोकप्रियता को जोखिम में डालकर बड़े और कठोर निर्णय लेना हमेशा कठिन होता है, फिर भी परिस्थितियाँ उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर देती हैं।

‘जहर पीने’ जैसी स्थिति क्यों?

कुशवाहा ने समुद्र मंथन की उपमा देते हुए कहा कि कई बार नेतृत्वकर्ता को वह ‘ज़हर’ पीना पड़ता है जो संगठन के हित में आवश्यक हो। उनके अनुसार, पुत्र को मंत्री बनवाना ऐसा ही एक निर्णय था जो व्यक्तिगत रूप से उनके लिए अत्यंत अप्रिय था, क्योंकि इससे उन पर परिवारवाद का आरोप लगना स्वाभाविक था। फिर भी उन्होंने यह कदम केवल इसलिए उठाया ताकि पार्टी भविष्य में पुनः अस्तित्वहीन न हो जाए।

दीपक प्रकाश की योग्यता पर कुशवाहा का भरोसा

अपने पुत्र दीपक प्रकाश की योग्यता और पात्रता पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए कुशवाहा ने कहा कि दीपक न तो किसी तरह का ‘फेल विद्यार्थी’ है और न ही केवल जाति या परिवार की वजह से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई है। उन्होंने बताया कि दीपक ने मेहनत से अध्ययन कर कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की है और पारिवारिक संस्कारों से परिपूर्ण है। उन्होंने जनता से और आलोचकों से अनुरोध किया कि वे दीपक को खुद को साबित करने का समय दें। उनके अनुसार, किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके परिवार से नहीं बल्कि उसकी योग्यता से होना चाहिए।

आलोचकों को कुशवाहा का संदेश

कुशवाहा ने आलोचकों पर व्यंग्य करते हुए लिखा कि उन्हें इस बात से तकलीफ है कि उन्होंने ‘ज़हर पी’ लिया और फिर भी ‘जी’ गए। उन्होंने यह भी कहा कि आलोचना लोकतंत्र में स्वाभाविक है, परंतु आलोचना करते समय परिस्थितियों की जटिलता को समझना भी आवश्यक है।

बिहार की राजनीति में इस फैसले का प्रभाव

कुशवाहा के इस निर्णय का असर न केवल उनकी पार्टी के भीतर, बल्कि बिहार की व्यापक राजनीतिक संरचना पर भी देखने को मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम उनके लिए अल्पकालिक असुविधा और लंबी अवधि में संभावित लाभ दोनों ला सकता है। यदि दीपक प्रकाश खुद को एक कुशल मंत्री के रूप में स्थापित कर पाने में सफल होते हैं, तो यह कुशवाहा की राजनीतिक सूझबूझ का सकारात्मक परिणाम बन सकता है। वहीं, यदि ऐसा नहीं हुआ, तो परिवारवाद का आरोप उनके राजनीतिक सफर को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना सकता है।

पार्टी के भविष्य के लिए यह निर्णय कितना महत्वपूर्ण?

जिस तरह कुशवाहा ने पार्टी के अस्तित्व को इस निर्णय का मुख्य कारण बताया, उससे स्पष्ट होता है कि वे राजनीतिक जमीन पर संभावित जोखिमों से भलीभांति अवगत हैं। उनकी नजरें जमीन स्तर पर पार्टी के संगठन, कार्यकर्ताओं के मनोबल और चुनावी संभावनाओं पर हैं। यह निर्णय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि बिहार की राजनीति में गठबंधन, समीकरण और संतुलन तेजी से बदलते रहते हैं। ऐसे में यदि नेतृत्वकर्ता समय रहते कोई बड़ा कदम न उठाए, तो राजनीतिक अस्तित्व पर संकट आ सकता है।

विवशता, दबाव और जनादेश की प्रतीक्षा

कुशवाहा का यह निर्णय बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में उभर रहा है। उन्होंने जिस बेबाकी से अपनी विवशता व्यक्त की है, वह उनके राजनीतिक चरित्र को भी दर्शाता है। अब यह देखना होगा कि जनता, कार्यकर्ता और राजनीतिक विरोधी इस कदम को किस नजर से देखते हैं। अंततः जनादेश ही यह तय करेगा कि कुशवाहा का यह ‘जहर पीने’ जैसा निर्णय पार्टी के लिए अमृत साबित होगा या एक नई चुनौती की शुरुआत।

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