प्रशांत किशोर स्वीकारते हैं, जन सुराज की बिहार में हार, जनता का विश्वास जीतने में विफल रहे

Prashant Kishor (3)
Prashant Kishor: Prashant Kishor की पार्टी बिहार में हार के बाद आत्म-मूल्यांकन (Photo: IANS)
प्रशांत किशोर ने स्वीकार किया है कि उनकी जन सुराज पार्टी बिहार विधानसभा चुनावों में जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रही। संगठनात्मक कमजोरियाँ, ज़मीनी पहुँच की कमी और नेतृत्व में अस्पष्टता प्रमुख कारण रहे। हार के बाद उन्होंने आत्म-निरीक्षण का मार्ग चुना और सुधार की दिशा में पुनर्गठन का संकल्प लिया है।
नवम्बर 18, 2025

हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj) को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इसके संस्थापक और रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि उनकी पार्टी जनता का विश्वास जीत पाने में विफल रही। यह बयान उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और जन परिवर्तन के सपनों के लिए एक गहन आत्म-चिंतन की निशानी है।


प्रखर आत्म-जवाबदेही और माफ़ी

प्रशांत किशोर ने कहा है कि उन्होंने 100 प्रतिशत जिम्मेदारी ली है। 
वे बताते हैं कि तीन वर्षों पहले बिहार आए थे, ताकि सिस्टम में बदलाव ला सकें, लेकिन उनकी योजनाएं जमीन पर उस तरह मूर्त रूप नहीं ले सकीं, जैसा वे चाहते थे। उन्होंने जनता से माफी मांगी और कहा कि उनकी योजनाओं में कहीं न कहीं कमी रही — चाहे वह सोच हो, संवाद हो या कार्रवाई का नाम।


हार के कारण — संगठनात्मक और रणनीतिक कमजोरियाँ

ग्रामीण पहुँच की कमी

विश्लेषकों के अनुसार, जन सुराज की राजनीति मुख्यतः डिजिटल और शहरी माध्यमों तक सीमित रही। 
बिहार की बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों में है, लेकिन वहां जन सुराज का जाल मजबूत नहीं बन पाया, जिससे वोट बैंक बिखरा हुआ दिखा।

बूथ-स्तर संगठन का अभाव

पार्टी के पास मजबूत बूथ-लेवल प्रतिस्थापन या एजेंट स्ट्रक्चर नहीं था। 
स्थानीय नेता और सेल्स संगठनों का कमजोर गठन, टिकट वितरण में “पैराशूट उम्मीदवारों” की उपस्थिति ने भी जन सुराज की जमीन-पकड़ को कमजोर किया।

नेतृत्व में अस्पष्टता

किशोर ने स्वयं चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया, जो मतदाताओं के लिए एक बड़ा सवाल बन गया। 
इससे उनकी नेतृत्व शैली और पार्टी की दिशा को लेकर भ्रम उत्पन्न हुआ।

पहचान और पहचान-निर्माण में चुनौतियाँ

जन सुराज ने विकास-केंद्रित विषयों पर जोर दिया — बेरोजगारी, प्रवासन, शिक्षा — लेकिन बिहार की राजनीति में जाति, पहचान और स्थानीय जुड़ाव की प्रमुख भूमिका रहती है।
इसलिए, विकासवाद के इस संदेश का हर स्तर पर प्रतिध्वनि नहीं बन पाया।

डिजिटल हाइप बनाम जमीन की हकीकत

पार्टी की डिजिटल उपस्थिति बेहद मजबूत थी — सोशल मीडिया, यूट्यूब, ऐप्स के जरिए विचार पॉपुलर किए गए। 
लेकिन यह ऑनलाइन उत्साह वोटों में रूपांतरित नहीं हो सका क्योंकि वास्तविक चुनावी मशीनरी और बूथ-स्तर संगठन कमजोर था।


हार के बाद प्रतिक्रिया और भविष्य की दिशा

मौन व्रत और आत्म–निरीक्षण

परिणामों के बाद, किशोर ने आत्म-मूल्यांकन का मार्ग चुना है। उन्होंने मौन व्रत लेने की घोषणा की है, जो उनकी गंभीरता और जिम्मेदारी की भावना को दर्शाता है।
यह कदम व्यक्तिगत प्रतिबिंब के साथ-साथ पार्टी में सुधार की दिशा की शुरुआत हो सकता है।

बदलाव का संकल्प

जन सुराज के पक्ष में कहा गया है कि वे हार के बाद हिम्मत नहीं हारेंगे। 
किशोर ने यह भरोसा दिलाया है कि वे बिहार में “बदला वाद” के अपने विचारों को छोड़ने का इरादा नहीं रखते। उन्होंने कहा कि जब तक बिहार में सार्थक परिवर्तन नहीं आएगा, वे राजनीति छोड़ने का नहीं सोचेंगे।

वित्तीय असंतुलन और चुनावी रणनीति पर सवाल

पार्टी को सीमित बूथ-स्तर संगठन और बहुत अधिक डिजिटल निर्भरता का दुष्परिणाम भुगतना पड़ा।
विश्लेषकों ने यह तर्क दिया है कि जन सुराज की पहचान में ज़मीनी जुड़ाव का अभाव रहा, जिसे आगे सुधारना होगा।


नीतिगत मैसेज और राजनीतिक कहानी की प्रभावशीलता

किशोर ने चुनावी अभियान में विकासवाद, रोजगार और प्रवासन जैसे मुद्दों को उठाया। 
हालाँकि, उनका कहना है कि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने राजनीतिक विमर्श को बदल दिया — अन्य बड़े दलों को “नए एजेंडा” पर बहस करने के लिए मजबूर किया।
उनके आलोचक कह रहे हैं कि इस विमर्श की जड़ों को ज़मीन पर उतारना ही उनकी बड़ी चुनौती थी, और इसे वे जीत नहीं पाए।

जन सुराज की यह हार किसी छोटी पार्टी की हार नहीं है — यह एक बड़ी महत्वाकांक्षा और संवेदनशील राजनीतिक विचारधारा की परीक्षा थी।
प्रशांत किशोर न केवल रणनीतिकार के रूप में जाने जाते थे, बल्कि परिवर्तन के चेहरे के रूप में भी नए रूप में सामने आए थे। उनकी शुरुआत में मिली डिजिटल सफलता ने उन्हें व्यापक पहचान दी, लेकिन वास्तविक चुनावी मुकाबले में ज़मीनी शक्ति और बूथ-स्तरीय संगठन की कमी उनकी बड़ी कमजोरी साबित हुई।
अब जब पिछली गलतियों का विश्लेषण होना है, पार्टी को दो मार्ग मिलते हैं — या तो यह अपनी डिजिटल ताकत को बेहतर बूथ-संरचना के साथ जोड़कर पुनर्गठन करे, या खुद को पुनर्परिभाषित करते हुए राजनीति के नए मार्जिन तक सीमित कर ले। किशोर ने आत्मावलोकन का निर्णय ले लिया है, और आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जन सुराज इस आत्म-जिम्मेदारी को सुधार में कैसे बदलती है।

यह समाचार IANS एजेंसी के इनपुट के आधार पर प्रकाशित किया गया है।

Rashtra Bharat
Rashtra Bharat पर पढ़ें ताज़ा खेल, राजनीति, विश्व, मनोरंजन, धर्म और बिज़नेस की अपडेटेड हिंदी खबरें।