करगहर में महागठबंधन में दरार, दो प्रत्याशियों के उतरने से वोटों का बिखराव तय
करगहर (रोहतास)। बिहार के रोहतास ज़िले की करगहर विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनावी माहौल खासा दिलचस्प हो गया है। महागठबंधन में एकता की बात करने वाले नेता अब अंदरूनी मतभेदों से जूझते दिख रहे हैं। कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जिससे महागठबंधन के मतों में बिखराव तय माना जा रहा है।
महागठबंधन की एकता पर सवाल
सोमवार को नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस के निवर्तमान विधायक संतोष कुमार मिश्रा और सीपीआई (एमएल) के महेंद्र प्रसाद गुप्ता ने अपने-अपने नामांकन दाखिल किए। दोनों दलों का एक ही गठबंधन में शामिल होना और फिर भी अलग-अलग प्रत्याशी उतारना यह संकेत देता है कि महागठबंधन की जमीनी स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी ऊपर से दिखाई देती है।
सीपीआई (एमएल) प्रत्याशी महेंद्र प्रसाद गुप्ता का कहना है कि उन्हें पार्टी द्वारा उच्च नेतृत्व की स्वीकृति के बाद ही सिंबल प्रदान किया गया है। उन्होंने दावा किया कि वे वर्षों से क्षेत्र की जनसमस्याओं को उठाते रहे हैं और इस बार जनता के बीच सीधे संघर्ष के माध्यम से अपनी बात रखने को तैयार हैं।
त्रिकोणीय मुकाबले के संकेत
सीपीआई (एमएल) के चुनावी मैदान में आने से करगहर विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। अब समीकरण केवल महागठबंधन बनाम राजग तक सीमित नहीं रह गए हैं। जन सुराज पार्टी और बसपा भी चुनावी दौड़ में हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह बिखराव महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।
महागठबंधन के समर्थक अब असमंजस में हैं कि आखिर किस प्रत्याशी को मत दें। दोनों उम्मीदवार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं, जिससे भ्रम की स्थिति और गहरी हो रही है।
2015 का अनुभव और जातीय गणित
गौरतलब है कि सीपीआई (एमएल) के महेंद्र प्रसाद गुप्ता वर्ष 2015 में भी चुनावी मैदान में उतरे थे, जहां उन्हें लगभग 1500 मत मिले थे। वे वैश्य समाज से आते हैं और करगहर क्षेत्र के ही मूल निवासी हैं। इस बार भी उनके मैदान में उतरने से न केवल महागठबंधन के वोटों का विभाजन होगा, बल्कि राजग को भी आंशिक नुकसान हो सकता है क्योंकि भाजपा का पारंपरिक मतदाता वर्ग भी वैश्य समाज से जुड़ा हुआ है।
जन सुराज पार्टी और नए समीकरण
सासाराम में जन सुराज पार्टी ने विनय कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया है, जिससे करगहर में इस पार्टी के प्रत्याशी रितेश रंजन पांडेय को भी अप्रत्यक्ष रूप से मजबूती मिल सकती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजपूत समाज जन सुराज पार्टी के पक्ष में गोलबंद होता दिख रहा है। क्षेत्र में ब्राह्मण प्रत्याशियों की अनुपस्थिति से भी समीकरण नए सिरे से बनते नज़र आ रहे हैं।
मतदाताओं की चुप्पी और राजनीतिक अनिश्चितता
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार का चुनाव जातीय और पारंपरिक समीकरणों से आगे बढ़कर प्रत्याशियों के व्यक्तित्व और क्षेत्रीय कार्यों पर निर्भर करेगा। मतदाता खुलकर अपने झुकाव का इज़हार नहीं कर रहे हैं। अधिकांश लोग ‘चुप्पी साधे मतदाता’ की भूमिका में हैं, जिससे अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है कि किस ओर हवा बहेगी।
पांच मुख्य दलीय उम्मीदवारों में रोचक टक्कर
करगहर विधानसभा से इस बार पाँच प्रमुख प्रत्याशी मैदान में हैं —
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जन सुराज पार्टी: रितेश रंजन पांडेय
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जदयू: वशिष्ठ सिंह
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कांग्रेस: संतोष कुमार मिश्रा
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बसपा: उदय प्रताप सिंह
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सीपीआई (एमएल): महेंद्र प्रसाद गुप्ता
नामांकन की जांच (स्क्रूटनी) के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि कौन-कौन अंतिम रूप से चुनावी रणभूमि में रहेगा। लेकिन अभी से ही यह तय माना जा रहा है कि करगहर का चुनावी मुकाबला इस बार बेहद रोचक और अप्रत्याशित रहेगा।
करगहर विधानसभा क्षेत्र का यह चुनाव इस बार महागठबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। दो प्रत्याशियों के उतरने से वोटों का बिखराव लगभग तय है। यदि ऐसा हुआ, तो इसका लाभ अन्य दलों, खासकर जन सुराज पार्टी और राजग को मिल सकता है। राजनीतिक समीकरणों में यह दरार आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति को नया मोड़ दे सकती है।