उपेंद्र कुशवाहा की बगावत से उजियारपुर में सियासी हलचल तेज
समस्तीपुर जिले की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व जिला अध्यक्ष एवं बीस सूत्री कार्यक्रम के सदस्य उपेन्द्र कुशवाहा ने पार्टी से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। यह ऐलान उन्होंने सैकड़ों समर्थकों की मौजूदगी में किया, जिसमें भाजपा संगठन की अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आ गई।
नाराजगी की जड़: उजियारपुर सीट का गठबंधन के खाते में जाना
उजियारपुर विधानसभा सीट इस बार एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोकमत (आरएलएम) के हिस्से में चली गई। इस निर्णय से भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष व्याप्त हो गया। उपेन्द्र कुशवाहा ने आरोप लगाया कि सीट के बंटवारे में कार्यकर्ताओं की राय को नजरअंदाज किया गया। उनका कहना था कि वे एक वर्ष से इस क्षेत्र में लगातार कार्य कर रहे थे, परंतु पार्टी नेतृत्व ने उनकी मेहनत को अनदेखा कर दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि आरएलएम को यह सीट “स्वाभाविक रूप से” नहीं मिली, बल्कि केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इसे अपने प्रभाव से “जबरन” उनके खाते में दिलवाया। कुशवाहा का आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक भावना के विपरीत हुई।
केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय पर तीखे आरोप
अपने संबोधन में उपेन्द्र कुशवाहा ने केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि नित्यानंद राय लंबे समय से पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं और संगठन को कमजोर करने का कार्य कर रहे हैं। कुशवाहा ने कहा,
“2020 के चुनाव में भी नित्यानंद राय ने उजियारपुर के कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या की थी। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि नित्यानंद राय पूरे बिहार में सीट शेयरिंग के नाम पर मनमानी कर रहे हैं, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है।
भाजपा कार्यकर्ताओं में आक्रोश और समर्थन की लहर
उपेन्द्र कुशवाहा के इस निर्णय के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने इसे “अनुशासनहीनता” बताया, तो कई स्थानीय नेताओं ने कुशवाहा के समर्थन में उतरते हुए कहा कि पार्टी नेतृत्व को जमीनी सच्चाई समझनी चाहिए।
सभा स्थल पर जुटे कार्यकर्ताओं ने “उपेन्द्र कुशवाहा ज़िंदाबाद” और “भाजपा नेतृत्व मुर्दाबाद” जैसे नारे लगाए। इससे साफ था कि स्थानीय स्तर पर कुशवाहा का जनाधार मजबूत है।
निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा
सभा के दौरान उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि वे “जनता के सहयोग से निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ेंगे।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका संघर्ष किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि “पार्टी के भीतर बढ़ती तानाशाही प्रवृत्ति” के खिलाफ है।
उन्होंने कहा,
“मैंने हमेशा संगठन के हित में काम किया, परंतु जब नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं की मेहनत को नकार दिया, तो जनता के सम्मान के लिए यह कदम उठाना पड़ा।”
राजनीतिक समीकरणों में बदलाव की आशंका
उपेन्द्र कुशवाहा के निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले से उजियारपुर विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। एनडीए गठबंधन को जहां इससे नुकसान हो सकता है, वहीं विपक्षी दल इस असंतोष का लाभ उठाने की रणनीति बना सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि उपेन्द्र कुशवाहा को स्थानीय कार्यकर्ताओं और जनता का समर्थन मिला, तो वे चुनाव में “किंगमेकर” की भूमिका में आ सकते हैं।
स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया
उजियारपुर क्षेत्र के मतदाताओं में इस घोषणा को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। कई ग्रामीणों ने कहा कि उपेन्द्र कुशवाहा हमेशा जनता के बीच रहे हैं और उनका क्षेत्र में मजबूत जनसंपर्क है। वहीं कुछ मतदाता अब भी भाजपा के साथ बने रहने की बात कह रहे हैं।
उपेन्द्र कुशवाहा की बगावत ने भाजपा के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। जिस उजियारपुर सीट को पार्टी ने गठबंधन की मजबूती के लिए छोड़ा, वही सीट अब उसके लिए सिरदर्द बन सकती है। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि कुशवाहा की यह राजनीतिक चाल उन्हें कितनी दूर तक ले जाती है, पर इतना तय है कि समस्तीपुर की सियासत में अब एक नया मोड़ आ चुका है।