विकास और जातीय संतुलन बना तरैया का मुख्य समीकरण
सारण जिले की तरैया विधानसभा सीट इस बार चुनावी हलचल का केंद्र बनी हुई है। यहां का मुकाबला एनडीए, महागठबंधन और जनसुराज के बीच त्रिकोणीय होता जा रहा है। विकास के मुद्दों और जातीय संतुलन के बीच मतदाताओं की राय बंटी हुई है।
तरैया की गलियों, चौपालों और बाजारों में सिर्फ एक ही चर्चा है – “कौन जीतेगा?” हर गांव में नुक्कड़ सभाएं और जनसंपर्क अभियान जोरों पर हैं।
एनडीए का फोकस – विकास योजनाओं की ताकत
वर्तमान विधायक और एनडीए उम्मीदवार ने अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को जनता के सामने रखकर वोट मांगना शुरू किया है।
उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं को अपने काम का प्रमाण बताया है।
उनका कहना है कि तरैया में पिछले पांच वर्षों में जो विकास हुआ है, वह जनता के सामने है।
वे लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि “इस बार वोट जाति नहीं, विकास के नाम पर पड़ेगा।”
उनके साथ भाजपा और जदयू के कई वरिष्ठ नेता क्षेत्र में जनसभाएं कर रहे हैं।
महागठबंधन का पलटवार – बेरोजगारी और महंगाई मुख्य मुद्दा
राजद प्रत्याशी और महागठबंधन की टीम जनता के बीच जाकर एनडीए सरकार को निशाने पर ले रही है।
वे बेरोजगारी, किसानों की समस्या, शिक्षा व्यवस्था और महंगाई को मुख्य चुनावी मुद्दा बना रहे हैं।
राजद उम्मीदवार का कहना है कि “जनता अब झूठे वादों से ऊब चुकी है।”
वे दावा कर रहे हैं कि राजद की सरकार बनने पर युवाओं को रोजगार और किसानों को राहत दी जाएगी।
उनके समर्थन में कांग्रेस, माले और वामदलों के कार्यकर्ता भी एकजुट होकर प्रचार कर रहे हैं।
जनसुराज का तीसरा विकल्प – युवाओं पर नजर
जनसुराज पार्टी इस सीट पर तीसरे मोर्चे के रूप में तेजी से उभर रही है।
उनका प्रचार अभियान मुख्य रूप से युवाओं और छात्रों पर केंद्रित है।
जनसुराज प्रत्याशी का कहना है कि “पुरानी राजनीति ने तरैया को पीछे छोड़ दिया है। अब बदलाव की जरूरत है।”
वे पारदर्शी शासन, शिक्षा और रोजगार को अपना मुख्य चुनावी एजेंडा बना चुके हैं।
पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदाता भी उनकी सभाओं में बड़ी संख्या में दिख रहे हैं।
निर्दलीय उम्मीदवारों ने बढ़ाई पेचीदगी
चुनावी तस्वीर को और जटिल बना रहे हैं राजद के बागी उम्मीदवार, जिन्होंने टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय रूप में मैदान में उतरने का फैसला किया है।
उनका दावा है कि वे तरैया के स्थानीय मुद्दों को बेहतर जानते हैं और जातीय आधार पर वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे राजद का पारंपरिक वोट बैंक खिसक सकता है।
मतदाताओं की राय बंटी – “विकास या जाति?”
धरातल पर मतदाताओं की राय दो हिस्सों में बंटी हुई नजर आ रही है।
कुछ लोग एनडीए उम्मीदवार की उपलब्धियों की तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ महागठबंधन प्रत्याशी को “जनता का आदमी” बता रहे हैं।
वहीं युवा मतदाताओं के बीच बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा गहराई से असर डाल रहा है।
ग्रामीण इलाकों में जातीय एकजुटता अब भी निर्णायक फैक्टर है, जबकि शहरी इलाकों में विकास और रोजगार प्रमुख चर्चा के विषय हैं।
नतीजे का इंतजार – कांटे की टक्कर तय करेगी दिशा
तरैया विधानसभा सीट का यह चुनाव पूरे सारण जिले का सबसे चर्चित मुकाबला बन गया है।
मुकाबला इतना करीबी है कि कोई भी नतीजा चौंका सकता है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार का फैसला तरैया की जनता यह तय करेगी कि बिहार की राजनीति में विकास भारी पड़ेगा या जातीय समीकरण।