शाहाबाद में पवन सिंह की राजनीतिक ताकत
कंचन किशोर, आरा। शाहाबाद में राजनीति का नया समीकरण बनता दिख रहा है, जहाँ पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की साझेदारी चुनावी रंग बदल सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में पवन सिंह ने काराकाट सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 2 लाख 74 हजार से अधिक वोट हासिल कर एनडीए को बड़ा झटका दिया था।
पावर स्टार का चुनावी प्रभाव
पवन सिंह की लोकप्रियता केवल फिल्म इंडस्ट्री तक सीमित नहीं रही, बल्कि राजनीति में भी उनका पावर स्टार फैक्टर काम आया। शाहाबाद के चारों जिलों में एनडीए की पिछली हार में उनका योगदान निर्णायक रहा। आरा, सासाराम, बक्सर और भभुआ में एनडीए को पिछली बार नुकसान हुआ।
उपेंद्र कुशवाहा के साथ गठबंधन
अब पवन सिंह उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर चुनावी समीकरण को मजबूती देने की तैयारी में हैं। एनडीए उन्हें उनके कद और लोकप्रियता के अनुसार महत्व दे रहा है। राजपूत और कुशवाहा वोटरों की एकजुटता इस बार एनडीए के लिए निर्णायक साबित हो सकती है।
शाहाबाद का चुनावी परिदृश्य
शाहाबाद का क्षेत्रीय समीकरण एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है। 2020 के चुनाव के बाद यहां के मतदान में संतुलन बिगड़ा और पिछले लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के प्रभाव से चारों जिले में एनडीए की हार हुई।
भोजपुर में भी सात सीटों में से पांच पर भाजपा-जदयू को हार मिली। मामूली अंतर से आरा सदर और बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में ही एनडीए को जीत मिली।
रणनीति और समीकरण
हाल में पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की गलबहियां डालने वाली तस्वीर वायरल हुई, जिसे भाजपा नेता समीकरण मजबूत करने की दिशा में सकारात्मक कदम बता रहे हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह द्वारा जातीय समीकरण पर दिए गए बयान और पवन सिंह की भूमिका को साधने की शीर्ष स्तर की रणनीति इस बार शाहाबाद चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।