रघुनाथपुर की सियासी जंग: विकास की नीति बनाम विरासत की राजनीति
आकाश श्रीवास्तव(सबएडिटर राष्ट्र भारत,बिहार)। लोकतंत्र के इस महापर्व में रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर से राजनीतिक रणभूमि में तब्दील हो गया है। यहां का मुकाबला केवल दो प्रत्याशियों के बीच नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं के बीच है — एक ओर विकास की राजनीति का प्रतीक बन चुके एनडीए प्रत्याशी विकास कुमार सिंह उर्फ जिशु सिंह हैं, तो दूसरी ओर विरासत की राजनीति का चेहरा माने जा रहे आरजेडी उम्मीदवार ओसामा शहाबुद्दीन।

जनता का मूड: अब विकास चाहिए, वादे नहीं
ग्रामीण चौपालों से लेकर नगर पंचायत के बाजारों तक, इस बार मतदाताओं की चर्चा का केंद्र मुद्दे हैं — सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। लोग अब उस दौर से निकल चुके हैं जब राजनीति जातीय समीकरणों और पारिवारिक विरासत पर टिकती थी।
जिशु सिंह, जिन्होंने टिकट मिलते ही चुनावी दौरे को मिशन में बदल दिया, दिन-रात जनसंपर्क कर रहे हैं। खेतों में किसानों से, स्कूलों में युवाओं से और आंगनबाड़ी केंद्रों पर महिलाओं से संवाद उनके अभियान की खासियत बन चुका है।

जमीनी जुड़ाव ने बढ़ाई विकास की रफ्तार
उनकी सादगी, सरल भाषा और जनता से जुड़ने का सहज तरीका उन्हें लोगों के करीब ला रहा है। गांवों में उनके स्वागत का तरीका बताता है कि जनता बदलाव चाहती है।
जिशु सिंह का कहना है — “राजनीति मेरे लिए सेवा का माध्यम है, सत्ता का नहीं।” यही भाव उनके हर भाषण में झलकता है।

ओसामा शहाबुद्दीन के लिए चुनौती — विरासत से बाहर निकलने की
दूसरी ओर, आरजेडी प्रत्याशी ओसामा शहाबुद्दीन के सामने अपने पिता स्वर्गीय मोहम्मद शहाबुद्दीन की छवि से अलग पहचान बनाने की कठिन चुनौती है।
जनसभाओं में अक्सर वे शब्दों की कमी से जूझते दिखते हैं। स्थानीय मतदाताओं का कहना है कि वे जनता से संवाद की बजाय दूरी बनाए रखते हैं। कई मौकों पर जब सवालों का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने जवाब देने से बचना चुना।
उनके अभियान में कांग्रेस या महागठबंधन के बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी ने भी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराया है। मंच पर बस कुछ स्थानीय चेहरों और असंगठित सहयोगियों की मौजूदगी ने रैली के माहौल को फीका बना दिया।

जनता की प्राथमिकता — विकास की राह पर भरोसा
रघुनाथपुर की जनता अब भावनात्मक नारों से आगे बढ़ चुकी है।
वे जानती है कि सड़कें, अस्पताल और रोजगार ही असली मुद्दे हैं।
महिला मतदाता साफ कहती हैं — “हमें वह नेता चाहिए जो बोले कम और काम ज्यादा करे।”
युवा वर्ग रोजगार, तकनीकी शिक्षा और स्थानीय अवसरों की मांग कर रहा है, और उन्हें लगता है कि जिशु सिंह इन मुद्दों पर ज्यादा गंभीर हैं।

विरासत की राजनीति की सीमाएं
ओसामा शहाबुद्दीन के समर्थक भले यह दावा कर रहे हों कि क्षेत्र में अब भी उनके पिता की पकड़ है, पर नई पीढ़ी के लिए वह ‘डर और प्रभाव’ की राजनीति अब आकर्षक नहीं रही।
रघुनाथपुर की नई सोच यह तय कर चुकी है कि प्रतिनिधि वही चाहिए जो जनता के साथ हर पल खड़ा रहे, न कि सिर्फ चुनाव के वक्त।

जंग का नतीजा क्या बताएगा?
यह चुनाव केवल एक सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति के बदलते स्वरूप की झलक भी देगा।
अगर रघुनाथपुर की जनता विकास कुमार सिंह को चुनती है, तो यह उस बदलाव की पुष्टि होगी जिसमें लोग जाति या विरासत से ऊपर उठकर मुद्दों और काम को तरजीह दे रहे हैं।
और अगर विरासत का नाम भारी पड़ता है, तो यह संकेत होगा कि बिहार की राजनीति में अभी भी पुराने ढर्रे की पकड़ कायम है।
जनता का झुकाव किस ओर?
स्थानीय समीकरणों और जनमत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हवा इस बार विकास के पक्ष में बह रही है।
गांवों में चर्चा है — “इस बार शहाबुद्दीन की छाया नहीं, जिशु सिंह का सलीका चलेगा।”
यह वाक्य रघुनाथपुर के जनमानस की सोच को पूरी तरह बयां करता है।
निष्कर्ष: जनता ने थाम लिया विकास का हाथ
रघुनाथपुर की सियासत अब केवल विरासत की छाया से बाहर निकल रही है।
यह चुनाव तय करेगा कि लोकतंत्र में जनता विकास की उम्मीद को प्राथमिकता देती है या अतीत की पहचान को।
फिलहाल जनभावना का झुकाव साफ है — रघुनाथपुर की जनता अब विकास के पथ पर बढ़ना चाहती है, जहां संवाद, पारदर्शिता और सेवा भावना ही राजनीति की नई परिभाषा बने।