चीन की मदद से दिल्ली की हवा होगी स्वच्छ
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर इस समय खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों की अधिकता ने सांस लेना भी कठिन बना दिया है। ऐसे में चीन ने भारत की राजधानी को राहत देने के लिए अपनी तकनीकी मदद की पेशकश की है। बीजिंग ने कुछ वर्ष पहले इसी प्रकार की गंभीर स्थिति से निपटने में सफलता हासिल की थी, और अब वही मॉडल दिल्ली में लागू करने की बात कही जा रही है।
बीजिंग से मिली प्रेरणा
बीजिंग ने 2010 के दशक की शुरुआत में वायु प्रदूषण के चरम स्तर का सामना किया था। उस समय पीएम 2.5 का स्तर 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच जाता था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से लगभग 50 गुना अधिक था। कठोर नीतियों, नई तकनीक, और सख्त निगरानी के माध्यम से बीजिंग ने इस समस्या पर उल्लेखनीय नियंत्रण पाया।
चीन की पेशकश: साझा तकनीक और नीतिगत सहयोग
चीन ने भारत को अपनी सफलता का अनुभव साझा करने की पेशकश की है। इसमें कम उत्सर्जन क्षेत्र (Low Emission Zones), औद्योगिक कोयले के उपयोग में कटौती, और सार्वजनिक परिवहन में सुधार जैसे उपाय शामिल हैं। चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दिल्ली बीजिंग की तरह चरणबद्ध सुधार अपनाती है, तो तीन वर्षों में प्रदूषण के स्तर में 25 से 30 प्रतिशत की कमी लाना संभव है।
बीजिंग मॉडल की मुख्य रणनीतियाँ
कोयले के उपयोग पर नियंत्रण
बीजिंग ने कोयले के इस्तेमाल में लगभग 30 प्रतिशत की कटौती कर 1.5 करोड़ टन की सीमा तय की। इसके स्थान पर प्राकृतिक गैस और सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया गया। शहर के 3,000 से अधिक छोटे बॉयलर बंद किए गए, जिससे प्रदूषण के स्रोतों में भारी कमी आई।
लो एमिशन जोन की नीति
बीजिंग ने शहर के प्रमुख हिस्सों में लो एमिशन जोन स्थापित किए, जहां पुराने या अधिक धुआं छोड़ने वाले वाहनों का प्रवेश सीमित किया गया। इस नीति ने स्वच्छ परिवहन साधनों जैसे इलेक्ट्रिक बसों और ई-वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया। दिल्ली में भी इसी तरह के जोन बनाए जाने की योजना है।
वाहनों की संख्या पर अंकुश
चीन ने “लाइसेंस प्लेट लॉटरी सिस्टम” के जरिए निजी वाहनों की संख्या को सीमित किया। साथ ही, मेट्रो नेटवर्क को 1,000 किलोमीटर तक विस्तारित किया गया ताकि लोग निजी वाहन के बजाय सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें। दिल्ली में इस नीति के अनुरूप मेट्रो विस्तार और ई-बस बेड़े को प्राथमिकता दी जा सकती है।
वृक्षारोपण और निगरानी प्रणाली
बीजिंग ने वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए 1,500 मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए और ‘ब्लू स्काई’ नामक एप के माध्यम से नागरिकों को वास्तविक समय में प्रदूषण डेटा उपलब्ध कराया। साथ ही, शहर और आसपास के क्षेत्रों में 10 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए गए, जिससे कार्बन अवशोषण और हवा की शुद्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
चीन के कदमों से मिले नतीजे
2013 से 2017 के बीच बीजिंग में पीएम 2.5 के स्तर में 35 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 2020 तक चीन ने स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी को 15 प्रतिशत तक बढ़ा दिया और कोयले की खपत में 15 करोड़ टन की कटौती की। इन प्रयासों का असर यह हुआ कि नागरिकों की औसत जीवन प्रत्याशा में लगभग 4.6 वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई।
दिल्ली में क्या होगा आगे?
भारत सरकार और दिल्ली प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि चीन के विशेषज्ञों की मदद से एक संयुक्त वायु गुणवत्ता सुधार योजना तैयार की जाएगी। इस योजना में तकनीकी सहायता, उत्सर्जन नियंत्रण, और वृक्षारोपण जैसे उपाय शामिल होंगे। पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, अगले दो वर्षों में दिल्ली के 20 सबसे प्रदूषित इलाकों में बीजिंग मॉडल का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक धुआं, वाहन उत्सर्जन और निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल है। यदि सरकार इन तीनों मोर्चों पर समन्वित कार्रवाई करती है, तो बीजिंग की तरह ही दिल्ली में भी “नीले आसमान” की वापसी संभव है।
चीन की तकनीकी मदद और सख्त नीति अपनाकर दिल्ली प्रदूषण के संकट से बाहर निकल सकती है। बीजिंग मॉडल ने यह साबित कर दिया है कि जब सरकार, उद्योग और नागरिक एकजुट होकर काम करते हैं, तो किसी भी शहर की हवा को स्वच्छ बनाना संभव है। दिल्ली के लिए यह अवसर है कि वह बीजिंग के अनुभव को अपने भविष्य की सांसों में बदल दे।